हमारे देश में डॉक्टरों को भगवान का दूसरा रूप माना जाता है। लेकिन, जो दूसरे की जान बचाता है, उसकी जान की रक्षा करने के लिए देश में फिलहाल ऐसा कोई ठोस कानून नहीं है। बेशक, कानून है जैसे कि- Epidemic Diseases Amendment Act और हर एक राज्यों के अपने मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट पर दुर्भाग्य से इन दोनों कानूनों में कुछ कमियां है, जिसके बारे में हम बात करेंगे।
पहला आता है, Epidemic Diseases Amendment Act 1897, साल 2020 में जब कोरोना वारियर कहे जाने वाले डॉक्टरों के ऊपर हमले बढ़ गए थे, तब केंद्र सरकार ने सख्ती दिखाते हुए Epidemic Diseases Amendment Act 1897 में संशोधन करते हुए एक ऑर्डिनेंस पारित किया। ऑर्डिनेंस में यह था कि अगर किसी फ्रंटलाइन वर्कर के ऊपर कोविड महामारी के दौरान हमला होता है तो हमलावरों के ऊपर सख्त कार्रवाई के साथ साथ 7 साल की सजा भी हो सकती है। आरोपी को कार्रवाई के दौरान बेल भी नहीं मिलेगा।
इस कानून में दो खामियां है, पहला यह कि यह केवल कोरोना काल तक ही लागू होगा। यानी अगर कल कोरोना खत्म हो जाता है तो सरकार Epidemic Diseases (Amendment) Act 1897 को हटा सकती है, उसके बाद से फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए लाए गए ऑर्डिनेंस का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
दूसरा यह कि, इस एक्ट के संशोधन में “healthcare personnel” को सुरक्षा देने की बात कही गई है। healthcare personnel को परिभाषित करते हुए लिखा गया है कि, यह वह हेल्थ केयर वर्कर्स है, जो महामारी से जुड़े है। उदाहरण के लिए जैसे अगर कोई डेंटिस्ट, महामारी संबंधी जिम्मेदारियों से जुड़ा नहीं है और उसके ऊपर अराजक तत्व हमला कर देते है, तो अराजक तत्व के ऊपर Epidemic Diseases (Amendment) Act लागू नहीं होगा।
डॉक्टरों के ऊपर हो रहे जानलेवा हमले से निजात पाने के लिए करीब 19 राज्यों ने अपना मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट (MPA) लागू किया हुआ है। यह एक्ट संस्थानों और डॉक्टरों के साथ-साथ स्वतंत्र चिकित्सकों को कवर करता है। चिकित्सकों के खिलाफ हमलों और उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले अपराधियों को तीन साल तक की जेल और 50,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है।
हालांकि यह एक्ट जितना कठोर लगता है, वास्तव में ये उतना ही डॉक्टरों की रक्षा करने में विफल रहा है, क्योंकि यह न तो भारतीय दंड संहिता (IPC) और न ही आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) में शामिल है। इससे पीड़ितों को मदद के लिए पुलिस से संपर्क करना मुश्किल हो जाता है या बाद में संदिग्धों के खिलाफ शिकायत दर्ज करना मुश्किल हो जाता है।
बता दें कि स्वास्थ्य और देखभाल विभाग पर हिंसा की घटनाएं पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी हैं और अधिक व्यापक हो गई है। ऐसे में भारत के स्वास्थ्य विभाग से जुड़े डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिक्स के ऊपर हो रहे हिंसा के खिलाफ एक व्यापक, समान और प्रभावी कानून की आवश्यकता है।