हाल ही में आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र में एक लेखक शांतनु गुप्ता ने एक शोध के आधार पर यह बताया है कि अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले सांसद हैं। शोध का आधार 4 बातों को बनाया गया है, सांसद की उपस्थिति, संसद में उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नों की संख्या, उनके द्वारा चर्चा में भागीदारी और प्राइवेट मेम्बर बिल। इस शोध में उत्तर प्रदेश से आने वाले 8 मंत्रियों को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि मंत्री चर्चा में सरकार की ओर से भाग लेते हैं, जबकि दो अन्य सांसद, बसपा के अतुल राय और सपा के आजम खान को इस शोध से बाहर रखा गया है क्योंकि दोनों लोग आपराधिक मामलों में जेल गए हैं, जिससे उनकी उपस्थिति प्रभावित हुई है।
शोध में शामिल 70 सांसदों की उपस्थिति 88% है, जो राष्ट्रीय औसत से 6% अधिक है। उत्तर प्रदेश के भाजपा 80% सांसदों की उपस्थिति का आंकड़ा 90 से 100 प्रतिशत के बीच है। भाजपा के भोलानाथ, जगदम्बिका पाल, प्रदीप कुमार और राजवीर दिलेर, इन 4 सांसदों ने शत प्रतिशत उपस्थिती दर्ज कराई है।
वहीं, अखिलेश की बात करें तो उन्होंने मात्र 36% उपस्थिति दर्ज करवाई है। उन्होंने प्रश्नकाल में एक भी प्रश्न सरकार से नहीं किया है। उनके बाद सोनिया गांधी का नम्बर आता है जिनकी उपस्थिती 44% और प्रश्न की संख्या 0 है। बता दें कि प्रश्न करना सांसदों का सबसे महत्वपूर्ण काम है क्योंकि प्रश्नों के जरिये वह मंत्रियों का ध्यान अपनी संसदीय सीट के विकास, क्षेत्र में चल रही विकास योजनाओं आदि की ओर आकृष्ट करते हैं। सांसद अखिलेश यादव चुनाव बाद से आजमगढ़ में तो अनुपस्थित रहे ही हैं, उन्होंने आजमगढ़ से संबंधित एक भी प्रश्न तक नहीं किया है।
उत्तर प्रदेश से आने वाली 80 सीट में से 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा को 5 सीट मिली थी। इसमें से केवल 1 सांसद की उपस्थिति 90 से 100 प्रतिशत के बीच रही है।
प्रश्न पूछने की बात करें तो यहाँ भी भाजपा सांसदों ने शानदार प्रदर्शन किया है। 19 सांसदों ने 66 प्रश्नों के राष्ट्रीय औसत से अधिक प्रश्न पूछे हैं। इनके मुकाबले बसपा के 1 सांसद ने यह आंकड़ा छुआ है जबकि सपा का एक भी सांसद ऐसा नहीं है। उत्तर प्रदेश राज्य से आने वाले सांसदों ने औसतन 44 प्रश्न किए हैं, इसमें भी सपा का एक भी सांसद नहीं है जो इस आंकड़े को छू सका हो। भाजपा के 23 और बसपा के 4 सांसदों ने 44 से अधिक प्रश्न किए हैं।
भाजपा के 11 सांसदों ने 100 से भी अधिक प्रश्न किए हैं, जो बताता है कि भाजपा सांसद अपने क्षेत्र और प्रदेश के विकास के लिए कितने जागरूक हैं।
वहीं, चर्चा में भागीदारी की बात करें तो उत्तर प्रदेश के सांसदों की 25.4 प्रतिशत चर्चा में भागीदारी रही है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक सांसद 21.2 प्रतिशत चर्चाओं में हिस्सा लेते हैं। इसका मतलब उत्तर प्रदेश के सांसद औसतन देश के सांसदों से अधिक बार चर्चा में हिस्सा लेते हैं। भाजपा की ओर से सबसे अधिक बार चर्चा में हिस्सेदारी पुष्पेंद्र सिंह चंदेल की रही है। उन्होंने 510 चर्चाओं में हिस्सा लिया, जबकि अखिलेश यादव ने केवल 4 चर्चा और सोनिया गांधी ने मात्र 1 में हिस्सा लिया है।
प्राइवेट मेंबर बिल के मामले में उत्तर प्रदेश और भारत की राष्ट्रीय औसत एक बराबर है। राष्ट्रीय औसत की ही तरह उत्तर प्रदेश की औसत भी 0.3 है। उत्तर प्रदेश से केवल 9 सांसदों ने प्राइवेट मेंबर बिल प्रस्तुत किया है, सभी भाजपा के हैं। अखिलेश यादव, सोनिया गांधी सहित सपा और बसपा के सभी सांसदों का आंकड़ा शून्य है।
साफ है अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के सबसे सुस्त सांसद में से एक हैं, उनके बाद सोनिया गांधी का नम्बर है जो उन्हें कड़ी टक्कर देती हैं। मीडिया में इन नेताओं को लोकतंत्र के लिए सबसे जागरूक नेता के रूप में दर्शाया जाता है, जबकि इनके पास इतनी भी फुर्सत नहीं कि लोकतंत्र के मंदिर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सकें।