देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस आजकल युवा नेताओं से विहीन होती जा रही है। पार्टी ऐसे मुहाने पर खड़ी है, जहां राहुल गांधी के अलावा केवल तीन-चार युवा कांग्रेसी नेता ही बचे हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के लिए नई मुसीबत पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद लेकर आए हैं। जितिन प्रसाद ने बीजेपी का दामन थाम कांग्रेस क़ो उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा झटका दिया है। इसकी बड़ी वजह ये है कि दिल्ली में बैठे आलाकमान में मुख्य तौर पर बुजुर्ग नेता हैं, जो कि युवाओं को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस की सेना धीरे-धीरे छोटी होती जा रही है।
कांग्रेस की सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि पार्टी नेतृत्व क्षमता न विकसित कर पाने के चलते अपने युवा नेताओं को खो रही है। बुधवार का दिन भी कुछ ऐसा ही था, क्योंकि पार्टी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में साइड लाइन किए जा चुके जितिन प्रसाद को खो दिया। जितिन प्रसाद को लेकर खबरें थी कि वो 2019 में ही पार्टी छोड़ सकते थे, लेकिन उस दौरान बीजेपी से बात न बन सकी और आज वो भाजपा का है हिस्सा हैं। ये बीजेपी पर निर्भर करता है कि वो उन्हें क्यों लाई और उनका इस्तेमाल कहां होगा, लेकिन यक्ष प्रश्न यही रहता है कि आखिर कांग्रेस के युवा नेता पार्टी में टिक क्यों नहीं पा रहे?
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मार्च 2020 में होली के दौरान पार्टी के युवा चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी को अलविदा कहकर अपने समर्थक विधायकों के दम पर मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार गिरा दी थी। इसी तरह 2016 में कांग्रेस ने असम की राजनीति में तरुण गोगोई की नौटंकियों के कारण हिमंता बिस्वा सरमा जैसा नेता को खो दिया था और आज वो बीजेपी की तरफ से राज्य के मुख्यमंत्री हैं। अब इसी तरह जितिन प्रसाद भी पार्टी छोड़ कर बीजेपी का रुख़ कर चुके हैं जो युवा नेताओं की असंतुष्टि का संकेत देता है।
पार्टी आलाकमान की बात करें तो कांग्रेस में मुख्य चेहरा तो राहुल गांधी को बनाकर रखा गया है, लेकिन पार्टी में उनकी न के बराबर चलती है। यही कारण हैं कि सिंधिया की मांगों को नकारा गया। तरुण गोगोई ने सोनिया का साथ पकड़े रखा और राहुल अपने युवा नेता हिमंता बिस्वा से ज्यादा ध्यान अपने कुत्ते पिडी पर लगाए रखा और उन्होंने भी पार्टी छोड़ दी। पिछले तीन चार सालों से जितिन प्रसाद की पार्टी में अवहेलना की जा रही थी और नतीजा अब सभी के सामने है।
भविष्य की बात करें तो महाराष्ट्र की राजनीति में मिलिंद देवड़ा को पार्टी ने साइडलाइन कर रखा है। ऐसे में उनके लिए भी पार्टी कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है जिसके चलते ये माना जा रहा है कि वो कभी भी पार्टी छोड़ सकते हैं। इसके इतर सबसे बड़ा संग्राम राजस्थान की राजनीति में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस के बड़े नेता सचिन पायलट के बीच चल रहा है। सचिन पायलट पिछले 2 सालों से लगातार पार्टी आलाकमान से अपने हितों को पूर्ण करने की बात कर रहे हैं, लेकिन नतीजा ठाक के तीन पात ही है।
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राजस्थान की बात करें तो 2018 के आखिरी में हुए विधानसभा चुनाव में जीत के बाद राहुल गांधी ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की प्लानिंग की थी, लेकिन उनकी प्लानिंग अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी के साथ रणनीति बनाकर फेल कर दी। पिछले कुछ दिनों में एक बार फिर सचिन पायलट के अपने बगावती तेवर दिखाना शुरू कर दिया है जिसके चलते राजस्थान सरकार की हालत ‘अब गई कि तब गई’ वाली हो गई है।
कांग्रेस के इन बड़े युवा नेताओं के पार्टी से बाहर निकलने के पीछे बड़ी वजह यही है कि पार्टी आलाकमान में कथित युवा नेता राहुल गांधी की लेश मात्र भी नहीं चलती है। राज्य की राजनीति के बुजुर्ग नेता सोनिया गांधी से रणनीति बनाकर पीछे के दरवाजे से अपने लिए सत्ता की मलाई खोज लेते हैं और मेहनत के बावजूद युवा नेताओं के पास कुछ नहीं आता जिसके चलते पार्टी में युवा नेताओं की सेना लगातार छोटी होती जा रही है।