ट्विटर यूजर विजय पटेल ने बॉलीवुड के हिन्दू विरोध को किया उजागर
इन दिनों बॉलीवुड का भाग्य बहुत अच्छा नहीं है। या तो आपकी फिल्म बहुत अच्छी है तभी चलेगी, अन्यथा किसी भी प्रकार का एजेंडा या प्रोपेगेंडा आपको जनता की नज़रों में विलेन बनाने के लिए पर्याप्त है। यहाँ तक कि ‘शेरनी’ जैसी फिल्म भी जनता की पैनी दृष्टि से नहीं बच पाई। ऐसे में एक ट्विटर यूजर ने तथ्यों सहित इस बात को उजागर किया है कि आखिर कैसे बड़ी सफाई से बॉलीवुड हमारे देश में लोगों को हमारी ही संस्कृति से विमुख करने में जुटा हुआ है। इस बात पर प्रकाश डाला है ट्विटर यूजर विजय पटेल ने।
विजय पटेल ने बॉलीवुड के इस ब्रेनवॉश एजेंडे पर बड़ी सफाई से प्रकाश डालते हुए ट्वीट किया, “आपको पता है, CIA से पहले अमेरिका की प्रमुख इंटेलिजेंस एजेंसी माने जाने वाली Office of Strategic Services फिल्मों का उपयोग एक मनोवैज्ञानिक अस्त्र के तौर पर करना चाहती थी” –
1 Office of Strategic Services (USA intelligence agency before CIA) Document shows that how the USA planned to use Motion Pictures as a Physiological warfare weapon. pic.twitter.com/zygFffdIcp
— Vijay Patel🇮🇳 (@vijaygajera) June 27, 2021
तो इसका हमारे भारत से क्या लेना देना? इसका उपयोग बॉलीवुड ने कैसे किया? विजय पटेल ने एक डॉक्यूमेंट के जरिए समझाया, “विज्ञापनों, फिल्मों, टीवी शो, डाक्यूमेंट्री, न्यूज रील, कार्टून इत्यादि के जरिए ये पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी में करना चाहते थे। इनके लिए अमेरिका के हाथ में फिल्में दुनिया का सबसे शक्तिशाली शस्त्र था, जिसका उपयोग एक बार उन्होंने सीख लिया, तो कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता था। ये शस्त्र आज भी दुनिया के कई लोगों पर उपयोग में लाया जाता है” –
2 To control the masses via commercials, movies, TV shows, documentaries, newsreels, animated cartoons, just to name a few. “motion pictures are one of the most powerful propaganda weapons at the disposal of the USA.” This weapon is used every day on people all over the world.
— Vijay Patel🇮🇳 (@vijaygajera) June 27, 2021
पर भारत से इस प्रोपेगेंडा का क्या नाता है? विजय पटेल की माने, तो विकीलीक्स से प्राप्त दस्तावेज़ों के अनुसार, “2007 में दो अमेरिकी अफसर फराह पंडित और जेरेड कोहेन यूके में कुछ लोगों से मिले। वे बॉलीवुड को अपने एजेंडे के अनुसार इस्तेमाल करना चाहते थे, ताकि मुसलमानों की एक सकारात्मक छवि पेश की जा सके”।
ट्विटर थ्रेड से कई तथ्यों को किया उजागर
तो इसका बॉलीवुड से क्या लेना देना? अब जरा बॉलीवुड के इतिहास पर ध्यान दीजिए। 2008 के बाद से अचानक से ऐसी फिल्मों की तादाद क्यों बढ़ने लगी, जिसमें मुसलमानों की छवि पर कुछ ज्यादा ही फोकस किया जाने लगा? ‘कुर्बान’, ‘माई नेम इज़ खान’, जैसी कई फिल्में थी, जिनमें मुसलमानों की बेहद सकारात्मक छवि पेश करने का प्रयास किया गया और बाकी सभी समुदायों को नकारात्मक छवि दी गई थी।
यही नहीं, शाहरुख खान के साथ एयरपोर्ट पर जो घटना हुई थी, उस पर भी विजय पटेल ने सवाल उठाते हुए उसे ‘पीआर स्टंट’ करार दिया। बता दें कि जब शाहरुख खान 2009 में अपने फिल्म के प्रोमोशन हेतु न्यू यॉर्क पहुंचे थे, तो उनकी तलाशी लेने के नाम पर उनके कपड़े कथित तौर पर उतारे गए थे। इस बात को लेकर देश में काफी हंगामा मचा था। Islamophobia तक की चर्चा उठने लगी थी।
तो विजय पटेल के लिए यह सब नकली और PR स्टंट क्यों था? उनके थ्रेड के अंश अनुसार, “शाहरुख खान एक अमेरिकी सरकारी एजेंसी द्वारा अधिकृत फिल्म के लिए काम कर रहे थे (माय नेम इज़ खान फॉक्स स्टार द्वारा अधिकृत थी)। ऐसे में उनका स्ट्रिप सर्च कैसे हो सकता है? यह कुछ नहीं, मीडिया में सहानुभूति बटोरने के लिए किया गया नाटक था!”
विजय पटेल के थ्रेड से जो बातें सामने निकल के आई हैं, उनमें से एक भी बात झुठलाई नहीं जा सकती। यह थ्रेड न केवल इस बात पे आँखें खोलता है कि कैसे हमारे देश का मनोवैज्ञानिक तौर पर उपयोग किया गया है, बल्कि यह भी उजागर करता है कि कैसे कुछ एक्टर जानते बूझते हुए हमारे देश का आत्मसम्मान चंद पैसों के लिए बेचने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।