‘बॉलीवुड के Khans की घटती प्रसिद्धि का कारण है- PM मोदी’, आतिश तासीर का कुतर्क

जब नफ़रत इंसान को अंधा कर देती है, तो बौखलाहट में वो ये सब कहता है!

आतिश तासीर बॉलीवुड

Koimoi

जब समाज में किसी गंदगी के खिलाफ जागरूकता बढती है तो समाज धीरे-धीरे उस गंदगी से मुंह मोड़ना शुरू कर देता है। आज बॉलीवुड से भी लोगों का मन उठ चुका है। आज भारतीय समाज खासकर उन लोगों को नकार चुका है जिन्होंने समाज की मासूमियत का फायदा उठा कर अपनी फिल्मों के जरीय कूड़ा और हिन्दुओं के प्रति नफरत को परोसा है। खान तिकड़ी जैसे सुपरस्टार भी अप्रासंगिक हो चुके हैं। हालाँकि, कुछ ‘प्रख्यात बुद्धिजीवी’ इसका दोष भी प्रधानमंत्री मोदी को देना चाहते हैं। भारत द्वारा OCI निरस्त किये जाने के बाद से ही पूर्व पाकिस्तानी गवर्नर के पुत्र आतिश तासीर प्रधानमंत्री के खिलाफ जहर उगल रहे हैं। अब उन्होंने बॉलीवुड में अपनी प्रासंगिकता खोने वाले खानों की तिकड़ी के लिए नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराया है।

The Atlantic में एक लेख लिखते हुए उन्होंने फिल्म उद्योग में सांस्कृतिक परिवर्तन लाने के NDA सरकार के प्रयासों को दोषी बताया है जिससे बॉलीवुड का पतन हो रहा है। आतिश तासीर द अटलांटिक के लिए अपने लेख में लिखते हैं, “बॉलीवुड का प्रभाव भारत के बाहर भी फैला हुआ है। भाजपा यह जानती है और इसे लागू करना चाहती है।“ उन्होंने एनडीए प्रशासन पर ‘बॉलीवुड के खिलाफ ‘युद्ध छेड़ने का आरोप लगाया।’

लेख में आतिश तासीर ने कंगना रनौत को इस ‘युद्ध’ का हिस्सा बताया है। हालाँकि, जिस प्रकार से कंगना रानौत वामपंथी गुट के खिलाफ आवाज उठा रही है उसे देखते हुए यह स्पष्ट है कि वह ऐसी एक अकेली आवाज है जो बॉलीवुड उद्योग में वामपंथी गुट के प्रभुत्व पर प्रखर है।

हालाँकि, जिस व्यग्रता के साथ पाकिस्तान के दिवंगत गवर्नर के बेटे तासीर ने इस लेख को लिखा है उससे यह लगता है उन्हें बॉलीवुड में खानों और हिन्दू विरोधी ताकतों का कम होता प्रभुत्व बर्दाश्त नहीं कर सकते। हालाँकि, शाहरुख़ खान हो या सलमान खान या फिर मिस्टर परफेक्टनिस्ट माने जाने वाले आमिर खान ही क्यों न हो उनका स्टारडम कम होने का मौजूदा सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। उनके काम पर नजर डाला जाये तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि अब जनता उनके घिसेपिटे स्क्रिप्ट वाली फिल्मों से मोहित नहीं हो रही है और न ही उनके घिसेपिटे आईटम सॉंग के टेम्पलेट से।

आतिश ने आगे दावा किया हैं, “मोदी भारत को एक समग्र संस्कृति के रूप में नहीं देखते हैं, जिसमें हिंदुओं, मुसलमानों, सिखों और ईसाइयों ने योगदान दिया है, बल्कि एक अनिवार्य रूप से हिंदू देश के रूप में देखते हैं, जिसका भाग्य हिंदू सांस्कृतिक पुनर्जागरण लाने में निहित है।“

उनका यह भी दावा है, “भाजपा की मूल कहानी बहुत अलग है। पार्टी की शुरुआत 1980 के दशक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नामक संगठन के राजनीतिक चेहरे के रूप में हुई थी। आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी। ऐसे समय में जब यूरोपीय फासीवादी आंदोलन जोर पकड़ रहे थे। इसके शुरुआती नेता, एम.एस. गोलवलकर जैसे लोग, जिनका जन्मदिन मोदी सरकार ने हाल ही में एक ट्विटर घोषणा के साथ मनाया, नाजी जर्मनी के संबंध में थे।“

