चुनावों के बाद TMC गुंडों के हाथों रेप का शिकार होने वाली पीड़ित महिलाएं पहुंची सुप्रीम कोर्ट

बंगाल में TMC के अत्याचारों से व्यथित हुआ सुप्रीम कोर्ट!

टीएमसी कार्यकर्ताओं गैंगरेप Supreme court

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तृणमूल काँग्रेस से असहज और निर्लज्ज पार्टी इस देश में शायद ही कोई होगी। इस पार्टी का स्वभाव और इस पार्टी की मुखिया की प्रकृति जानने के बाद भी बंगालियों ने 212 सीटें दान कर दी। इसके बावजूद इस पार्टी को न जाने कौन सा डर सता रहा है, जिसके कारण वह बंगाल की निर्दोष जनता पर बेहिसाब अत्याचार ढा रहे हैं, जिससे अब सुप्रीम कोर्ट भी व्यथित हो गया है।

उदाहरण के लिए कुछ घटनाएँ सामने आईं हैं, जिसे सुनकर संभवत: आप भी उतने ही सिहर उठेंगे जितने कि सुप्रीम कोर्ट में उपस्थित सीट के जांचकर्ता। पश्चिम बंगाल में 2 मई 2021 को विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद हिंसा के दौरान टीएमसी के समर्थकों या कार्यकर्ताओं द्वारा गैंगरेप करने का आरोप लगाने वाली 60 वर्षीय एक महिला और एक नाबालिग लड़की ने उच्चतम न्यायालय में आवेदन दाखिल कर पहले से लंबित मामले में पक्षकार बनाने और इन सभी मामलों की जांच विशेष जांच दल (SIT) से कराने का अनुरोध किया है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, गोधरा मामले का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट से उसी तरह अपनी निगरानी में बंगाल में गैंगरेप और हत्याओं की एसआईटी जाँच की माँग की गई है।

एक 60 वर्षीय महिला ने शीर्ष अदालत को बताया है कि कैसे 4-5 मई को पूर्व मेदिनीपुर में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद टीएमसी के कार्यकर्ता उसके घर में जबरन घुस गए। लूटपाट करने से पहले 6 साल के पोते सामने ही उसका गैंगरेप किया। पीड़ित महिला ने बताया है कि 3 मई को खेजुरी विधानसभा सीट से बीजेपी की जीत के बाद 100-200 टीएमसी कार्यकर्ताओं की भीड़ ने उसके घर को घेर लिया और उसे बम से उड़ाने की धमकी दी। इस डर से उसकी बहू अगले दिन घर छोड़कर चली गई। इसके बाद 4-5 मई को पाँच टीएमसी कार्यकर्ताओं ने चारपाई से बाँधकर 6 साल के पोते से सामने उनका गैंगरेप किया। महिला ने बताया कि वारदात के दूसरे दिन वह अचेत अवस्था में पड़ोसियों को मिली। इसके बाद उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनका आरोप है कि पुलिस ने FIR लिखने से भी मना कर दिया था। पीड़िता का कहना है कि विधानसभा चुनाव के बाद टीएमसी के कार्यकर्ता बदला लेने के लिए रेप को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं।

इसी भांति, अनुसूचित जाति की एक 17 वर्षीय नाबालिग लड़की ने भी अपने साथ टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा कथित गैंगरेप के मामले की सीबीआई या एसआईटी से जाँच करवाने की माँग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। पीड़िता ने मामले का ट्रायल राज्य से बाहर करवाने की भी माँग की है। पीड़िता ने आरोप लगाया कि टीएमसी के गुंडों ने उसे घसीटने के बाद न केवल उसका गैंगरेप किया, बल्कि उसे जंगल में मरने के लिए फेंक दिया था। वारदात के अगले दिन सत्ताधारी पार्टी के एक स्थानीय नेता ने पीड़िता के घर आकर शिकायत नहीं करने के लिए परिजनों को धमकी भी दी थी। यूं ही नहीं एक मौके पर बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने दुख भरी आवाज में कहा था, ‘बंगाल में लोकतंत्र अपनी आखरी सांसें गिन रहा है’।

लेकिन बंगाली सरकार के चाटुकार और पुलिस पूरे प्रकरण को दबाने पर ऐसे लगे हुए हैं, मानो कुछ हुआ ही नहीं है। बंगाल पुलिस तो बंगाल पुलिस, बूम लाइव और ऑल्ट न्यूज जैसे कथित फैक्ट चेकर तक इसे पूर्णतया फेक न्यूज ठहराने पे तुले हुए थे। अब किस किस घटना को कहाँ कहाँ तक ये फेक न्यूज ठहराते रहेंगे? खैर सच्चाई सामने आ गईं हैं, क्योंकि अब खुद रेप पीड़िताओं ने सुप्रिम कोर्ट की ओर रुख करके सबसे मुंह बंद कर दिया है।

इसके बावजूद सब ऐसे व्यवहार कर रहे हैं, मानो कुछ हुआ ही नहीं। इस पर तंज कसते हुए पत्रकार ऋचा अनिरुद्ध ने ट्वीट करते हुए हमला किया, “दीदी की गोदी में बैठे पत्रकार जो दिन भर दूसरों को दलाल, बेईमान कहते हैं, उनकी इस पर कोई प्रतिक्रिया? या उनके लिए दीदी के राज में ऑल इज वेल?” –

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि बंगाल में जिस प्रकार से ममता बनर्जी के राज में तृणमूल काँग्रेस निरंकुश होती जा रही है, वो साल दो साल में ही अपने विनाश को निमंत्रण दे रही है। ममता अपने राज को बचाने का चाहे जितना प्रयास करे, सच तो यही है कि वही अपना मानसिक संतुलन खोती जा रही है।

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