बिग टेक UN की आड़ में हमें मानवाधिकारों का पाठ पढ़ाना बंद करो, भारत में ये कानून तो बना रहेगा

संयुक्त राष्ट्र आईटी नियम

PC: Republic World

पश्चिमी देशों के कठपुतली संस्थान संयुक्त राष्ट्र संघ के कुछ विशेषज्ञों ने भारत सरकार को नए आईटी एक्ट के नियम को लेकर चिंता जाहिर की है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि नए नियम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरोधी हैं। भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं पर आधिकारिक बयान देकर उन्हें नए आईटी नियमों के प्रति आश्वस्त किया है।

संयुक्त राष्ट्र के कुछ विशेष दूत इस बात को लेकर चिंतित थे कि भारत सरकार के बनाए गए नए आईटी एक्ट के नियम अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं हैं। हालांकि, विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि इन लोगों ने सिवाए मीडिया रिपोर्ट के नियमों के बारे में कुछ विशेष जानकारी नहीं जुटाई होगी। न ही इन लोगों ने सरकारी वेबसाइट और गूगल पर उपलब्ध अन्य माध्यमों से इन नियमों के बारे में अधिक जांच पड़ताल की होगी,लेकिन फिर भी अपनी आदत से मजबूर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि, भारत सरकार को सीख देने में पीछे नहीं रहे।

हालांकि, भारत ने जेनेवा स्थित स्थाई कमीशन के जरिये संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के मुख्यालय को जवाब भेज दिया है। सरकार ने कहा है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल चाइल्ड पोर्नोग्राफी, वित्तीय फ्रॉड, हिंसा आदि को बढ़ावा देने में होता था, जिसके चलते उन्हें नए आईटी नियम बनाने पड़े। सरकार ने बताया कि उसका उद्देश्य सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल को रोकने और लोगों की शिकायत को दूर करने का है।

नए आईटी नियम के अनुसार सोशल मीडिया प्लेटफार्म को किसी भी कंटेंट को पोस्ट करने वाले व्यक्ति का डाटा अपने पास रखना होगा। अगर कोई व्यक्ति सोशल मीडिया के जरिये कोई झूठी खबर फैलाता है, तो सरकार डाटा बेस के जरिये उसतक पहुंच सकती है। जैसे व्हाट्सप्प का ही उदाहरण लें तो व्हाट्सप्प पर कोई वीडियो वायरल कर ले झूठी खबरें फैलाने के कारण मॉब लिंचिंग, दंगे आदि घटनाएं हो जाती हैं, ऐसे में अगर व्हाट्सप्प के पास कन्टेन्ट को सबसे पहले अपलोड करने वाले और वायरल मैसेज को तैयार करने वाले कि जानकारी रहेगी तो सरकार कम से कम ऐसे लोगों तक पहुंच सकेगी जो हर बार व्हाट्सप्प के जरिए अफवाह फैलाते हैं।

इसी प्रकार कई अन्य प्रावधान हुए हैं जैसे OTT प्लेटफार्म पर आने वाली फिल्मों को यूनिवर्सल ग्रेडिंग के तहत रखना होगा, साथ ही ऐसे कन्टेन्ट को जो बच्चे नहीं देख सकते, उनकी पहुंच को नियमित करने के लिए कदम उठाने होंगे। ऑनलाइन प्लेटफार्म पर काम कर रहे मीडिया संस्थानों को भी प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के तहत लाया जाए और प्रेस और मीडिया से जुड़े नियम उनपर भी लागू हों।

सरकार ने चीफ कंप्लेंट ऑफिसर, नोडल अधिकारी समेत अन्य अधिकारियों की तैनाती का नियम बनाया है, जिससे लोगों की शिकायत का निवारण हो सके। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति अगर किसी महिला से अश्लीलता कर रहा है तो सोशल मीडिया के अधिकारियों से उसकी शिकायत हो सके और उन्हें भी इस मामले में 15 दिनों में अपनी रिपोर्ट भेजनी पड़ेगी। साथ ही अगर उपयुक्त सरकारी एजेंसी नियम के तहत देश की एकता, अखंडता या आंतरिक सुरक्षा के विरुद्ध काम कर रहे किसी कंटेंट, पेज आदि को हटाने का आदेश देती है या कोई कोर्ट ऐसा करती है तो सोशल मीडिया प्लेटफार्म को उनकी बात माननी पड़ेगी। ऐसे ही अन्य कई महत्वपूर्ण सुधार लागू करने को कहा गया है।

लेकिन बिना नए सुधारों की भूमिका और कारण समझे ही संयुक्त राष्ट्र ने आईटी नियम को मानवाधिकार मानदंडों के स्तर पर अयोग्य घोषित कर दिया। UN के विशेषज्ञों को इसके पीछे साजिश दिखने लगी कि सरकार कोरोना के फैलाव और किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में इन नियमों को लाई है जिससे लोगों की आवाज दबाई जा सके। कभी बाजार की स्वतंत्रता तो कभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर संयुक्त राष्ट्र हमेशा ऐसी बकवास करता है, जो केवल और केवल पश्चिमी देशों में काम कर रही बड़ी कंपनियों को ही लाभ पहुंचाए। यहाँ भी वह यही कर रहा है। वास्तव में नए नियमों के अनुरूप डाटा बेस तैयार करने, उसे सुरक्षित रखने और नए अधिकारी नियुक्त करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को पैसे खर्च करने पड़ेंगे और कोई सोशल मीडिया संस्थान यह नहीं चाहता। अगर एक देश में ऐसे नियम मान लिए गए तो कई और देश ऐसी मांग कर सकते हैं। इसी कारण सारे मामले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नामपर लड़ाई की तरह दिखाकर, अपना हित साधने की कोशिश हो रही है।

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