दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में कई दशकों से सत्ता के बाहर रही कांग्रेस पार्टी ने प्रियंका गांधी के नाम और मुसलमानों के वोट के जरिये अपनी वापसी का रोडमैप बनाया है। जम्मू-कश्मीर, केरल और पश्चिम बंगाल, असम की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी रहती है जो चुनावों को प्रभावित करती है। उत्तर प्रदेश में 143 सीट ऐसी हैं जिसपर मुसलमानों का प्रभाव है। इसमें से 70 सीटों पर 20 से 30 प्रतिशत और 73 सीटों पर 30 से 45 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। 16 जिलें ऐसे हैं जहाँ लगभग 30 से 50 प्रतिशत तक मुस्लिम आबादी है।
कांग्रेस ने इसी कारण मुसलमानों को साधने के लिए UP के 2 लाख मदरसों की एक लिस्ट के साथ 5 सूत्रीय कार्यक्रम तैयार किया है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस की योजना है।
- मुस्लिम वोटरों को पार्टी से जोड़ने का अभियान मदरसों से शुरू किया जाएगा।
- गांवों से लेकर शहर तक के मोहल्लों में चल रहे 2 लाख मदरसों की लिस्ट बनाई गई है।
- पार्टी कार्यकर्ता इन मदरसों में जाकर उलेमाओं के साथ बैठक करेंगे और मदरसों के छात्र-छात्राओं को कांग्रेस की नीतियों और चुनावी एजेंडे की जानकारी देंगे।
- मदरसों के छात्र-छात्राओं की मदद से उनके घर तक पहुंचेंगे।
- कोरोनाकाल में जिन मुसलमानों को दिक्कतें हुईं हैं उनकी मदद करेंगे।
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस की योजना है कि सपा के खिलाफ यह प्रचार किया जाए कि वह भाजपा के साथ अंदरूनी सांठ गांठ करके चलती है। इसके पीछे मुलायम सिंह यादव के उस बयान को आधार बनाया जा रहा है, जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी की तारीफ की थी। मुलायम सिंह यादव ने संसद में कहा था कि उनकी इच्छा है कि नरेंद्र मोदी दुबारा प्रधानमंत्री बनें।
उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस के अध्यक्ष शहनवाज आलम का कहना है कि पार्टी में मुस्लिमों की उपेक्षा के चलते 1990 के बाद से अल्पसंख्यक वोट खिसक कर सपा और बसपा की ओर जाने लगा। दरअसल, 1990 के पहले कांग्रेस मुस्लिम और ब्राम्हण वोट को मुख्य आधार बनाकर तथा SC वोट के भरोसे चुनाव लड़ती थी। उस समय इंदिरा गांधी उसके बाद राजीव गांधी को ब्राम्हण माना जाता था और स्थानीय स्तर पर भी ND तिवारी जैसे नेता साथ थे। बाबू जगजीवन राम को दलित चेहरा बनाकर कांग्रेस चुनाव में दलितों को साधती थी।
फिर SP BSP का उत्थान हुआ और राममंदिर आंदोलन चला। मुस्लिम सपा के साथ चले गए, दलित बसपा के साथ और सवर्ण हिन्दू भाजपा के साथ। आज भाजपा ने तमाम लोककल्याणकारी योजनाओं जैसे गैस कनेक्शन, आयुष्मान भारत, घर घर शौचालय, प्रधानमंत्री आवास योजना आदि से दलित और ग्रामीण लोगों में अच्छी पैठ बना ली है, साथ ही सवर्ण बिरादरियों के अतिरिक्त अन्य ओबीसी बिरादरियों को भी हिंदुत्व के झंडे के नीचे ला दिया है। ऐसे में कांग्रेस के पास सबसे आसान रास्ता यही बचता है की मुख्य मदद मुसलमानों से ली जाए।
इसमें भी कांग्रेस की योजना मुख्यतः OBC मुसलमानों को जोड़ने की है। शहनवाज के मुताबिक, सूबे में करीब 8-10% यादव हैं, जबकि मुस्लिम OBC की संख्या इससे कहीं ज्यादा है। इसमें खासतौर पर अंसारियों की संख्या ज्यादा है। गोरखपुर में करीब चार लाख, मऊ में करीब साढ़े तीन लाख, बनारस में चार लाख, मुबारकपुर आजमगढ़ में करीब दो लाख, अंबेडकरनगर में करीब चार लाख अंसारी हैं।
कांग्रेस मदरसों के जरिए कितना प्रभाव डाल सकेगी यह देखने लायक होगा। हालांकि, उम्मीद बहुत कम ही है कि उसे कोई विशेष लाभ मिलेगा। हाल ही में बिहार चुनाव में मुस्लिम वोटबैंक बंटने के कारण भाजपा गठबंधन सरकार में आया था। इसके बाद मुसलमानों ने तुरंत अपनी नीति बदली और केवल भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंद्वी दल का ही समर्थन किया। पश्चिम बंगाल और असम में जिसप्रकार मुस्लिम समुदाय ने वोट किया है, उसे देखकर यह साफ पता चलता है कि मुस्लिम समुदाय योजनाबद्ध तरीके से पोलिंग कर रहा है। ऐसे में मुसलमान भाजपा के विरुद्ध कांग्रेस का साथ तभी देंगे जब वह खुद को सपा से मजबूत प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश कर सके।