दशकों की उपेक्षा के बाद, उत्तर प्रदेश में ब्राम्हण-ठाकुरों का वोट बैंक सबसे अहम

सभी पार्टियां इन्हें लुभाने में जुट गईं हैं!

ब्राम्हण-ठाकुर समुदाय वोट बैंक

2022 के विधानसभा चुनावों में अब कुछ ही माह शेष हैं और जल्द ही हर पार्टी अपनी दावेदारी पेश करने वाली है, लेकिन जहां एक तरफ भाजपा अपनी सीटों में बढ़ोत्तरी की ओर ध्यान देगी, तो वहीं बाकी पार्टी अब उस समुदाय पर ध्यान देगी जिसे वह वर्षों से अनदेखा करती आई थी। यह और कोई नहीं, बल्कि ब्राह्मण समुदाय है।

लेकिन ब्राह्मण समुदाय को रिझाने का इतना प्रयास क्यों हो रहा है? दरअसल, ब्राह्मण समुदाय पर पहले लोगों की इतनी नजर नहीं जाती थी, जितनी अब जाती है। पहले राजनीतिक पार्टियों की प्राथमिक पसंद जाटव समुदाय और अल्पसंख्यक होते थे। अगर कुछ बचा तो जाकर ब्राह्मण समुदाय पर ध्यान केंद्रित किया जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है।

भाजपा के ‘मिशन यूपी 2022’ के अंतर्गत एक बार फिर समाज के सभी वर्गों को साधने की कोशिश शुरू कर दी गई है। यूं ही नहीं जितिन प्रसाद जैसे ब्राह्मण चेहरे को महत्व देकर पार्टी ब्राह्मणों को साधने की कोशिश कर रही है। वहीं दूसरी ओर अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद की भी नाराजगी दूर कर कुर्मी, पटेल और निषाद समाज को भी साथ लाने की कोशिश की जा रही है। प्रदेश की लगभग 41.5 फीसदी आबादी ओबीसी समुदाय को साथ लाने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की चर्चा जोरों पर है तो पार्टी गैर-जाटव वोटरों को भी साधने की कोशिश कर रही है जिसके लगभग 48 फीसदी मतदाताओं ने 2019 के लोकसभा चुनाव में उसे ही वोट दिया था।

इसलिए अब ब्राह्मण समुदाय राजनीतिक पार्टियों के आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं। हालांकि, ऐसा कई वर्ष पहले भी हुआ था, जब 2007 में समाजवादी पार्टी की गुंडागर्दी से तंग आकर ब्राह्मणों ने एक सुर में बहुजन समाज पार्टी को वोट दिया था, परंतु वह मजबूरी की लड़ाई थी। इस बार ब्राह्मणों की विवशता नहीं है, बल्कि राजनीतिक पार्टियों की विवशता है, जो उन्हें इस समुदाय को आकर्षित करना पड़ रहा है।

दरअसल, ब्राह्मण समुदाय पहले ऐसे थे भी नहीं। आम तौर पर अन्य राज्यों के ब्राह्मणों की तरह उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण भी बंटे रहते थे, जिसके कारण उक्त राज्यों में वामपंथियों की तूती बोलती थी, लेकिन नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की स्पष्ट रणनीति ऐसी कामगर रही जिसके कारण आम तौर पर बंटे रहने वाले ब्राह्मण और राजपूत जैसे समुदाय एक होने लगे। यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की ओर से भाजपा को प्रचंड बहुमत मिल रहा है, तो इसमें ब्राह्मणों की यही एकजुटता का भी अपना प्रभाव है।

लेकिन बाकी पार्टियों को ऐसा क्यों करना पड़ रहा है? समाजवादी पार्टी अधिकतर मुस्लिम, यादव समाज और ओबीसी कोटे के वोटों से चलती है। वहीं दूसरी ओर बहुजन समाज पार्टी दलित मुस्लिम वोट बैंक और मुस्लिम के रोष से कायम थी, लेकिन 2014 की मोदी लहर में ये सब के सब बह गए। ज्यादतर ब्राह्मणों ने BJP को वोट दिया, क्योंकि उन्हें अन्य पार्टियों द्वारा नजरअंदाज किया जाता था।  इसलिए अब विपक्ष को मिलकर भाजपा के इस नए एकत्रित ब्राह्मण वोट बैंक को तोड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है!

वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी अपनी अपनी गुटबाजी में बंटे हुए है। इसी कारण से दोनों का वर्षों से बना बनाया वोट बैंक भी बिगड़ गया है। जहां अखिलेश यादव अपनी बिगड़ी हुई पार्टी व्यवस्था को सुधारने के बजाए योगी आदित्यनाथ के प्रशासन को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं। दूसरी ओर मायावती को इस बात का ही आभास ही नहीं है कि 2022 के विधानसभा चुनाव आने वाले हैं। उन्हें अभी-अभी पता चला है कि पंजाब में शिरोमणि अकाली दल ने वर्षों बाद उनके दल के साथ पुनः गठबंधन किया है। ऐसे में इसे वक्त का फेर कहिए या लक्ष्मी की कृपा, पर ब्राह्मण एक इस बार आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।

Exit mobile version