जरूरत से ज्यादा Oxygen की मांग करने, और अन्य राज्यों को Oxygen संकट में धकेलने वाले केजरीवाल के खिलाफ एक्शन लिया जाना चाहिए

ऑक्सीजन ऑडिट

PC: The New Indian Express

केजरीवाल ने 4 गुना अधिक ऑक्सीजन की मांग की : ऑक्सीजन ऑडिट रिपोर्ट

खुद को दिल्ली का मालिक बताने वाले मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल पर यदि 12 राज्यों के ऑक्सीजन की कमी से मरने वाले लोगों की जान लेने का मुकदमा चलाया जाए, तो शायद कुछ गलत नहीं होगा। कोरोनावायरस की दूसरी लहर के दौरान जब देश के कुछ राज्य जीवन रक्षक ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे थे, तब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली को खपत से कम ऑक्सीजन मिलने के मुद्दे पर छाती पीट रहे थे। वहीं, अब ऑक्सीजन ऑडिट में सामने आया है कि केजरीवाल ने जरूरत से 4 गुना अधिक ऑक्सीजन की मांग की थी, जिसका नतीजा ये हुआ कि कोर्ट के दबाव में मोदी सरकार द्वारा दिल्ली को अन्य राज्यों के कोटे में कटौती कर आक्सीजन दी गई, जबकि जरूरतमंद लोगों तक ऑक्सीजन पहुंच ही नहीं सकी।

ऑक्सीजन ऑडिट टीम ने अपनी रिपोर्ट में ऐसे सबूत पेश किए हैं जिन पर सफाई दे पाना केजरीवाल सरकार के लिए आसान नहीं है। ऑक्सीजन ऑडिट टीम ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उसने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (NCTD) में Oxygen की आवश्यकता का आंकलन करने के लिए एक परफॉर्मा तैयार करके 260 अस्पतालों को बांट दिया था।

दिल्ली के 183 अस्पतालों ने अपने यहां Oxygen की खपत का आंकड़ा टीम को दिया था। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि अस्पतालों से मिले आंकड़ों को तीन पैमानों पर परखा गया- Oxygen की वास्तविक खपत, केंद्र सरकार के अनुसार Oxygen की आवश्यकता और दिल्ली सरकार के अनुसार Oxygen की आवश्यकता।

खपत से ज्यादा ओक्सिजन की मांग की गई

अब इन पैमानों के आधार पर ऑक्सीजन ऑडिट रिपोर्ट में सामने आया है कि अप्रैल-मई के दौरान दिल्ली में ऑक्सीजन की आवश्यकता मात्र 300 मिट्रिक टन की थी, लेकिन केजरीवाल ने चार गुना मांग बढ़ाते हुए 1200 मिट्रिक टन की आपूर्ति की मांग की। इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि दिल्ली की उच्चतम खपत को देखते हुए देश के 12 राज्यों में ऑक्सीजन की आपूर्ति में भारी कटौती की गई, और दिल्ली को भिजवाई गई, जिसकी दिल्ली को आवश्यकता ही नहीं थी।

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अप्रैल-मई के दौरान मुख्यमंत्री लगातार दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी का मुद्दा उठाते रहे। उन्होंने मोदी सरकार के खिलाफ लगातार दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा कर छाती पीटी। केजरीवाल ने दिल्ली में हो रहीं मौतों के लिए ऑक्सीजन की कमी को जिम्मेदार ठहराया और अधिकतम आपूर्ति के लिए दबाव बनाया।

इसका नतीजा ये हुआ कि दिल्ली को अन्य राज्यों के कोटे से कटौती कर ऑक्सीजन दी गई।  इसके विपरीत सच तो ये है कि केजरीवाल ने केवल राजनीतिक नौटंकी की थी, और लोगों को ये दिखाया कि उन्हें दिल्ली वासियों की चिंता है।

असल बात ये है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का ऑक्सीजन सप्लाई का तरीक़ा बेहद ही लचर था। ऑक्सीजन ऑडिट टास्क फोर्स ने ये भी पाया था कि 13 मई का दिन ही केजरीवाल की खपत की मांगों की पोल खोल चुकी थी, जब कई अस्पतालों में ऑक्सीजन टैंकरों को उतारा ही नहीं जा सका क्योंकि वहां पहले से ही 75 फीसदी से ज्यादा ऑक्सीजन थी। दिल्ली सरकार ने अस्पतालों में खपत 1140 मीट्रिक टन तक बताई जबकि गलतियां सुधरने पर खपत घटकर मात्र 209 मीट्रिक टन पर सिकुड़ गई।

केजरीवाल ने ऑक्सीजन खपत की भ्रामक जानकारी दी

साफ है कि केजरीवाल ने राजनीतिक नौटंकियों के लिए ऑक्सीजन पर भ्रामक खबरें फैलाकर मांग में दिन-प्रतिदिन बढ़ोत्तरी करवाई। अदालतों में लगातार छाती पीटने के कारण आकस्मिक तौर पर कोर्ट के दबाव के चलते मोदी सरकार ने अन्य राज्यों की ऑक्सीजन में कटौती कर दिल्ली को फिजूल आपूर्ति करवाई। यदि वो 900 मिट्रिक टन बर्बाद हुई ऑक्सीजन सही समय पर देश के अलग-अलग 12 राज्यों के अस्पतालों में पहुंचती, तो शायद ऑक्सीजन से हुई मौतों का आंकड़ा बेहद कम ही रह जाता, लेकिन दिल्ली में एक असंवेदनशील और राजनीतिक गिद्ध प्रवृत्ति का नेता शासन कर रहा है, जिसकी जिद अनेकों देश वासियों की मौत की अप्रत्यक्ष वजह बनी है।

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इस ऑक्सीजन ऑडिट रिपोर्ट में सामने आया कि दिल्ली के लिए ऑक्सीजन खपत की भ्रामक जानकारी देना, अदालतों में छाती पीटने के कारण दिल्ली को अन्य राज्यों के हिस्से की ऑक्सीजन मिलना, और उन राज्यों में ऑक्सीजन से लोगों की मौत होना, तीनों का कनेक्शन एक ही है और वो है अरविंद केजरीवाल। ऐसे में आवश्यक है कि अरविंद केजरीवाल पर भ्रामक खबरें फैलाने के साथ ही गैर-इरादतन हत्या का केस दर्ज होना चाहिए, क्योंकि इसके सीधे जिम्मेदार तो वो ही हैं।

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