राम विरोधी और गुजरात मॉडल विरोधी कट्टर वामी आशुतोष भारद्वाज को MHRD मंत्रालय ने बनाया एडिटर

आशुतोष भारद्वाज

आशुतोष भारद्वाज अब MHRD के मैगजीन के लिए सम्पादन करेंगे

2014 में केंद्र से वामपंथ का साया भले ही हट चुका हो, परंतु अभी भी वामपंथियों का प्रभाव बरकरार जिसका सबसे हालिया उदाहरण हैं आशुतोष भारद्वाज। पत्रकार आशुतोष भारद्वाज अब जल्द ही मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय के एक मैगजीन के लिए सम्पादन करेंगे।

तो इसमें गलत क्या है? दरअसल, आशुतोष भारद्वाज को लेकर राहुल तुली नामक यूजर का ट्वीट सामने आया है। इस Tweet के अनुसार, पत्रकार आशुतोष भारद्वाज को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला की अर्द्धवार्षिक पत्रिका ‘चेतना’ का संपादक बनाया गया। इस संस्थान के प्रमुख मकरंद परांजपे हैं। ये संस्थान भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।”

राजीव तुली नामक ट्विटर यूजर ने अपने अगले ट्वीट में आशुतोष भारद्वाज के फ़ेसबुक अकाउंट के कुछ स्क्रीनशॉट भी शेयर किये जिससे आशुतोष की विचारधारा उजागर होती है, कि वे कितने बड़े वामपंथी हैं, और यही कारण है कि उनकी नियुक्ति विवाद का विषय है। एक स्क्रीनशॉट में वे तत्कालीन गुजरात सरकार को सर्विलांस स्टेट का दर्जा दे रहे हैं। ये उस समय की बात है जब नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री न होकर गुजरात के मुख्यमंत्री थे।

भारद्वाज शिक्षा मंत्रालय के एक अहम हिस्सा बनने जा रहा हैं

ठीक इसी प्रकार से एक अन्य स्क्रीनशॉट में श्री रामजन्मभूमि परिसर के पुनर्निर्माण के प्रति उनकी घृणा स्पष्ट ज़ाहिर होती है। आशुतोष भारद्वाज के अनुसार, “अनगिनत लाशों और समाज के विभाजन की नींव पर बन रहा ये राम मंदिर जो अस्सी के दशक में चले एक घृणित सांप्रदायिक अभियान की परिणिति है,उस मंदिर को दान मेरी दृष्टि में एक गुप्त और कुटिल मुस्कान है, और उस चेक को सार्वजनिक और फ़ेसबुक पर पोस्ट करना एक अश्लील अट्टहास है”।  

अब सोचिए, जो व्यक्ति हमारे देश की संस्कृति के बारे में एक हिन्दू होकर ऐसी घृणित सोच रखता हो, उससे आप शिष्टाचार छोड़िए, देश के शिक्षा के बारे में अच्छी बातों की आशा सोच भी कैसे सकते हैं? इसके बावजूद आशुतोष भारद्वाज शिक्षा मंत्रालय के एक अहम धड़े का हिस्सा बनने जा रहा हैं।

जब इसका विरोध किया गया, तो संबंधित अधिकारी मकरंद परांजपे ने मानो मामले से पल्ला झाड़ते हुए ट्वीट किया, “हमारे Fellow हमारे जर्नल को उचित अवधि के लिए एडिट करते हैं। मैं आशुतोष और वाणी प्रकाशन को चेतना नामक मैगजीन को पुनः सक्रिय करने के लिए आभारी हूँ। आपको संपादक के निजी विचार ठीक न लगे, परंतु सोशल मीडिया पर उसका विच हंट करना उचित नहीं”।

इतने सवालों के बाद भी मकरंद परांजपे आशुतोष भारद्वाज का बचाव कर रहे हैं जो बेहद शर्मनाक है।  बड़े अधिकारियों को इस मामले में अब हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है। गौर हो कि, अभी कुछ ही दिनों पहले आयुष मंत्रालय द्वारा करीना कपूर की कोविड अभियान को लेकर कथित नियुक्ति के पीछे बवाल मचा था, लेकिन लगता है कि नौकरशाही ने कोई सीख नहीं ली है, और वे केंद्र सरकार की मिट्टी पलीद कराके ही दम लेंगे।

 

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