कृषि कानून के विरोध के नाम पर दिल्ली की सीमा पर कैम्प लगाकर बैठे तथाकथित किसान आंदोलनकारियों ने आंदोलन को हिंसा, बलात्कार, उपद्रव का ठिकाना बना लिया है। पहले पूरे भारत ने गणतंत्र दिवस परेड के नाम पर लाल किले में हुई हिंसा को देखा। फिर किसान आंदोलन स्थल पर बलात्कार की खबर सामने आई और अब एक नई घटना में एक आंदोलनकारी को आग लगाकर मारने का मामला उपजा है। मृतक ने इस घटना से पहले आंदोलन को लेकर जातीय टिप्पणी की थी, जिसके बाद उस पर पेट्रोल डालकर आग के हवाले किए जाने के आरोप लगाए जा रहे हैं। इस घटना के बाद किसान आंदोलन फिर से सवालों के घेरे में है।
जागरण की रिपोर्ट के अनुसार बहादुरगढ़ बाईपास पर गांव कसार के पास किसान आंदोलन में गए गांव कसार के ही एक व्यक्ति को पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी गई। गंभीर रूप से झुलसे व्यक्ति की कुछ घंटों बाद उपचार के दौरान मौत हो गई। जींद के एक आंदोलनकारी पर तेल छिड़ककर आग लगाने का आरोप है। आरोपी का एक वीडियो भी सामने आया है। वह जातिगत टिप्पणी कर रहा है। आंदोलन में शहीद करने के नाम पर, कसार निवासी मुकेश पर तेल छिड़का गया और फिर आग लगाई गई। आग लगाने से पहले आरोपियों ने मृतक को खूब शराब भी पिलाई थी।
मृतक मुकेश के भाई ने बताया कि वह व्यक्ति शाम को टहलता हुआ आंदोलन स्थल पर गया था, जहां अज्ञात कारण से आंदोलन कर रहे कथित किसानों ने उस पर तेल छिड़ककर उसे आग लगा दी। मृतक के भाई ने बताया कि उसके भाई मुकेश के साथ घटी घटना की जानकारी उसे फोन पर मिली, जिसके बाद वह अपने गाँव के सरपंच के साथ घटनास्थल पर पहुंचा।
घटनास्थल पर मुकेश को अधजली अवस्था में देखकर उसके परिजन उसे सिविल अस्पताल ले गए, जिसके बाद उसे ब्रह्मशक्ति संजीवनी अस्पताल रेफर किया गया, जहां पर रात को ही उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई।
बता दें कि यह कोई पहला आपराधिक मामला नहीं है, जो किसान प्रदर्शन से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ हो!
कुछ दिनों पूर्व एक महिला ने बताया था कि वह टिकरी बॉर्डर पर वैक्सीनेशन को लेकर जागरूकता फैलाने गई थी, लेकिन वहाँ पर उसके साथ यौन शोषण करने का प्रयास हुआ। ख़बरों के मुताबिक, महिला ने इस बात की आंदोलन के प्रायोजकों से शिकायत भी की लेकिन इस मुद्दे पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। गौरतलब है कि प्रदर्शन-स्थल पर इसके पहले एक बंगाली युवती के साथ भी रेप किया गया था जिसको लेकर गठित SIT की टीम ने मुख्य अपराधी को गिरफ्तार कर लिया है।
इसके अतिरिक्त भी किसान आंदोलन के नेताओं पर कई गंभीर आरोप हैं। राकेश टिकैत पर उनके गांव की एक महिला ने जमीन कब्जाने का आरोप लगाया है। पीड़ित महिला का आरोप है कि टिकैत ने उनकी 3 बीघा जमीन हड़प ली है। इसके अतिरिक्त गणतंत्र दिवस पर हुए उपद्रव का तो पूरा देश ही साक्षी है।
दिल्ली बॉर्डर पर जमे ये किसान कोरोना की दूसरी लहर के लिए भी जिम्मेदार हैं, लेकिन इन सब बातों के बावजूद इनपर कोई कार्रवाई नहीं हो रही। सुप्रीम कोर्ट या सरकार, कोई भी इनके उपद्रवों के विरुद्ध कड़ा रुख नहीं अपना रहा। इनके द्वारा सड़क जाम करने के कारण आस पास के लोगों का आर्थिक नुकसान हो रहा है। दिल्ली में होने वाले व्यापार पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है, और अब तो आंदोलनस्थल पर जाने वाले लोग भी सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे में सरकार द्वारा अधिक दिनों तक इस समस्या को ऐसे ही टालते रहना उचित नहीं होगा।