एनसीपी और कांग्रेस महाराष्ट्र की राजनीति में तख्तापलट की योजना बना रही हैं

शिवसेना झुनझुना बजाती रह जाएगी!

एनसीपी और काँग्रेस महाराष्ट्र

इन दिनों महाराष्ट्र में अजब गजब खेल चल रहा है। कहीं रिहायशी सोसाइटी में लोगों के साथ टीकाकरण के नाम पर घोटाला हो रहा है, तो कहीं नेताओं का विरोध करने के लिए जनता पर प्रशासन लाठीचार्ज कर रही है। अब सुनने में आ रहा है कि खिचड़ी गठबंधन थोड़ा और संकुचित होने जा रहा है। यदि मीडिया में अफवाहें सही दिशा में जा रही हैं, तो एनसीपी और काँग्रेस जल्द ही महाराष्ट्र में तख्तापलट कर सकती है।

हाल ही में ये स्पष्ट हुआ है कि मुंबई नगरपालिका के चुनाव कांग्रेस अलग लड़ेगी, यानि भाजपा विरुद्ध महा विकास अघाड़ी का संग्राम देखने को नहीं मिलेगा। इसी विषय पर शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय के अनुसार, “राज्य में स्वबल का अपच हो गया है, क्योंकि आए दिन कोई-न-कोई अपने बल पर चुनाव लड़ने की बात कर रहा है। कांग्रेस के प्रमुख नाना पटोले भी आगामी चुनाव अपने दम पर लड़कर महाराष्ट्र में अपने दम पर सत्ता लाने की गर्जना की है। अपने दम पर सत्ता लाएंगे व कांग्रेस का मुख्यमंत्री अपने दम पर बनाएंगे, ऐसी घोषणा उन्होंने आत्मविश्वास के साथ की है।

सामना के संपादकीय में आगे लिखा गया, “संसदीय लोकतंत्र बहुमत के आंकड़ों का खेल है। यह खेल जिसके लिए संभव होगा, वह गद्दी पर बैठेगा। राजनीति में इच्छा, महत्वाकांक्षा होने में हर्ज नहीं है,  परंतु अंतत: बहुमत का आंकड़ा नहीं होगा तो बोलने और डोलने से क्या होगा? ‘मैं फिर आऊंगा.’ ऐसा पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कहते थे। वो नहीं आए। उनके भारतीय जनता पार्टी के 105 विधायकों का बल व्यर्थ साबित हुआ और तीन दलों ने एक साथ आकर बहुमत जुटा लिया”।

लेकिन ऐसा लिखने के लिए शिवसेना को विवश क्यों होना पड़ा? दरअसल, स्थिति काफी बदल चुकी है। अब महाविकास अघाड़ी में पहले जितनी सशक्त नहीं रही। शिवसेना के कुप्रबंधन के कारण एनसीपी और कांग्रेस की ‘छवि’ को काफी नुकसान पहुंचा है। कोरोना वायरस और विभिन्न राजनीतिक मुद्दों पर शिवसेना के रवैये ने जिस प्रकार से महाराष्ट्र सरकार की नाक कटवाई है, उससे एनसीपी और कांग्रेस की साख को भी बट्टा लगा है।

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वैसे ये पार्टियां भी दूध की धुली नहीं है, परंतु कम से कम इन्हें अपनी छवि कायम रखना तो आता था। अब ये किसी भी तरह शिवसेना से नाता तोड़ना चाहते हैं। ऐसे में इनके पास एक ही विकल्प है – मध्यविधि चुनाव। वैसे भी दोनों पार्टियां प्रशांत किशोर से कथित तौर पर काफी निकटता बढ़ा रहे हैं और ऐसे में किसी को कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए, यदि ये लोग अपने शैली में सत्ता हथियाने के लिए साम दाम दंड भेद सब कुछ हथियाने को तैयार हो जाए।

लेकिन इससे एनसीपी और काँग्रेस महाराष्ट्र में क्या प्राप्त करेंगे? दोनों के पास फिलहाल खोने को कुछ नहीं है और ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि एनसीपी और काँग्रेस सत्ता महाराष्ट्र में हथिया भी लें और अंत में शिवसेना के पास हाथ में बजाने को सिर्फ झुनझुना रह जाएगा।

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