आतिश तासीर जैसे लोगों के लिए भारतीयों द्वारा कथित तौर पर नाज़ी जर्मनी के लिए सम्मान करने का दावा करना एक चाल है। ऐसे बुद्धिजीवी किसी भी तरह से भारत के एक पक्ष को एक ऐसी ताकत से जोड़ना चाहते हैं जिससे उनके खिलाफ लोगों में नफरत फैलाया जा सके। आतिश तासीर ने आगे लिखा है कि, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी हिंदू-राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार बॉलीवुड की रचनात्मक स्वतंत्रता को कम करने के लिए शक्तिशाली साधनों का उपयोग कर रही है – विशेष रूप से मुसलमानों के प्रभाव, जिनकी उद्योग में उपस्थिति बहुत अधिक है।“ उन्होंने अपने इस लेख में तीनों खानों की असफलता के लिए प्रधानमंत्री को ही दोश देने की कोशिश की है।

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हालाँकि, तीनों खानों की पिछली कुछ फिल्मों को देखा जाये तो यह अपने आप स्पष्ट हो जायेगा कि लोगों ने उन्हें स्वयं नाकारा है। आइए एक नज़र डालते हैं आमिर खान, सलमान खान और शाहरुख खान की हालिया फिल्मों पर।

आमिर खान की आखिरी बड़ी फिल्म ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ थी जिसने बॉक्स ऑफिस पर बेहद निराशाजनक प्रदर्शन किया था। हालाँकि, आमिर खान जो बहुत ही कम फिल्में करते हैं और कुछ हटकर फिल्मों के लिए जाने जाते हैं परन्तु अब उनका दौर भी समाप्त हो चुका है। आमिर खान ने कुछ वर्ष पहले एक विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि देश में असहिष्णुता का माहौल है। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि 2014 (जब से मोदी सत्ता में आए) से ही देश में असहिष्णुता का माहौल बन रहा है। इस टिप्पणी के बाद आमिर खान की चौतरफा आलोचना होने लगी थी। यहां तक की उनके हार्ड कोर फैंस भी काफी नाराज हो गए। अब अगर भारत जैसे देश में कोई यह कहे कि असहिष्णुता का माहौल बन रहा है तो यह विडम्बना ही है।

SRK की आखिरी रिलीज़ ‘ज़ीरो’ थी और लोगों ने भी उस फिल्म को जीरो ही अंक दिए। उससे पहले दिलवाले, रईस, जब हैरी मेट सेजल ने भी उसी स्तर का प्रदर्शन किया था। उनके करोड़ों भारतीय फैंस को झटका तब लगा था जब उन्होंने वर्ष 2015 में इंडिया टुडे में यह कहा कि, “भारत में ‘अत्याधिक असहिष्णुता’ बढ़ रही है और लोगों में सहनशीलता लगातार कम होती जा रही है।” जाहिर है, भारत जैसे शांतिप्रिय और सर्वाधिक सहिष्णु देश के लोगों को असहिष्णु कहना, शाहरुख के चाहने वालों को जरा भी पसंद नहीं आया और उसके बाद से ही उनकी फिल्में लगातार फ्लॉप होती जा रही हैं।

इस बीच, सलमान खान इस साल फिल्म आई ‘राधे: योर मोस्ट वांटेड भाई’ जो इतनी अच्छी थी कि जब समीक्षक कमाल आर खान ने इस फिल्म की समीक्षा की तो ‘मोस्ट वांटेड भाई’ ने उनके खिलाफ मामला दर्ज करा दिया।

सलमान खान को ही ले लीजिए। जनाब की उम्र 55 से अधिक है, लेकिन अभी भी उन्हें वही रोल करने है, जिसमें वे 30 से 35 वर्ष से अधिक न लगे। यूं तो 2009 में आई ‘वांटेड’ के बाद से सलमान खान की अधिकतर फिल्मों में उनके अभिनय या उनकी शैली में कोई बदलाव नहीं रहा है। 2018 से सलमान खान फिर वही पुराने ढर्रे पर लौट आए और इस बार भी ‘राधे’ में कोई नयापन नहीं थी। वही मारधाड़, वही अजीबोगरीब स्टंट, अपनी बेटी के उम्र की लड़की के साथ रोमांस करना – सलमान खान जैसे थे, वैसे ही है।

लेकिन यहां आतिश तासीर की माने तो बॉलीवुड नरेंद्र मोदी की वजह से ही डूब रहा हैं। सच तो यह है कि बॉलीवुड हमेशा की तरह हिंदू विरोधी बना हुआ है। स्वरा भास्कर और तापसी पन्नू जैसे सितारे अपनी हरकतों के बावजूद बॉलीवुड में फलते-फूलते रहते हैं। घोल, तांडव और सेक्रेड गेम्स जैसी वेब सीरीज़ का निर्माण अभी भी जारी है। अनुराग कश्यप, कारण जोहर और महेश भट्ट बॉलीवुड में प्रमुख खिलाड़ी बने हुए हैं। ऐसे में यह कहना कि प्रधानमंत्री मोदी के कारण ये अभिनेता अप्रासंगिक हो रहे है, विक्टिम कार्ड की पराकाष्ठा होगी जिसमें आतिश तासीर जैसे लोग माहिर हैं।

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