पारस अस्पताल में 22 लोगों की मौत की खबर निकली झूठी, अब इस फेक न्यूज के लिए कौन जिम्मेदार है?

पारस अस्पताल को जांच में क्लीन चिट!

पारस अस्पताल

हाल ही में हमने सुना था कि आगरा के पारस अस्पताल में ऑक्सिजन की आपूर्ति बंद होने से 22 मरीजों की मौत हो गई थी, लेकिन अब सामने आया है कि यह पूरा मामला ही झूठा था। दरअसल, मीडिया में अफवाह फैलाई गई थी कि आगरा के पारस अस्पताल में एक मॉक ड्रिल के दौरान ऑक्सीजन सप्लाई काटी गई।

लेकिन उत्तर प्रदेश प्रशासन की जांच पड़ताल में सामने आया कि ऐसा कुछ भी नहीं था। आगरा के पारस अस्पताल में कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी के कारण 22 लोगों की मृत्यु की खबर आई थी। इसपर बिना समय गँवाए अस्पताल प्रशासक डॉक्टर अरिंजय जैन के वीडियो पर प्रियंका गांधी वाड्रा ने बवाल मचाते हुए ये आरोप लगाया कि अस्पताल प्रशासन और उत्तर प्रदेश प्रशासन की मिलीभगत के कारण कई बेगुनाहों को अपनी जान गँवानी पड़ी –

जांच कमेटी की पड़ताल में कुछ और ही तस्वीर सामने आईं। पारस अस्पताल 25 अप्रैल को 149 ऑक्सीजन सिलेंडर का उपयोग कर रहा था, जिनमें से 20 रिजर्व में थे। 26 अप्रैल को 121 सिलेंडर उपयोग में लाए गए और 15 रिजर्व में थे। ये अस्पताल में भर्ती मरीजों के लिए पर्याप्त थे।

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26 व 27 अप्रैल को मरने वाले 16 मरीजों की डेथ ऑडिट रिपोर्ट में 14 ऐसे मिले हैं जिन्हें पुरानी बीमारियां थीं। सिर्फ 2 मृतक ऐसे हैं जिन्हें कोई बीमारी नहीं थी। 16 मृतकों में 11 आगरा, दो मैनपुरी, दो फिरोजाबाद, एक इटावा से था। कुल नौ मृतक ऐसे थे जिन्होंने अस्पताल में भर्ती होने तक एक से पांच दिन में दम तोड़ दिया। पांच मृतक ही दस दिन से अधिक समय तक भर्ती रहे।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अंश अनुसार, “जांच पड़ताल में ये भी सामने आया है कि कुछ मरीजों ने वैकल्पिक स्त्रोतों से ऑक्सीजन की व्यवस्था कराई थी। 8 जून को आगरा के जिलाधिकारी प्रभु एन सिंह ने बताया कि जिस दिन उक्त वीडियो रिकॉर्ड हुआ, उस दिन वास्तव में कोई मृत्यु नहीं हुई। यहाँ तक कि डॉक्टर अरिंजय जैन के बयान का भी गलत मतलब निकाला गया था। उनके अनुसार, ‘मैंने वीडियो में कहीं भी मरीजों की मृत्यु की बात ही नहीं की। हाँ, मैंने एक मॉक ड्रिल कराई, ताकि स्थिति की पड़ताल कर सकूं और ऑक्सीजन की कमी होने पर आवश्यक प्रबंध कर सकूँ। कोई भी मरीज नहीं मारा गया। मेरे संदेश का गलत मतलब निकाला गया।

अब जब ये सिद्ध हुआ है कि आगरा के पारस अस्पताल में कोई अनहोनी नहीं हुई, तो जो अफवाहें फैलाई गई, उसके लिए किसे दोषी ठहराया जाए? आखिर कब तक प्रियंका गांधी वाड्रा ऐसे अफवाहों को फैलाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बचती रहेंगी? कुछ ऐसा ही प्रयास अभी लोनी घटना के नाम पर ट्विटर समेत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कथित ध्वजवाहकों ने किया था और आज फिर वही नीच हरकत दोहराई गई है।

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