उत्तराखंड के पुजारी ‘चार धाम देवस्थान बोर्ड’ का विरोध कर रहे हैं, तीरथ सिंह सरकार इसपर मौन धारण किये हुए हैं

ये हिंदू मंदिरों पर अपना नियंत्रण चाहते हैं!

चारधाम

देवभूमि उत्तराखंड में मंदिरों के अधिकारों के अतिक्रमण को लेकर पुजारियों और सरकार के बीच विवाद छिड़ गया है। सरकार ने चारधाम सहित कई अन्य मंदिरों को मिलने वाले दान पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से चार धाम देवस्थान बोर्ड बनाया है। इसी चारधाम देवस्थानम बोर्ड को लेकर पुरोहितों विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। केदारनाथ धाम परिसर में पुरोहित शांति पूर्ण प्रदर्शन कर धरने पर बैठे हैं। लगातार तीसरे दिन उनका ये विरोध जारी है। पुरोहितों की मांग है कि, चार धाम देव स्थानम बोर्ड को भंग कर दिया जाए।

2019 में उत्तराखंड की भाजपा सरकार एक बिल लेकर आई जिसके द्वारा चारधाम के अतिरिक्त 49 और मंदिरों का प्रबंधन सरकार के नियंत्रण में आने वाला था। Char Dham Shrine Management Bill, 2019 का विधानसभा के अंदर और बाहर दोनों जगह विरोध हुआ। विरोध के बाद भी बिल पारित हो गया।

अप्रैल माह में चारधाम के पुजारियों और विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ सदस्यों की मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के साथ बैठक हुई थी। इस बैठक में सरकार के फैसले को लेकर पहले ही विहिप और पुजारियों ने अपनी नाराजगी जताई थी। सरकार जिस बोर्ड का गठन कर उसे अधिकार दे रही है, वह बिना श्रद्धालुओं और पुजारियों की अनुमति के बना है। यहाँ सीधा सवाल यही है कि जब सरकार मस्जिदों, चर्च आदि को मिलनेवाले चंदे को नियंत्रित करने के लिए ट्रस्ट नहीं बनाती तो हिन्दू मंदिरों के साथ ऐसा भेदभाव क्यों करती है।

धरने पर बैठे पुजारियों ने कहा, “राज्य सरकार उत्तराखंड में चारधाम यात्रा व मंदिरों पर कब्जा करने की रणनीति तैयार कर रही है, जिसका हम विरोध करते हैं। उनका कहना है कि तीर्थपुरोहितों को बिना विश्वास में लेकर सरकार द्वारा पहले बोर्ड का गठन किया गया और अब उसे और अधिकार दिये जा रहे हैं, जो उचित नहीं है।”

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 कहता है कि सभी रिलीजन अपने अपने सांस्कृतिक संस्थाओं के संचालन, प्रबंधन आदि के लिए मुक्त हैं। अनुच्छेद 25 का हवाला देकर सरकार मस्जिदों, चर्च, गुरुद्वारों के प्रबंधन में कोई हस्तक्षेप नहीं करती, लेकिन सरकार हिन्दू मंदिरों पर टैक्स लगाती है, उनको मिलने वाले दान पर नियंत्रण करने के उद्देश्य, उन्हें प्रशासनिक अधिकारियों के अधीन कर रही है।

कहने को भारत एक सेक्युलर देश है, जिसमें राज्य और रिलीजन अलग अलग होते हैं। न तो राज्य के मामले में रिलीजन का हस्तक्षेप होता है, न रिलीजन के मामले में राज्य का। किन्तु भारत विश्व का एकमात्र सेक्युलर देश है जो हर रिलीजन को छूट देता है और अपनी ही भूमि के मूल धर्म का शोषण करता है। भारतीय प्रशासनिक तंत्र हिन्दू संस्थाओं से जोंक की तरह चिपके हुए हैं, उसका खून चूस रहे हैं। जब बाकी मजहब अपने चंदे से अपनी सांस्कृतिक संस्थाओं के संचालन के लिए स्वतंत्र हैं, तो हिंदुओ को ये अधिकार क्यों नहीं मिलना चाहिए।

पुरोहितों ने ऐलान किया है कि अगर उनकी मांग नहीं मानी जाएगी तो वह 21 जून से अनिश्चित कालीन हड़ताल करेंगे। सबसे दुखद बात यह है कि हिन्दू मंदिरों का यह हाल उस राज्य में है जहाँ तथाकथित हिन्दू पार्टी सत्ता में है। समस्या यह है कि भारतीय लोकतंत्र, जिन मूल सिद्धांतों पर टिका है, वह स्वभावतः अंग्रेजों और पश्चिमी शिक्षा से उधार लिए गए हैं। भारत का पूरा लोकतांत्रिक ढांचा, जिसके भीतर प्रशासनिक संस्थाएं, न्यायतंत्र, मीडिया, विभिन्न NGO, मानवाधिकार आयोग, बॉलीवुड, साहित्य सभी कुछ आता है, अपने मूल स्वभाव में हिन्दू विरोधी हैं। ऐसे में आमूल चूल परिवर्तन के लिए भाजपा का सामर्थ्य बहुत थोड़ा है।

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