पंजाब में कांग्रेस की सरकार में हुई उथल-पुथल अब विशाल रूप लेने लगी है। कांग्रेस पार्टी में अब अपने ही मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ असंतोष दिखा रहे हैं और खुलेआम उनका विरोध कर रहे हैं। कई विधायकों द्वारा CM अमरिंदर सिंह के खिलाफ बगावत अब न सिर्फ कांग्रेस का पंजाब के विधानसभा चुनावों में हार का कारण बनेगा, बल्कि यह बीजेपी की चुनावी राह को आसान बनाएगा।
दरअसल, पंजाब कांग्रेस में बगावत अब अमरिंदर सिंह के गले की फांस बन चुका है। अपने ही विधायक उनके खिलाफ तख्तापलट करने में लगे हुए हैं और खास बात यह है कि कांग्रेस हाईकमान भी इसमें बागी विधायकों के साथ दिखाई दे रहा है।
हाल के कुछ सप्ताह में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तीखी बयानबाजी देखने को मिली है। विधायक परगट सिंह और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कुछ अन्य नेताओं ने भी मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि कांग्रेस आलाकमान को असंतुष्ट विधायकों और मंत्रियों की शिकायतों को सुनने के लिए तीन सदस्यीय पैनल का गठन करना पड़ा। सिद्धू ने मंगलवार को मल्लिकार्जुन खड़गे, हरीश रावत और जेपी अग्रवाल की सदस्यता वाले पैनल से मुलाकात कर अपने विचार रखे थे। समिति से मुलाकात के बाद उन्होंने कहा था कि ‘सत्य प्रताड़ित हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं हो सकता।’ पिछले तीन दिनों में राज्य के करीब 80 कांग्रेस नेता इस समिति के समक्ष पेश होकर अपनी बात रख चुके हैं। इनमें से अधिकतर विधायक हैं। सूत्रों ने बताया कि बुधवार को समिति से मुलाकात करने वाले कुछ नेताओं ने सरकार से जुड़े मुद्दे उठाए तो कुछ नेताओं ने 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले संगठन को दुरुस्त करने की मांग उठाई।
असंतुष्ट विधायकों और मंत्रियों की शिकायतों को सुनने के लिए कांग्रेस आलाकमान द्वारा गठित तीन सदस्यीय पैनल ने विभिन्न मुद्दों को पाया है जिससे अमरिन्दर सिंह को दोबारा कमान देने की स्थिति में कांग्रेस पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी होती दिखाई दे रही हैं।
असंतुष्ट विधायकों ने जमीन, बालू, ड्रग, केबल और अवैध शराब माफियाओं के अस्तित्व समेत कई मुद्दे उठाए हैं। उन्होंने सीएम अमरिंदर सिंह पर निरंकुश अंदाज में काम करने का भी आरोप लगाया है। इसके अलावा, गुरु ग्रंथ साहिब के अपमान के 170 मामलों को न सुलझाने के मुद्दे ने न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं को, बल्कि उन आम लोगों को भी नाराज किया है जिनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है।
प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों और धार्मिक संगठनों के विरोध का सामना करते हुए, कैप्टन के विरोधियों जैसे नवजोत सिंह सिद्धू और परगट सिंह ने अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। सिद्धू ने यहां तक आरोप लगाया है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह असली दोषियों को बचाना चाहते थे और शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर काम कर रहे थे। ऐसी स्थिति में अब कांग्रेस आलाकमान की और से गठित पैनल भी बागी विधयाकों की ओर झुका दिखाई दे रहा है। अगर अमरिंदर सिंह का तख्तापलट हुआ तो कांग्रेस आठ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में फिर से शायद ही अमरिंदर को सीएम के रूप में उतारे।
हालांकि, ये कांग्रेस पार्टी के लिए घातक साबित हो सकता है क्योंकि ये अमरिंदर की लोकप्रियता ही है जिस कारण पंजाब में कांग्रेस सत्ता में आ सकी थी। ऐसे में चुनाव से मात्र आठ महीने पहले राज्य में नेतृत्व संकट पैदा कर अपने ही घर में आग लगाना कांग्रेस के लिए घातक साबित हो सकता है। पंजाब की जनता का अमरिंदर सिंह पर भरोसा किसी से छुपा नहीं है। ऐसे में अमरिंदर के हटाये जाने से पंजाब में कांग्रेस के पास नवजोत सिंह सिद्धू के अलावा कोई विकल्प दिखाई नहीं देता है जबकि जनता नवजोत सिंह सिद्धू को पसंद नहीं करती है।
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ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस का अमरिंदर को हटाना अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारना जैसा होगा। इससे कांग्रेस का पंजाब में अस्तित्व भी खतरे में आ सकता है। वहीं अगर पंजाब की जनता के पास अन्य विकल्पों को देखा जाये तो शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी है। SAD के दिन ख़राब ही चल रहे हैं और जनता ने उनसे तंग आ कर ही अमरिंदर सिंह को सत्ता सौंपी थी। तब जनता के पास तीसरे विकल्प की कमी थी जो अब पूरी हो गई है। बीजेपी भी ऐसे अवसर को अवश्य ही भुनाना चाहेगी राज्य में अपने रसूख को और मजबूत करने का प्रयत्न करेगी। अब देखना यह है कांग्रेस हाईकमान कब तख्तापलट करता है।