पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की मीटिंग के बाद और संजय राउत द्वारा दिए गए बयान में प्रधानमंत्री को देश का सबसे बड़ा नेता स्वीकार किए जाने के बाद, राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है कि क्या शिवसेना और भाजपा फिर से एकसाथ आने वाले हैं। इन सब चर्चाओं के बीच महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महाविकासअघाड़ी के सबसे बड़े नेता और NCP प्रमुख शरद पवार ने बयान दिया है और उद्धव को इशारों-इशारों में याद दिलाया है कि शिवसेना के संस्थापक और उद्धव के पिता बाला साहब ठाकरे अपने वचन के पक्के थे।
अपनी पार्टी की स्थापना की 22वीं वर्षगांठ पर शरद पवार ने कहा “1977 में जब पूरा राजनीतिक माहौल इंदिरा गांधी के विरुद्ध था, उस समय एक व्यक्ति उनके पक्ष में खड़ा था और वह थे बाल ठाकरे। उन्होंने इंदिरा जी से वादा किया था कि वह उनके प्रत्याशियों के विरुद्ध पर्चा नहीं दाखिल करेंगे और वह अपनी बात पर कायम रहे। वो लोग जो प्रश्न उठा रहे हैं कि क्या शिवसेना मीटिंग के बाद अब अपना स्टैंड बदलेगी वह किसी और ही दुनिया में रहते हैं।”
शिवसेना अपना स्टैंड बदलेगी या नहीं, यह अलग मुद्दा है लेकिन इतना तय है कि प्रधानमंत्री मोदी के एक दौरे से महा विकास अघाड़ी के खेमे में खलबली मच गई है। शरद पवार के बयान में उनकी घबराहट साफ दिखाई दे रही है। पवार शिवसेना और उद्धव पर नैतिक दबाव डालना चाहते हैं, उद्धव को उनके पिता की राजनीतिक परिपाटी पर चलने की सीख देना चाहते हैं। हालांकि, शरद पवार भी जानते हैं कि उद्धव ने जिस दिन भाजपा से गठबंधन तोड़कर, कांग्रेस से गठबंधन किया था, उसी दिन उद्धव ने बाला साहेब ठाकरे की राजनीति को आधिकारिक रूप से तिलांजलि दे दी थी।
PM नरेंद्र मोदी से हुई मुलाकात और शिवसेना के बड़बोले नेता राउत द्वारा भाजपा और प्रधानमंत्री की तारीफ करना, पवार को आशंकित कर रहा है। पवार जानते हैं कि शिवसेना का आम कार्यकर्ता, शिवसेना द्वारा हिंदुत्व से दूरी बनाने, उन्मादी मुस्लिम कट्टरपंथियों के प्रभाव बढ़ने और पालघर में हुई साधुओं की मॉब लिंचिंग आदि घटनाओं से क्षुब्ध है। इसी कारण शिवसेना का जनाधार दिनो-दिन घटता जा रहा है। ऐसे में अगर उद्धव अलग रास्ता पकड़ लें और दोबारा भाजपा से सहयोग करके सरकार चलाने लगें, तो यह बहुत आश्चर्यजनक नहीं होगा।
वहीं भाजपा भी दोबारा सरकार में आने का मौका नहीं छोड़ेगी क्योंकि महाराष्ट्र के विकास के लिए आवश्यक कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट सिर्फ इसलिए रुक गए हैं क्योंकि भाजपा सरकार से बाहर है। वर्तमान सरकार उन प्रोजेक्ट को फंडिंग नहीं दे रही है जो भाजपा ने शुरू करवाए थे। मुम्बई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट, मेट्रो के विस्तार जैसे Projects राजनीति की भेंट चढ़ रहे हैं।
हालांकि, अभी भाजपा और शिवसेना के गठबंधन होने की संभावना तलाशना जल्दबाजी होगी क्योंकि न तो उद्धव और न ही भाजपा के लिए यह परिवर्तन इतना आसान होगा। लेकिन इतना ज़रूर तय है कि गठबंधन में परिवर्तन की सुगबुगाहट से ही महाविकासअघाड़ी में फूट पड़ने लगी है और शरद पवार भी इससे चिंतित हो गए हैं।