ऐच्छिक सेवानिवृत्ति पर आकर्षक स्कीम का ऑफर देकर सरकार दो समस्याओं को एक साथ सुलझा रही है

बैंकिंग सेक्टर में निजी हस्तक्षेप की ज़रूरत है!

बैंकों का निजीकरण

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इस साल फरवरी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वार्षिक बजट प्रस्तुत करते हुए 2 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और 1 बीमा कंपनी का निजीकरण करने का ऐलान किया था। कुछ ही महीनों बाद अब सरकार अपनी रणनीति पर काम करती दिखाई दे रही है और उसकी ऐसे दो बैंकों का चयन करने की योजना है, जिनके कर्मचारियों को आकर्षक स्कीम के सहारे ऐच्छिक सेवानिवृत्ति (Voluntary Retirement Scheme) ग्रहण करने का प्रस्ताव दिया जाएगा। ऐसा करके सरकार दो बड़ी समस्याओं को एक साथ सुलझाने का प्रयास करेगी।

ऐसा करके एक तो सरकार अत्यधिक कर्मचारियों को सिस्टम से बाहर कर बैंकों के परिचालन को आसान कर पाएगी, ताकि निजी बैंक उस पर बेहतर ढंग से नियंत्रण कर सके। इसके साथ-साथ पुराने कर्मचारियों के बाहर जाने के बाद बैंक युवाओं की भर्ती के लिए वेकैंसी भी निकाल पाएंगे।

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बता दें कि VRS के तहत अक्सर कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को समय से पहले रिटायर होने का विकल्प प्रदान करती है और बदले में उन्हें बड़े आकर्षक ऑफर दिये जाते हैं। यह तब किया जाता है जब किसी संस्था को बंद करना होता है। इस मामले में सरकार बैंकों का निजीकरण कर रही है।

Central Bank of India, Indian Overseas Bank और Bank of Maharashtra कुछ ऐसे बैंक हैं, जिन्हें सरकार निजी हाथों में सौंप सकती है। केबिनेट सचिव राजीव गौबा के नेतृत्व में एक हाई लेवल कमिटी इन नामों पर चर्चा कर रही है। इससे पहले NITI आयोग ऐसे बैंकों की सूची जारी कर चुका है, जो निजीकरण के लिए अच्छे दावेदार कहे जा सकते हैं।

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इस हाई लेवल कमिटी में राजीव गौबा के अलावा आर्थिक मामलों के सचिव, राजस्व सचिव, व्यय सचिव, कॉर्पोरेट मामलों के सचिव, कानूनी मामलों के सचिव समेत निवेश एवं पब्लिक एसेट प्रबंधन विभाग के सचिव भी शामिल हैं। एक बार अगर यह कमिटी बैंकों के नाम पर मुहर लगा देती है तो उसके बाद यह रिपोर्ट मंजूरी के लिए Alternative Mechanism (AM) (कुछ मंत्रियों के समूह) के पास भेजी जाएगी और वहाँ से मंजूरी मिलने के बाद इसे पीएम मोदी के नेतृत्व वाली कैबिनेट के पास भेजा जाएगा।

पिछले कुछ समय से सुविधाओं को बेहतर करने के लिए वित्त मंत्रालय निजी सेक्टर को बैंकिंग क्षेत्र में लेकर आ रहा है। इसके चलते एक तरफ देश में निजी सेक्टर के बैंकों का दायरा बढ़ रहा है तो वहीं दूसरी ओर देश पर बोझ बन चुके और नौकरशाही से जूझ रहे बैंकों से भी देश को छुटकारा मिल रहा है। देश का बैंकिंग सेक्टर जिस प्रकार Non Performing Assets यानि NPA से जूझ रहा है, उसे देखते हुए इस सेक्टर में निजी हस्तक्षेप की अधिक ज़रूरत आन पड़ी है।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक लगातार अपनी छवि खोते जा रहे हैं, जिसके कारण आज हालत यह है कि सभी सरकारी बैंकों की मिली-जुली मार्केट वैल्यू निजी सेक्टर के एक अकेले HDFC बैंक से भी कम है। देश के सभी सरकारी बैंकों के लिए यह बेशक चिंता का विषय है। ऐसे में इन बैंकों को जितना जल्दी हो सके, निजी सेक्टर के हवाले कर देने से ही फायदा होगा। सरकार इसी दिशा में सफलतापूर्वक आगे बढ़ भी रही है।

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