कुछ दिनों पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत आए हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध के लोगों से भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन मांगा था। मंत्रालय ने यह आवेदन गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पंजाब के 13 जिलों में रहने वाले गैर-मुस्लिम धर्म के लोगों से नागरिकता के लिए आवेदन करने के लिए कहा है। अब इसे देखते हुए अरुणाचल प्रदेश के चकमा छात्रों के शीर्ष निकाय अरुणाचल प्रदेश चकमा छात्र संघ (APCSU) ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक ज्ञापन सौंपा है जिसमें राज्य के 4,627 चकमा-हाजोंग लोगों को नागरिकता देने की मांग की गई है।
ईमेल के माध्यम से जमा किए गए ज्ञापन में कहा गया है कि 14,888 चकमा-हाजोंग, जो बौद्ध और हिंदू हैं, 1964 और 1966 के बीच तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के चटगांव हिल्स ट्रैक्ट (सीएचटी) से धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए भारत आए और नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर (अब अरुणाचल प्रदेश) में बस गए। उन्हें पुनर्वास योजना के तहत बसाया गया, भूमि आवंटित की गई और उनके परिवारों के आकार के आधार पर वित्तीय सहायता प्रदान की गई परन्तु नागरिकता नहीं मिली थी।
बता दें कि चकमा तिब्बती-बर्मन हैं जिनकी मूल मातृभूमि बर्मा में थी। कुछ समय पश्चात वे उत्तर पूर्व भारत और वर्तमान बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में फैल गए। चकमा शब्द संस्कृत के शक्तिमान शब्द से निकला है, जिसका वर्णन करने के लिए बर्मी लोग इसका इस्तेमाल करते थे। चकमा मंत्रियों और रणनीतिकारों के रूप में प्रसिद्ध थे और बर्मी राजाओं के दरबार में पर्याप्त शक्ति का प्रयोग करते थे।
Thervada Buddhism के अनुयायी, चकमा-हाजोंग अंततः चटगांव पहाड़ी इलाकों में प्रमुख समुदाय बन गए। विभाजन के समय, चकमाओं ने अपने क्षेत्रों को मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में शामिल करने का विरोध किया। जातीय रूप से भी, चकमा पड़ोसी बंगाली समुदाय से अलग थे और उन्हें बंगालियों के हाथों भेदभाव का सामना करना पड़ा।
ब्रिटिश काल के दौरान, पहाड़ी इलाकों में पर्याप्त स्वायत्तता थी और वे एक प्रशासनिक इकाई के रूप में शासित थे। दुर्भाग्य से, ब्रिटिश शासन के बाद पाकिस्तानी और बांग्लादेशी शासन के मुस्लिम केन्द्रित होने के कारण पहाड़ी इलाकों के निवासियों के लिए विनाश का कारण बना। विभाजन के परिणामस्वरूप, चटगांव हिल ट्रैक्ट, जो लगभग 100% गैर-मुस्लिम था, पाकिस्तान को प्रदान किया गया था। उसके बाद Kaptai dam के निर्माण से विकास की आड़ में, पाकिस्तानी सरकार ने हजारों स्वदेशी आदिवासियों को भारत में पलायन करने और शरण लेने के लिए मजबूर किया। ऐसा अनुमान है कि उनके खेत जलमग्न हो गए और उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिला, जिससे 40,000 आदिवासी भारत भाग गए। इस तरह, चकमा, हाजोंग और अन्य आदिवासी भारतीय राज्यों मिजोरम और त्रिपुरा में पहाड़ियों में शरण लेने लगे थे।
हाजोंग गुवाहाटी के पास हाजो के क्षेत्र पर दावा करते हैं और जातीय रूप से भारतीय तिब्बती हैं। वे दावा करते हैं कि वो सूर्यवंशी हैं और हिंदू धर्म के अनुयायी हैं। उत्तर पूर्व के अलावा, चटगांव क्षेत्र सहित बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में भी हाजोंग पाए जाते हैं।
हाजोंग को अपने धार्मिक विश्वासों के कारण पूर्वी पाकिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का सामना करना पड़ा जिसके स्वरुप उन्हें भारत पलायन करना पड़ा। कई हाजोंगों को सरकार द्वारा अरुणाचल प्रदेश (तब NEFA) में बसाया गया था, जहाँ वे लगभग 5 दशकों तक बिना नागरिकता के ही रहे हैं।
और पढ़े: “राहुल गांधी और उनके कुत्ते पिद्दी ने मुझे असम CM के रूप में स्थापित किया”, हिमंता ने किया कटाक्ष
जनवरी 1996 में, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नागरिकता अधिनियम, 1995 के प्रावधानों के अनुसार नागरिकता प्रदान करने का निर्देश दिया था। एक अन्य याचिका पर सुनवाई करते हुए, शीर्ष अदालत ने सितंबर 2015 में केंद्र को 4,627 चकमा और हाजोंग के लंबित नागरिकता आवेदनों को तीन दिनों के भीतर संसाधित करने का निर्देश दिया था।
हालांकि, शीर्ष अदालत के निर्देश का पालन नहीं किया गया है और किसी न किसी कारण से इसमें देरी हो रही है। ज्ञापन में शाह से 4,627 चकमा-हाजोंग को तुरंत नागरिकता देने, अरुणाचल प्रदेश सरकार को सभी चकमाओं और हाजोंगों को मतदाता सूची में नामांकन की अनुमति देने और केंद्र और राज्य कल्याण योजनाओं में दो समुदायों को शामिल करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया।
ज्ञापन ने कहा, “शाह ने दो साल पहले संकेत दिया था कि चकमा-हाजोंग की समस्या अक्टूबर 2020 से पहले हल हो जाएगी। हम 4,627 को नागरिकता देने में उनके तत्काल हस्तक्षेप की मांग करते हैं और यह भी सुनिश्चित करते हैं कि जिन लोगों को नागरिकता मिली है, वे सभी सुविधाओं और अधिकारों का आनंद ले सकें।”
अब तक भारत सरकार शरणार्थियों के साथ संघर्ष कर रही थी, उनमें से कुछ को अरुणाचल प्रदेश में बसाया गया, जहां शरणार्थियों की पीढ़ियां अधिकारों और नागरिकता के बिना रह रही है। परन्तु अब मोदी सरकार द्वारा गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पंजाब के 13 जिलों में रहने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत आए हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध के लोगों लोगों से नागरिकता के लिए आवेदन मांगे जाने के बाद चकमा-हाजोंग के लोगों की भी उम्मीदें बढ़ी हैं। यह विडम्बना है कि मुट्ठी भर चकमा शरणार्थी कभी भी भारतीय नागरिक नहीं बन सके जबकि कई मुस्लिम शरणार्थीयों को छूट मिली है। अब गलत को सही करने का समय आ गया है और सरकार को चकमा-हाजोंग के लोगों की नागरिकता के लिए कदम उठाना चाहिए।