चिराग पासवान की LJP पर छाये संकट के बादल, चाचा समेत कई नेताओं ने की बगावत

अपने ही, पार्टी में बेगाने हो गए!

एलजेपी

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बिहार के राजनीतिक गलियारों में भूचाल आया हुआ है। इतिहास के राजघरानों की तरह बिहार के लोक जन शक्ति पार्टी के अंदर तख्ता पलट हो चुका है। लोक जन शक्ति पार्टी (एलजेपी) के 6 में से 5 सांसदों ने चिराग पासवान को छोड़ उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुन लिया है। बता दें कि एलजेपी से कुल 6 सांसद है, 5 ने चिराग पासवान के खिलाफ बगावत कर दी है, जबकि छठे खुद चिराग पासवान है।

आपको बता दें कि चिराग पासवान ने बिहार विधान सभा चुनाव से पहले अपने कद से ज्यादा लंबी चाल चली। चिराग ने बिहार विधान सभा चुनाव एनडीए गठबंधन से अलग होकर लड़ा था। चूंकि एलजेपी और जेडीयू के वोटबैंक आपस में बंट गए इससे नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को भारी नुकसान हुआ था। जेडीयू विधान सभा नतीजों में तीसरे स्थान पर थी और इस पतन का मुख्य कारण एलजेपी का एनडीए से अलग होना था।

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बहरहाल ,नीतीश कुमार भी अपना हिसाब चुकता किए बिना चिराग पासवान को कैसे छोड़ देते। बता दें कि दो दशकों से लोक जन शक्ति पार्टी के नेतृत्व करने वाले राम विलास पासवान थे, परंतु पिछले साल उनकी मृत्यु हो गई और इस प्रकार उनके बेटे चिराग पासवान ने राजवंश की तरह खुद को पार्टी का नेता मान लिया। वहीं पार्टी के बाकी नेता चिराग के नेतृत्व से खुश नहीं थे। इसी कड़ी में चिराग ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारते हुए एलजेपी को बिहार विधान सभा में स्वावलंबी लड़ने का फैसला किया। इसका नतीजा पार्टी के लिए भयावह साबित हुआ, एलजेपी केवल एक सीट ही जीत पाई, लेकिन साथ ही में नीतीश कुमार का वोट बैंक का बंटवारा हो गया जिससे उन्हें बड़ा झटका लगा था।

फिर क्या था! चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार के बीच पहले से ही दरार थी, उस दरार को नीतीश कुमार ने अच्छे से भुनाया और आज नतीज़ा सभी के समक्ष है। लोक जन शक्ति पार्टी के 5 सांसदों ने लोक सभा स्पीकर से मिलकर चिराग के चाचा को अपना नेता घोषित कर दिया है और देखते ही देखते चिराग पासवान अपने ही पार्टी में बेगाने हो गए।

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वहीं दूसरी तरफ एनडीए की सबसे प्रमुख पार्टी बीजेपी ने इस पूरे मामले में खुद को अलग रखा है, क्योंकि बिहार में एनडीए की एकता चिराग पासवान के एलजेपी का नेता रहते संभव नहीं थी, क्योंकि नीतीश कुमार को उनके नाम पर सख्त एतराज था। यहीं नहीं, नीतीश यह कतई नहीं चाहते थे कि केंद्र में एनडीए की किसी भी बैठक में चिराग पासवान को बुलाया जाए या फिर बीजेपी उनके साथ कोई रिश्ता रखे।

इस पूरे घटनाक्रम से एक संदेश साफ मिल रहा है कि एनडीए गठबंधन के सारी पार्टियों को गठबंधन के हित के अनुसार चलना होगा अगर वो ऐसा नहीं करते है तो उनका हश्र वही होगा जो आज चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी का हुआ है।

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