1 लाख करोड़ के NBFC स्कैम मामले में चिदम्बरम का करीबी और पूर्व IL&FS अध्यक्ष पुलिस की गिरफ़्त में

PC: janman.tv

चेन्नई पुलिस के Economic Offences Wing (EOW) ने Infrastructure Leasing & Financial Services (IL&FS) group के प्रमुक्ज रवि पार्थसारथी को एक लाख करोड़ के घोटाले के मामले में 11 जून को गिरफ्तार किया है। अपने बयान में EOW ने कहा “IL&FC घोटाले में मास्टरमाइंड और मुख्य आरोपी रवि पार्थसारथी को EOW द्वारा अपराध संख्या 13/2020, तारीख 20.09.2020 मामले में अरेस्ट कर लिया गया है। IL&FS ग्रुप, जिसमें 350 कंपनियां थीं, उसका इस्तेमाल, उस समय ग्रुप की प्रबंधन समिति द्वारा, जिसके तात्कालिक CEO पार्थसारथी थे, फ्रॉड के लिए किया जा रहा था।” अब पार्थसारथी को अगले 15 दिनों के लिए पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया है।

पार्थसारथी ने IL&FS के इस्तेमाल से जब घोटाला किया था उस समय वित्तमंत्री पी चिदंबरम थे। पार्थसारथी को चिदंबरम का खास आदमी माना जाता है। पार्थसारथी को मुंबई से गिरफ्तार किया गया है। पार्थसारथी ने मद्रास हाईकोर्ट में अंतरिम जमानत के लिए याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया है।

इस कंपनी के वित्तीय कार्रवाई में गड़बड़ी होने की जानकारी पहली बार 2018 में सामने आई थी। 2018 में कंपनी एक के बाद एक कई ऋण दायित्व पूरे करने में असफल रही। किसी कंपनी का ऋण दायित्व उस कंपनी द्वारा लिए गए ऋण को चुकाने की जिम्मेदारी को कहते हैं। IL&FC ने कई कंपनियों से ऋण लिए लेकिन समय पूरा होने पर उन्हें वापस नहीं कर सकी। कंपनी ने इसका कारण धन की कमी बताया था।

इसके बाद 63 Moons Technologies Ltd. नाम की कंपनी ने पार्थसारथी और अन्य लोगों पर 200 करोड़ के फ्रॉड का मुकदमा दायर किया था। इसी मामले की जांच होने पर IL&FC का पूरा घोटाला सामने आया है।

भारत सरकार ने जब इस घोटाले के संदर्भ में याचिका दायर की तो कहा “रवि पार्थसारथी और उनकी टीम वित्तीय विवरण के अच्छे होने के सब्जबाग दिखाकर जनता को गुमराह करने, लापरवाही और अक्षमता के लिए जिम्मेदार थी। कंपनी अपने नकदी प्रवाह और भुगतान दायित्वों के बीच एक गंभीर मिसमैच को छिपाकर अपने वित्तीय विवरणों को छिपा रही थी। यह लिक्विडिटी की कमी और स्पष्ट प्रतिकूल वित्तीय अनुपात को भी छिपा रही थी।”

दरअसल पार्थसारथी और IL&FC कंपनी की 2007 के समय की प्रबंध समिति ने लगातार अपनी कंपनी की व्यापारिक स्थिति को बढ़ा चढ़ा कर दिखाया, जिससे निवेशक लगातार निवेश करते रहें। जबकि वास्तविकता में कंपनी की हालत 2007 से ही बिगड़ने लगी थी। लेकिन कागज पर मजबूत दिखने के कारण इसे निवेश मिलता रहा और अंततः ये कंपनी निवेशकों के पैसे लौटाने में असमर्थ रही। इस प्रकार कंपनी के प्रबंध समिति ने करोड़ो का घोटाला किया। 2018 में इस कंपनी के विरुद्ध पहली FIR दायर होते ही केंद्र सरकार ने प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करते हुए पूरी प्रबंधन समिति में बड़ा फेरबदल किया। UPA सरकार में ठीक प्रकार से कंपनी के फाइनेंसियल स्टेटमेंट की जांच की गई होती तो कई निवेशकों को इस फ्रॉड से बचाया जा सकता था।

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