उत्तर प्रदेश के CM योगी आदित्यनाथ के संबंध में अकसर ये कहा जाता है कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र के नक्शे-कदम पर चलकर ही उत्तर प्रदेश में विकास का राम राज्य लाने की कोशिश करते हैं। इसमें एक बड़ी दिक्कत कार्यपालिका के अंतर्गत आती है। लखनऊ में हुई बीजेपी नेताओं की बैठक में भी ये सामने आया है कि अधिकारियों द्वारा नेताओं की बातों को नजरंदाज किया जाता है। ऐसे में इस बैठक के बाद यूपी में कुल दो तीन दिनों में 18 से ज्यादा IAS अधिकारियों के तबादले हुए हैं, जो इस बात का संकेत है कि उत्तर प्रदेश में अधिकारियों के स्तर पर CM योगी बड़े बदलाव कर रहे हैं। पीएम मोदी ने इसी तरह केन्द्र में अधिकारियों के रवैए को सुधारने की कवायद की थी।
Hindustan Live की एक खबर के अनुसार, उत्तर प्रदेश में इस वक्त अधिकारियों के तबादले का काम काफी तेजी में चल रहा है। पिछले दो तीन दिनों में 8 जिलों के डीएम सहित 18 IAS अधिकारियों के तबादले की खबरें आ रही है। राज्य में बड़े स्तर पर अधिकारियों का डिमोशन करने के साथ ही उन्हें उनके प्रदर्शन के आधार पर पद दिए जा रहे हैं और लगातार ट्रांसफर प्रक्रिया चल रही है, जो कि CM योगी के सख्त रुख को जाहिर कर रहा है। जानकारों का मानना है कि ये प्रक्रिया अभी और लंबी भी चल सकती है।
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सभी के मन में ये सवाल उठ सकता है कि अचानक राज्य के अधिकारियों के महकमें में इतने तबादलें करने का मतलब क्या है। इसके पीछे की बड़ी वजह पिछले दिनों हुई बीजेपी नेताओं की बैठक है। बीजेपी आलाकमान की तरफ से भेजे गए बीएल संतोष की बैठक में बीजेपी की राज्य इकाई के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया है कि सरकार और CM योगी आदित्यनाथ का रवैया सकारात्मक रहने के बावजूद अधिकारियों का रवैया रूखा रहता है, जिसके चलते क्षेत्र के कई काम लटक जाते हैं। विधायकों समेत पार्टी नेताओं ने ब्यूरोक्रेसी में सुधार के लिए बदलाव का सुझाव दिया था। ऐसे में ये माना जा रहा है कि हाल ही में हुए तबादलों का सीधा संबंध उस बैठक से हैं।
CM योगी आदित्यनाथ चुनाव से पहले राज्य में बीजेपी की स्थिति को अधिक मजबूत करने की तैयारी में हैं। साथ ही उनका निशाना वो अफसर भी हैं जो जनहित के कार्यों में सबसे बड़ा रोड़ा बनते हैं। वहीं CM योगी के इन कदमों को लेकर अब ये भी कहा जाने लगा है कि जिस तरह से पीएम मोदी ने केंद्र की राजनीति में नौकरशाहों पर नकेल कसी है, कुछ वैसा ही रुख अब CM योगी आदित्यनाथ भी अपना रहे हैं, जो कि जनहित के मुद्दे पर राज्य की 22 करोड़ जनता के लिए सार्थक हो सकता है।
पीएम मोदी ने IAS का एकाधिकार खत्म करते IRS. और IPS स्तर के लोगों को भी सचिव पद के लिए 20 वर्ष से अधिक के अनुभव और कुशल कार्यकाल के आधार पर योग्य घोषित कर दिया, जिसे एक बेहतरीन पहल के रूप में देखा जा रहा है। इसके अलावा वर्ष 2014 में सत्ता संभालने के बाद से ही मोदी सरकार ने सबसे ज्यादा पारदर्शिता लाने पर काम किया है। सरकार ने नौकरशाही में लेटरल एंट्री (पार्श्विक प्रवेश) योजना शुरू की, जिसके तहत 40 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों और अर्थशास्त्र, विमानन वाणिज्य व अन्य क्षेत्रों में 15 साल के अनुभव के साथ संयुक्त सचिव पद पर नियुक्त किया जा सकता है, जिसे ब्युरोक्रेसी के अब तक के सबसे बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है।
IAS अधिकारियों की प्रतिभा को लेकर किसी को भी शक नहीं है, लेकिन सुस्ती और भ्रष्टाचार के रवैए ने इस अमले के अधिकारियों की छवि धूमिल कर रखी है। इसलिए अब बदलाव की बयार चलने लगी है। कुछ इसी तर्ज पर ये माना जा रहा है कि जल्द उत्तर प्रदेश के CM योगी आदित्यनाथ भी कार्य करते दिखेंगे। अगर ये कहा जाए कि देश में लेटरल नियुक्ति करने वाला पहला राज्य यूपी होगा तो ये अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि योगी पूर्णतः पीएम मोदी के सुझाए मार्गों पर चल रहे हैं।
राजनीतिक उठा-पटक के बीच यूपी में ट्रांसफर पोस्टिंग का ताबड़तोड़ कार्यक्रम नौकरशाही पर नकेल कसने की कोशिश मानी जा रही है। CM योगी आदित्यनाथ अधिकारियों को ठीक उसी तरह से सब सिखा रहे हैं जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिखाते हैं।