पायलट को भूल जाइये, राजस्थान CM के अपने वफादार ही आपस में भिड़ गये हैं

गहलोत अब अपने ही गुट में पड़ी फूट के कारण मुश्किलों में फंस गए हैं!

गहलोत सरकार ऑडिट

राजस्थान की राजनीति पिछले साल भर में काफी बदल गई है। कांग्रेस विधायक दल दो गुटों में बंट गया है। बगावत के बावजूद सचिन पायलट को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मात मिली थी, तब से लेकर अब तक अनेकों बार पायलट गुट के विधायक अपने तेवर दिखा चुके हैं, लेकिन अशोक गहलोत के लिए अब उनका ही गुट मुश्किलों का सबब बन गया है। कैबिनेट मीटिंग के दौरान उनके ही दो मंत्री आपस में भिड़ गए हैं, जिसकी वजह नए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा हैं, जिनके निर्णय और बातें मानने को कैबिनेट मंत्री तक तैयार नहीं है। इस टकराव के बाद गहलोत के अपने खेमें में ही दो गुट बन गए हैं, जो कि उनकी कुर्सी लिए बड़ा खतरा है।

राजस्थान की राजनीति में इस समय चल रहे बवाल के बीच कोरोना की त्रासदी और बोर्ड परीक्षाओं के लिए बुलाई गई मंत्रियों की बैठक राजनीतिक अखाड़ा बन गई। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और शिक्षा मंत्री गोविन्द सिंह डोटासरा की यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल के साथ तीखी नोंकझोंक नोक-झोंक हुई। ये टकराव इतना ज्यादा बढ़ गया कि बैठक में मौजूद दूसरे मंत्रियों को बीच-बचाव तक करना पड़ा। इन दोनोें ही मंत्रियों ने एक-दूसरे को देख लेने की धमकी तक दे डाली है। इस पूरे तमाशे को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मजबूरीवश चुपचाप देखते रहे।

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इस बैठक में फ्री वैक्सीन के मुद्दे पर गोविन्द सिंह डोटासरा ने जिला कलेक्टरों को ज्ञापन सौंपने का सुझाव दिया, लेकिन इसी मुद्दे पर शांति धारीवाल ने उनकी बात काट दी और कहा कि जिला कलेक्टर्स को ज्ञापन देने के बजाय राष्ट्रपति से केन्द्र सरकार की शिकायत करनी चाहिए, वो विरोध का अच्छा तरीका है। बीच में बात कटने पर अचानक ही डोटासरा भड़क गए, और आक्रोश में आकर बात करने लगे। इस पूरे प्रकरण की बात बाहर निकलने पर अशोक गहलोत काफी नाराज और सकते में हैं। गौरतलब है कि मीटिंग से बाहर आने के बाद भी दोनों के बीच लड़ाई जारी थी जो कांग्रेस के एकजुटता के दिखावे की पोल खोल रही है।

कांग्रेस में गहलोत गुट का एक बड़ा वर्ग तब से नाराज है, जब पायलट के हटने के बाद प्रदेश अध्यक्ष पद की कुर्सी गोविंद सिंह डोटासरा को दे दी गई थी। ये फ़ैसला अशोक गहलोत की शह पर ही हुआ था। खबरों के मुताबिक कांग्रेस नेता और मंत्री डोटासरा को अपना प्रदेश अध्यक्ष तक मानने को तैयार नहीं है। अध्यक्ष द्वारा तैयार किए जा रहे पार्टी के प्लान को कई मंत्रियों द्वारा सिरे से खारिज कर दिया जाता है, ये सभी मंत्री पार्टी के प्रत्येक मंच से डोटासरा की आलोचना करते नहीं थकते हैं।

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अशोक गहलोत ने सचिन पायलट की बगावत के बावजूद अपनी सरकार को अपने गुट के विधायकों के दम पर बचा लिया था, लेकिन आज की स्थिति में उनके ही गुट में प्रदेश अध्यक्ष और मंत्रियों के बीच सिर-फुटौअल की नौबत आ गई है। ऐसे में संभावनाएं बन सकती हैं कि ये गहलोत गुट के नाराज़ नेता सचिन पायलट खेमे का रुख करें, जिससे पार्टी में पायलट का पक्ष मजबूत हो जाए। पायलट गुट का मजबूत होना ही गहलोत के लिए मुसीबत बनेगा।

ऐसे में गहलोत जिन्हें बगावत कांड के बाद सत्ता का जादूगर माना जा रहा था, वो अब अपने ही गुट में पड़ी फूट के कारण मुश्किलों में फंस गए हैं, और पार्टी मे हो रही घटनाओं को किसी तमाशबीन की तरह ही देख रहे हैं।

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