GB पंत अस्पताल का वर्किंग एरिया में मलयालम भाषा पर रोक लगाना गलत नहीं था, पर वामपंथियों के कारण फैसला वापस लेना दुखद है

अब कारण भी जान लीजिए!

गोविंद बल्लभ पंत

Patrika

दिल्ली के गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल ने शनिवार को एक सर्कुलर जारी करके अपने नर्सिंग कर्मियों को काम के दौरान मलयालम भाषा का इस्तेमाल नहीं करने को कहा था। अब भारी विरोध के दबाव में आ कर इस फैसले को वापस ले लिया गया है। दिल्ली के गोविंद बल्लभ पंत इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (जीआईपीएमईआर) ने अपने नर्सिंग कर्मियों को काम के दौरान मलयालम भाषा का इस्तेमाल नहीं करने के निर्देश को वापस ले लिया है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने इस बात की जानकारी देते हुए कहा है कि “अस्पताल के सुप्रिटेंडेंट को मामले में मेमो जारी किया गया है। ये फैसला और आदेश कैसे जारी किया गया उन्हें इसका जवाब देने के लिए कहा गया है।” हालांकि, गोविंद बल्लभ पंत अस्‍पताल प्रशासन का कहना है कि बिना उनकी जानकारी से यह सर्कुलर जारी कर दिया गया था।

देखा जाये तो नोटिस वापिस लेने का गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल का फैसला गलत है। उन्होंने वर्किंग एरिया में ही रोक लगाई थी जहाँ मरीज होते हैं। यह फैसला सही था, क्योंकि दिल्ली में या नॉर्थ में ज्यादतर लोग हिंदी या इंग्लिश जानते है ऐसे में अगर कोई मलयालम में बात करेंगा तो कोई भी कैसे समझेगा? यह सामान्य प्रश्न है। अगर नर्सिंग स्टाफ अधिक है जो मलयालम भाषा का इस्तेमाल करते हैं, परन्तु अस्पताल में आने वाले मरीज हिंदी भाषी ही होते हैं। अगर गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल में आने वाले मरीज वर्किंग एरिया में अस्पताल के स्टाफ की बात ही न समझ पाए तो फिर उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ेगा। क्या अस्पताल प्रसाशन अलग-अलग भर्ती करे? यहाँ यह भी सवाल उठता है कि क्या मरीजों को अस्पताल में दाखिल होने से पहले मलयालम सीखनी चाहिए थी?

ऐसा लगता है कि गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल प्रशासन ने लिबरल ब्रिगेड के दबाव में आ कर इस फैसले को पलटने का निर्णय लिया है। राहुल ने इस मामलें में ट्वीट करते हुए लिखा, “मलयालम भाषा भी उतनी ही भारतीय है, जितनी की देश की अन्य भाषाएं हैं। भाषा के आधार पर इस तरह के भेदभाव को रोका जाना चाहिए।”

वहीं जयराम रमेश ने इसे आश्चर्यजनक बताया। इसी तरह, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इसे ‘अस्वीकार्य, असभ्य, आक्रामक और भारतीय नागरिकों के बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन’ बताया। कुछ लोगों ने इस मामले पर राजनीति भी शुरू कर दी उत्तर दक्षिण में विवाद को बढ़ाने लगे।

दिल्ली मलयाली नर्स नामक एक संघ समूह ने शनिवार को ट्विटर पर हैशटैग ‘#RIGHT_TO_SPEAK_MALAYALAM’ के साथ आदेश पर अपना आक्रोश व्यक्त किया।

इस संघ ने ट्वीट किया कि, “जीबीपीएच दिल्ली के एनएस द्वारा मलयालम बोलने पर रोक लगाने वाले आदेश की कड़ी निंदा करते हैं। यह भाषाई आधार पर एक विशिष्ट उत्पीड़न है और भाषा के आधार पर रंगभेद पैदा करना है।“

बता दें कि शनिवार को एक सर्कुलर जारी करके अपने नर्सिंग कर्मियों को काम के दौरान मलयालम भाषा का इस्तेमाल नहीं करने का आदेश दिया गया था। इसमें कहा गया था कि, ‘‘अधिकतर मरीज और सहकर्मी इस भाषा को नहीं समझते हैं। जिसके कारण उन्हें बहुत असुविधा होती है।” साथ ही इसमें नर्सों से कहा गया है कि वे संवाद के लिए केवल हिंदी और अंग्रेजी का उपयोग करें। ऐसा ना करने पर उन्हें अस्पताल प्रसाशन की ओर से ‘कड़ी कार्रवाई’ का सामना करना पड़ेगा।

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गोविंद बल्लभ पंत नर्सेज एसोसिएशन के अध्यक्ष लीलाधर रामचंदानी ने दावा किया कि एक मरीज द्वारा स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी को अस्पताल में मलयालम भाषा के इस्तेमाल के संबंध में भेजी गई शिकायत के बाद ये सर्कुलर जारी किया गया था। हालांकि, उन्होंने कहा कि ‘‘एसोसिएशन इसमें इस्तेमाल किए गए शब्दों से असहमत है।’’

यह वास्तविकता भी है गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल द्वारा दिए गए आदेश में इस्तेमाल शब्द सही नहीं थे, लेकिन मकसद सही था। यह स्पष्ट है कि UP या दिल्ली के अस्पताल में अगर कोई कन्नड़ या मलयालम बोलेगा तो लोगो को कुछ भी समझ नहीं आएगा और अगर समझ में ही नहीं आएगा तो एक हिन्दीभाषी अपने ही क्षेत्र में अस्पताल का लाभ नहीं उठा पायेगा।

UP में ही इतनी बोली हैं कि हर दूसरे जिले में एक अलग बोली सुनाई पड़ती है, लेकिन जब अस्पताल जैसे सार्वजानिक स्थान की बात आती है तो लोग हिंदी में ही बोलते हैं जिससे मरीजों को समझने में आसानी हो। तो GB Pant अस्पताल ने अपने मरीजों के हालात और उनकी मज़बूरी देखते हुए अगर नर्सिंग स्टाफ से हिंदी या अंग्रेजी के इस्तेमाल के लिए आदेश दिया तो गलत कैसे था? हां यह कहा जा सकता है उसके तरीके की या सर्कुलर में इस्तेमाल शब्दों की अलोचना होनी चाहिए पर इसे दक्षिण-उत्तर के बीच विवाद या भाषा युद्ध में बदलना बिल्कुल गलत है।

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