कांग्रेस की एक सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि पार्टी अपनी गलतियों को सुधारने के बजाए उन्हें छिपाने पर सारा ध्यान लगा देती है, जिसका असर ये होता है कि पार्टी अब धीरे-धीरे हाशिए पर जा रही है। अभी तक आए दिन हम लोग पंजाब और राजस्थान में पार्टी की फूट की चर्चाएं सुन रहे थे, लेकिन अब इस मामले में एक नया नाम छत्तीसगढ़ का भी जुड़ गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस देव सिंह स्वास्थ के क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा देने को लेकर टकराव की स्थिति में आ चुके हैं। दोनों के बीच सीएम पद को लेकर सीधी टक्कर देखी गई थी, अब इस मुद्दे पर टीएस देव सिंह के बयान ने जाहिर कर दिया है कि बघेल और उनके बीच तालमेल की भारी कमी है।
कोरोनावायरस के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में पड़े बुरे असर के कारण हाल ही में छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने बयान दिया था कि सरकार ग्रामीण इलाकों में निजी क्षेत्र के जरिए स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की प्लानिंग कर रही है। वहीं इस मुद्दे पर ही अब बवाल मच गया है। मुख्यमंत्री के बयान को लेकर राज्य के शिक्षा मंत्री से जब सवाल किए गए तो उन्होंने ये कह दिया कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी ही नहीं है, और वो निजीकरण के खिलाफ भी हैं, जो दिखाता है कि अब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के दो बड़े नेताओं के बीच टकराव की स्थिति बन सकती है।
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स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा देने के मुद्दे पर उन्होंने कहा है कि वो इस तरह की सोच में साथ नहीं देंगे। इतना ही नहीं उन्होंने ये तक कह दिया कि उन्हें इस बारे में कुछ खास जानकारी नहीं है, और ये मुद्दा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का एक प्रस्ताव मात्र हो सकता है। टीएस देव सिंह ने इशारों इशारों में ही कह दिया है कि यदि उनसे इस मुद्दे पर राय मांगी जाती है, तो वो जवाब तो लिखित में देंगें, लेकिन वो नकारात्मक ही होगा।
टीएस देव सिंह ने कहा, “सरकार यदि शासकीय अनुदान के माध्यम से निजी अस्पतालों को बढ़ावा दे रही है और अस्पताल मरीजों से शुल्क ले रहे हैं तब यह निशुल्क स्वास्थ्य सेवा की अवधारणा के खिलाफ है। यदि निजी अस्पताल मरीजों से इलाज का शुल्क नहीं लेते हैं तब उन्हें अनुदान देने में कोई आपत्ति नहीं है।” साफ है कि इस मुद्दे पर तो टीएस देव सिंह की राय सटीक है, लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बिना अपनी कैबिनेट के सामने बात किए कोई भी बयान दे देते हैं।
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इतना ही नहीं इस प्रकरण से टीएस देव सिंह और बघेल के बीच टकराव का संकेत भी मिला है। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव 2018 के बाद ये माना जा रहा था कि टीएस देव सिंह और भूपेश बघेल के बीच कांटे की टक्कर होगी, लेकिन आलाकमान की मजबूरी टीएस देव सिंह को स्वीकार करनी पड़ी। ऐसे में सामने आया ये टकराव दिखाता है कि पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों के मसलों को सुलझाने में आलाकमान जिस तरह से कमजोर साबित हुआ है उससे अब अन्य कांग्रेस शासित राज्यों में भी बगावत के सुर निकलने लगे हैं, जिसका हालिया उदाहरण टीएस देव सिंह और भूपेश बघेल के बीच बगावत की स्थिति है।