किसी महत्वाकांक्षी व्यक्ति को ज्यादा देर तक दबा कर नहीं रखा जा सकता है। राजस्थान की राजनीति में शुरू हुई नई उठा-पटक के बाद एक बार फिर ये कहावत साबित हो गई है। पिछले साल जुलाई में बगावत करने वाले कांग्रेस नेता सचिन पायलट को भले ही अपने विरोध के कारण डिप्टी सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी हो, लेकिन इस बार उन्होंने सुलह कमेटी की रिपोर्ट न आने पर आलाकमान के खिलाफ अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर दी है। इसके साथ ही पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ 10 जून को एक बैठक करने वाले हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि राजस्थान की राजनीति में पायलट अबकी बार कोई नया भूचाल लाने वाले हैं, जो कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए एक अप्रत्याशित घटनाक्रम बन सकता है।
प्रदेश के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ ही इस बार आलाकमान के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने कहा कि 10 महीने होने के बाद भी सुलह कमेटी की रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है और कार्यकर्ताओं की मांगों की अवहेलना की जा रही है। पायलट ने कहा, “मुझे समझाया गया था कि सुलह कमेटी तेजी से एक्शन लेगी, लेकिन आधा कार्यकाल पूरा हो चुका है और वे मुद्दे अब भी अनसुलझे ही हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन कार्यकर्ताओं ने पार्टी को सत्ता में लाने के लिए रात-दिन मेहनत की और अपना सब कुछ लगा दिया, उनकी सुनवाई ही नहीं हो रही है।”
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राजस्थान में पिछले साल का राजनीतिक संकट खत्म होने के बाद ऐसा पहली बार नहीं है कि पायलट ने कोई बगावती बयान दिया हो। इससे पहले अप्रैल में भी वो सुलह कमेटी की रिपोर्ट और मांगों को न मानने का आरोप लगा चुके हैं। TFI ने थोड़े दिन पहले पायलट खेमे के विधायक हेमाराम चौधरी को इस्तीफे के बारे में भी बताया था, जिसने कांग्रेस को काफी बड़ा झटका दिया था। वहीं पायलट के सवाल उठाने के बाद इस मुद्दे पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने अजीबो गरीब बयान देते हुए इस मुद्दे को अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर का विषय घोषित कर दिया है।
वहीं, खबरें हैं कि 10 जून को सचिन पायलट अपने गुट के सभी 18 विधायकों के साथ बैठक करेंगे, जिसके पहले पायलट गुट ने कांग्रेस आलाकमान को अल्टीमेटम दे दिया है। ऐसे में 200 सीटों वाली विधानसभा के गणित को समझें तो बहुमत के लिए 101 सीटों की आवश्यकता है। ऐसे में कांग्रेस के पास से यदि 106 में से 18 विधायक इस्तीफा देते हैं तो ये आंकड़ा 88 पर जाता है। वहीं सदन की संख्या घटकर 182 हो जएगी जिसके अनुसार बहुमत का आंकड़ा 91 हो जाएगा। साफ है कि खुद को जादूगर कहने वाले गहलोत की कुर्सी चली जाएगी।
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वहीं, बात अगर बीजेपी की करें तो उसके पास आज की स्थिति में कुल 71 विधायक हैं। ऐसे में बहुमत के आंकड़े का 91 तक पहुंचने के लिए बीजेपी को भी खूब मशक्कत करनी पड़ सकती है। जबकि 13 निर्दलीय और क्षेत्रीय दलों का समर्थन सीधे तौर पर कांग्रेस के साथ है, जिसके चलते स्थिति एक बार फिर पायलट के लिए ही मुश्किलें बढ़ जायेंगी क्योंकि निर्दलीय अकसर उस पार्टी के साथ ही जाते हैं जिधर सरकार आसानी से बन रही हो। ऐसे में गहलोत के लिए तीन निर्दलीय विधायकों को साधना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा। वहीं बीजेपी के सरकार बनाने की संभावनाएं तो केवल पार्टी की राज्य और केंद्रीय ईकाई के मोल-भाव करने के तरीकों पर निर्भर करता है।
इसके इतर एक मुद्दा ये भी है कि हाल फिलहाल में गोविंद सिंह डोटासरा के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद गहलोत कैबिनेट के कई मंत्री भी पार्टी से नाराज हैं। ऐसे में गहलोत खेमा भी अब पिछले साल की तरह मजबूत नहीं रहा है। ऐसे में यदि वो मंत्री या विधायक भी पायलट के साथ मिल जाते हैं, तो गहलोत चौतरफ़ा घिर सकते हैं। ऐसे में राजस्थान की राजनीति में नए बवंडर उठ सकते हैं। गहलोत अपनी सरकार बचाने के साथ ही ये भी चाहेंगे कि बीजेपी की सरकार न बने, जिसके चलते वो राज्यपाल कलराज मिश्र को विधानसभा भंग करने का प्रस्ताव भी दे सकते हैं जो कि बीजेपी के लिए बुरा सौदा नहीं होगा।
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राजस्थान में पायलट और गहलोत की लड़ाई में भले ही गहलोत बहुमत के अधिक करीब हों, लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे बीजेपी को कोई नुक़सान होगा। बीजेपी Nothing To Loose वाली स्थिति में है, क्योंकि यदि गहलोत सरकार गिरती है तो उसके पास सरकार बनाने का बेहतरीन मौका हो सकता है, और यदि नहीं गरती… तो पायलट समेत अन्य विधायकों के इस्तीफे के कारण राज्य में कांग्रेस पहले से अधिक कमजोर हो जायेगी। वहीं, तीसरी स्थिति में उसके पास निर्दलीय और छोटे दलों के साथ सरकार बनाने का मौका भी होगा। इसके विपरीत चौथी और अंतिम स्थिति यानी राष्ट्रपति शासन के लगने पर पार्टी को 6 महीने के भीतर चुनाव में जाना होगा। कोरोना काल में चिकित्सा सुविधाओं की ढुलमुल नीति के चलते गहलोत सरकार को जनता के बीच नुकसान उठाना पड़ सकता है जिसका फायदा पुनः बीजेपी के हिस्से ही आएगा।
इस पूरे प्रकरण को देखते हुए साफ तौर पर कहा जा सकता है कि राजस्थान में कांग्रेस अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है, क्योंकि पार्टी के नेता आपस में महत्वकांक्षाओं के कारण सारी मर्यादाएं तोड़ रहें हैं। वहीं इस पूरे खेल का सबसे बड़ा विलेन कांग्रेस का केन्द्रीय आलाकमान साबित होगा, क्योंकि उसकी ढुलमुल नीति के कारण राज्य में पार्टी कभी संगठित नहीं हो पाई, वहीं सारा फायदा बीजेपी के हाथ में आएगा।