अगर आपको JNU वामपंथ के विष से भरा हुआ लगता है तो, कुछ दिन तो गुजारिए TISS में!

TISS की छात्रा ने लिखा, 'भारतीय सेना कश्मीर में रेप करती है'

TISS

अक्सर हमने देखा है कि कैसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और जादवपुर विश्वविद्यालय जैसे संस्थान देश में विभाजनकारी तत्वों को बढ़ावा देते हैं। हमने देखा है कि, कैसे कुछ वामपंथी खुलेआम भारत को बर्बाद करने वाले व्यक्तियों अथवा संगठनों को अल्पसंख्यक तुष्टीकरण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बढ़ावा देते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों का एक अन्य वामपंथी संस्थान पर ध्यान जाता है, जिसका नाम है TISS यानी Tata Institute of Social Sciences, जो मुंबई में स्थित है।

हाल ही में, इस संस्थान का एक बार फिर विवाद से नाता सामने आया है। TISS की एक छात्रा ने एक लेख लिखा है, जिसमें कश्मीर को भारत के कब्जे में बताया गया है और भारतीय सेना को हिंसक, क्रूर और दमनकारी सिद्ध करने का प्रयास किया गया है –

उदाहरण के लिए इस थीसिस की प्रति को देखिए। टाटा सामाजिक संस्थान की हैदराबाद स्थित शाखा की छात्रा द्वारा तैयार की गई थीसिस के अनुसार भारतीय सेना कश्मीरी जनता पर अत्याचार ढ़ाती है।

इसे ‘वीमेंस स्टडीज’ में MA करने वाली अनन्या कुंडू ने तैयार किया है। वहीं ‘स्कूल और जेंडर स्टडीज’ की अस्सिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर नीलांजना रे ने इसे तैयार करने में उनका मार्गदर्शन किया है।

यहाँ सबसे हास्यास्पद बात पर गौर किया जाए तो कश्मीर में महिलाओं पर अत्याचार के लिए वहाँ के बहुसंख्यक मुसलमानों को नहीं, बल्कि भारतीय सेना को दोषी ठहराया गया है। थीसिस के अनुसार कश्मीरी महिलाओं को ‘पितृसत्तात्मक स्टेट और सोसाइटी’ से पीड़ित बताया गया है। साथ ही लिखा है कि आज़ादी के समय बड़ी संख्या में कश्मीरी, पाकिस्तान जाना चाहते थे।

इस थीसिस के अनुसार, जम्मू कश्मीर को भारतीय सोच ने ‘नेशनलिस्ट प्राइड’ और गर्मी की छुट्टियों का पर्यटन स्थल का विषय बना दिया है।

2019 में अनुच्छेद-370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने के दौरान लगे कर्फ्यू की बात करते हुए इसके असर पर बात करने का दावा किया गया है। थीसिस के अनुसार, ‘उस समय जम्मू कश्मीर में अब तक का सबसे बड़ा कम्युनिकेशन ब्लैकआउट हुआ था।’ लेकिन, गौर करने वाली बात ये है कि, कश्मीर के इतिहास की बात करते समय वहाँ के हिन्दुओं को एकदम से भुला दिया गया है।

यहाँ सिख और डोगरा राजाओं को भी विदेशी ही बताया गया है। डोगरा राजाओं पर कश्मीरियों की चिंता न करते हुए जनता से ज्यादा टैक्स लेने के आरोप लगाए गए हैं। राजा हरि सिंह को निरंकुश बताते हुए अनन्या कुंडू ने पाकिस्तान की मदद से जम्मू कश्मीर को भारत से अलग करने की कोशिश करने वालों को ‘स्वतंत्रता सेनानी’ बताया है।

जब भाषा ऐसी हो, “एक ऐसे राजा ने, जो खुद हार कर भाग रहा था, उसने एक पूरे क्षेत्र और वहाँ की जनता का विलय एक ऐसे देश में कर दिया जिसका उस पर कोई अधिकार ही नहीं था। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी फौज और स्वतंत्रता सेनानियों के साथ युद्ध कर, एक बड़े क्षेत्र लिया पर कब्ज़ा कर लिया। जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता को सुरक्षित रखने का भारत का कोई इरादा ही नहीं था, क्योंकि इसने जनमत संग्रह का वादा पूरा नहीं किया।”

लेकिन यदि आपको लगता है ये अशोभनीय है और भारतीय संस्कृति के नाम पर कलंक है, तो अभी आपने TISS के दर्शन ही कहाँ किये हैं। इस विषय पर TFI पोस्ट ने TISS के अन्य कैंपस को लेकर वहाँ पर भारत विरोधी तत्वों को दिए जा रहे बढ़ावे पर भी कवरेज की थी।

और पढ़ें : Tata Institute of Social Sciences शर्जील इमाम का समर्थन कर मुंबई का JNU बनना चाहता है

CAA आंदोलन के दौरान जब पूर्वोत्तर दिल्ली में हिंदुओं के विरुद्ध शरजील इमाम जैसे कट्टरपंथी आतंकियों ने दंगे भड़काए थे, तो TISS में उसके लिए समर्थन के लिए न सिर्फ नारे लगाए गए, बल्कि अभियान भी चलाया गया था।

TFIPost की ही एक पुरानी रिपोर्ट के अनुसार,

“जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, तब से ही TISS के राजनीतिक कार्यकर्ता JNU के साथ ताल से ताल मिला रहे हैं और वे भी JNSU के इशारों पर ही काम कर रहे हैं। हाल के वर्षों में जिस तरह की घटनाएँ इस संस्थान में हुई हैं और जिस तरह के नारे लग रहे हैं उससे तो यही कहा जा सकता है कि TISS, JNU के चचेरे भाई की तरह ही बर्ताव कर रहा है। मुम्बई के आज़ाद मैदान में LGBT+ प्राइड परेड के दौरान देशद्रोह के आरोपी शर्जील इमाम के समर्थन में नारेबाजी की गयी थी।”

उर्वशी चुड़ावाल समेत 50 लोगों पर “शारजील तेरे सपनो को हम मंज़िल तक पहुंचायेंगे” जैसे नारे लगाने के लिए देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था।

ऐसे में एक प्रश्न पूछना तो बनता है – जब इतनी वित्तीय सहायता और इतने संसाधन देने के बावजूद ऐसी संस्थाओं से उच्च कुल के विद्यार्थियों के बजाए केवल देश विरोधियों की लंबी कतारें ही तैयार की जा रही हों, तो फिर इन संस्थानों को वित्तीय संसाधन देते रहने का औचित्य ही क्या है?

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