पिछले एक दो सप्ताह से उत्तर प्रदेश की राजनीति में आए दिन कोई न कोई नया प्रोपेगेंडा गढ़ा जा रहा है। पिछले काफी वक्त से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच टकराव की स्थितियों को लेकर लिबरल मीडिया ने नौटंकियां की और अब कुछ इसी तरह एक नया प्रोपेगेंडा ब्राह्मण बनाम ठाकुर की राजनीति को लेकर गढ़ा जाने लगा है। ये दरबारी मीडिया जनता को ये बात मनवाना चाहता है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने जितिन प्रसाद की एंट्री इसलिए कराई है, क्योंकि वह ब्राह्मण वोट बैंक को मजबूत करना चाहते हैं। हालांकि, ब्राह्मण बनाम ठाकुर की इस लड़ाई को कांग्रेस पिछले साल भर से हवा दे रही हैं जो पूर्णतः निरर्थक है।
आप सभी ने अकसर देखा होगा कि टीवी डिबेट्स से लेकर कांग्रेस और विपक्षी दलों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनके संन्यासी जीवन से पहले के पुराने नाम ‘अजय सिंह बिष्ट’ कहकर बुलाया जाता है। इसके पीछे कांग्रेस समेत विपक्ष की साज़िश केवल और केवल जातिगत रणनीति को हवा देने की है। ऐसे में अब जब 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद की एंट्री बीजेपी में हुई है तो लिबरल पत्रकार इसे बीजेपी का ब्राह्मणों को लुभाने का दांव घोषित कर रहे हैं।
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एक तरफ ये लिबरल पत्रकार जितिन प्रसाद को जननेता मानने से इंकार कर रहे हैं तो दूसरी ओर उन्हें ब्राह्मण छवि वाला बताकर ये दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि बीजेपी ब्राह्मण समाज को लुभाना चाहती है जो कि विरोधाभासी कुतर्क के अलावा कुछ भी नहीं है। जितिन प्रसाद के बीजेपी में शामिल होने पर इन लिबरल पत्रकारों ने ऐलान कर दिया है कि इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव ब्राह्मण बनाम ठाकुर के बीच बंट सकता है, जो कि निराधार बहस है।
A person who was relegated to the 3rd place in 2019 Lok Sabha is certainly not being brought to the BJP for his electoral credentials. In UP's caste politics matrix & Brahmin Vs Thakur equation, there is more than what meets the eye in #JitinPrasada's joining the #BJP. https://t.co/nnEs5siv9t
— Maha Siddiqui (@SiddiquiMaha) June 9, 2021
It is that incredible juncture in national politics when BJP needed to import a ‘Brahmin’ leader from the Congress…
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) June 9, 2021
याद कीजिए जब पिछले वर्ष कानपुर के बिकरू गांव का कुख्यात अपराधी और गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर में मारा गया, तब से ही बीजेपी की यूपी सरकार पर कांग्रेस ने ब्राह्मण विरोधी होने का टैग लगा दिया। शायद कांग्रेस यह नहीं जानती थी कि विकास दुबे ने अपने पूरे जीवन में लगभग 80% ऐसे लोगों को मौत के घाट उतारा था जो कि ब्राह्मण समाज से ही ताल्लुक रखते थे। कुख्यात अपराधी की मौत के पीछे खड़े होकर कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को ब्राह्मण विरोधी घोषित करने में अपनी पूरी टीम लगा दी लेकिन इससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ा है।
If there is conflict in the adversary camp @INCUttarPradesh @priyankagandhi @yadavakhilesh should exploit it. Is it about Thakur vs Brahmins or about governance #ModiDisasterForIndia
— Andolan Jeevi Ajit (@meerajit) June 7, 2021
यूपी में "टैलेंट" का गजब विस्फोट हुआ है।बांदा कृषि विश्वविद्यालय में 15 प्रोफसर की नियुक्ति हुई.11 एक ही जाति के।अब सवर्णो में जूतम पैजार शुरू है। BJP वाले अपनी ही सरकार की बखिया उधेड़े हुए हैं।ना भाई ना।आपका हिस्सा दलितों पिछड़ों आदिवासियों ने नहीं मारा।ठाकुर मंत्री से पूछो। pic.twitter.com/oAmQgqTOcR
— Navin Kumar (@navinjournalist) June 9, 2021
दरअसल, इन विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण मतदाताओं की एक विशेष भूमिका हो सकती है। एक तरफ जहां 2014 के बाद दलित, मुस्लिम, ओबीसी, यादव, नॉन यादव ओबीसी का वोट बैंक बड़ी संख्या में बीजेपी के पास गया है, तो सपा, बसपा और कांग्रेस के बीच यह वोट बैंक बंटा भी है। वहीं ब्राह्मण समेत सवर्ण समाज ने बीजेपी की तरफ अपना खुलकर समर्थन जाहिर किया है जिसके चलते पूरे विपक्ष की आंखों में यह सवर्ण समाज खटकने लगा है। यही कारण है कि सपा, बसपा की तरह ही कांग्रेस भी अपने परंपरागत ब्राह्मण समाज के वोटों को आकर्षित करने की कवायद पिछले 1 साल से कर रही है।
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वहीं लिबरल मीडिया भी अब विपक्ष के ब्राह्मण बनाम ठाकुर के इस कपोल कल्पित एजेंडे पर काम करते हुए यह घोषित कर देना चाहता है कि उत्तर प्रदेश में 2022 का विधानसभा चुनाव ब्राह्मण बनाम ठाकुर की सियासी बिसात पर लड़ा जाएगा। हकीकत यह है कि ब्राह्मण ही नहीं बल्कि सवर्ण समाज का एक बड़ा तबका भाजपा के पक्ष में जाता है। इसलिए अब सवर्ण समाज को भी यह लिबरल मीडिया विभाजित करने की कोशिशों में जुट गया है और जितिन प्रसाद की एंट्री को बेवजह इस एजेंडे में शामिल किया जा रहा है।