आयशा सुल्ताना के सपोर्ट में एक साथ BJP के 15 नेताओं और कार्यकर्ताओं ने दिया इस्तीफा

कैसे आए BJP में ऐसे दोयम दर्जे के नेता?

आयशा सुल्ताना पर कार्रवाई होते ही लक्षद्वीप में भाजपा के 15 नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस्तीफा दे दिया। बाकी सब बात बाद में पहले ये देखो वे भाजपा में जुड़े कैसे ?

हाल ही में कथित पर्यावरणविद एवं मलयाली अभिनेत्री आयशा सुल्ताना के विरुद्ध लक्षद्वीप प्रशासन ने उनके कोरोना Bio Weapon वाले बयान को लेके देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया है। इसको लेकर स्थानीय भारतीय जनता पार्टी के 15 नेताओं ने उन्हें सपोर्ट करने के लिए पार्टी से इस्तीफा दे दिया है।

जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, “केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में पिछले काफी समय से सबकुछ सही नहीं चल रहा है। इस बीच फिल्म निर्माता आयशा सुल्ताना के खिलाफ लक्षद्वीप पुलिस ने देशद्रोह का मामला दर्ज किया। हालांकि, यह मामला दर्ज भाजपा की लक्षद्वीप ईकाई अक्ष्यक्ष अब्दुल खादर द्वारा करवाया गया, लेकिन अब इस मुकदमे को लेकर भाजपा पार्टी के ही 15 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया है। इसपर अब पार्टी के ही लोग खफा हो गए हैं।

लक्षद्वीप में लगभग 15 भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। लक्षद्वीप पार्टी अध्यक्ष को अपने त्याग पत्र में, उन्होंने कहा कि उनका इस्तीफा आयशा सुल्ताना पर मामले दर्ज करवाने को लेकर है, जिन्होंने एक चैनल चर्चा के दौरान कहा था कि कैसे लक्षद्वीप शून्य कोविड मामलों से वर्तमान प्रशासक के आगमन के साथ बड़े पैमाने पर कोविड मामलों में बढ़ोतरी हो गई”।

अब बाकी सब बातें अलग हैं, पहले इस बात की जांच होनी चाहिए कि इन 15 नेताओं को पार्टी में जगह आखिर दी तो दी किसने? ऐसी कौन सी मजबूरी थी, जिसके कारण लक्षद्वीप की भाजपा इकाई के पास ऐसे दोयम दर्जे के नेताओं के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा था?

दरअसल, आयशा सुल्ताना उसी ब्रिगेड का हिस्सा है, जो ‘लक्षद्वीप बचाओ’ के नाम पर तरह तरह की अफवाहें फैला रही है। सर्वप्रथम मलयाली अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन ने लक्षद्वीप के निवासियों की सौम्य छवि पेश करने का प्रयास किया था, परंतु जब उनकी दाल नहीं गली, तो आयशा सुल्ताना ने झूठे आरोप गढ़े।

परंतु अब जो लक्षद्वीप भाजपा के 15 नेताओं ने इस्तीफा सौंपा है, उससे स्पष्ट होता है कि भाजपा को अपने नेतृत्व को फिर से सँवारने की बेहद आवश्यकता है। हालांकि, भाजपा के वैसे दिन तो बिल्कुल नहीं है जैसे NDA के प्रथम सत्र के दौरान हुआ करते थे, परंतु उससे कम भी नहीं है।

Exit mobile version