सरस्वती सिंधु सभ्यता पर शोध करने के लिए सरकार निवेश कर रही है
पिछले कुछ वर्षों में जबसे नरेंद्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री सत्ता संभाली है, भारत में एक व्यापक परिवर्तन देखने को मिला है। अब सांस्कृतिक विषयों पर पहले की भांति अधिक ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। जो विषय पहले हास्य परिहास का विषय माने जाते थे, उनपर शोध करने की बात भी कही जाती है। कभी विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी को पुनः खोजने और उससे जुड़ी सरस्वती सिंधु सभ्यता पर शोध करने के लिए भी केंद्र सरकार अब विशेष निवेश कर रही है।
हालांकि, कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें देश का यह बदला रुख स्वीकार्य नहीं है। इन्हीं में से एक हैं वामपंथी इतिहासकार रामचन्द्र गुहा, जिनके लिए सरस्वती सिंधु सभ्यता काल्पनिक है, और इसपर शोध पैसों की बर्बादी है। जनाब द वायर का एक लेख शेयर करते हुए ट्वीट करते हैं, “देखिए, कैसे भारत सरकार एक काल्पनिक नदी में पैसा बहा रही है”।
How the Indian Govt Is Pushing Money Down a Mythological River https://t.co/ZHkz4o3cOp
— Ramachandra Guha (@Ram_Guha) June 26, 2021
इस लेख में जाने की आवश्यकता ही नहीं है, बस ट्वीट ही बताने के लिए पर्याप्त है कि यह व्यक्ति सरस्वती सिंधु सभ्यता से कितनी घृणा करता है। परंतु यह ट्वीट इस बात का भी परिचायक है कि किस तरह से पाश्चात्य समाज आज भी भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान को स्वीकारने से मना करता है।
रामचन्द्र गुहा इसे काल्पनिक मानते है
लेकिन यह सरस्वती सिंधु सभ्यता है क्या? रामचन्द्र गुहा का ट्वीट क्या सिद्ध करता है? आखिर ऐसी क्या बात है जिसके सिद्ध होने से पाश्चात्य समाज अपना इतिहास पे एकाधिकार खो सकता है? ऐसे कई प्रश्नों के उत्तर सरस्वती सिंधु सभ्यता की उत्पत्ति में ही मिलेंगे। यह विश्व के प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है।
इस विषय पर शोध कर रहे लेखक आभास मालदहियार ने रामचन्द्र गुहा को जवाब देते हुए एक थ्रेड के माध्यम से ट्वीट किया, “सरस्वती कोई काल्पनिक नदी नहीं है। वह सत्य है, जिसके कारण इतिहासकार इससे जुड़ी सभ्यता के लिए तीन शब्दों का उपयोग करते हैं – सरस्वती सभ्यता, इंडस सरस्वती सभ्यता एवं सिंधु सरस्वती सभ्यता”।
1/n #SadarPranam to Ishvara within you @Ram_Guha Ji!
Sárasvatī is not mythological but a true river as per latest scientific explorations.
Hence many Historians began to use terms for IVC:A)Sarasvati Civilization
B)Indus-Sarasvati Civilization
C)Sindhu-Sarasvati Civilization https://t.co/DFTm0AKyXH— Aabhas Maldahiyar 🇮🇳 (@Aabhas24) June 29, 2021
सिंधु सरस्वती सभ्यता की सत्यता को सिद्ध करते हुए आभास ने आगे ट्वीट किया, “जिन इतिहासकारों ने ऐसा कहा है, उनके नाम है – उपिंदर सिंह, चार्ल्स मेसल्स, मिशेल डेनिनो इत्यादि है”। इसके साथ ही आभास ने अनेक शोध पत्र, पुस्तक एवं सिंधु सरस्वती सभ्यता से जुड़े लेखों के लिंक भी अपने थ्रेड में साझा किए, ताकि उनके दावों में कोई कमी न रहे।
इसी विषय पर कुछ समय पहले प्रख्यात सैन्य अफसर, मेजर जनरल जीडी बक्शी [सेवानिर्वृत्त] ने एक पुस्तक भी लिखी थी। आम तौर पर यह धारणा प्रचलित रही थी कि पहले भारत में द्रविड़ सभ्यता व्याप्त थी, जिन्हें आर्य आक्रमणकारियों ने भगाया था। रोमिला थापर, इरफान हबीब और उनके साथी इतिहासकार इसी काल्पनिक सिद्धान्त को अपनी किताबों में लिखकर दशकों तक देश के विद्यार्थियों को भ्रमित करते रहे।
सरस्वती सिंधु सभ्यता का इतिहास
इन वामपंथी इतिहासकारों ने इस सिद्धांत से भारत की सभ्यता का उद्भव भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर का बताया और वैदिक प्रथाओं को एक विदेशी प्रथा के रूप में दिखाया। इससे दक्षिण भरतीयों में यह संदेश गया कि आर्यों ने मूल निवासियों पर हमला किया जिसके कारण द्रविड़ों को पलायन कर सुदूर समुद्र तक जाना पड़ा।
लेकिन बीसवीं शताब्दी में जैसे-जैसे पुरातत्व के सुबूत मिलते गए, विशेष रूप से सिंधु और सरस्वती घाटियों में, उससे यह स्पष्ट होता गया कि प्रस्तावित तारीख के आसपास यानि 1500 ईसा पूर्व किसी भी व्यक्ति या समूह ने भारत पर आक्रमण या पलायन नहीं किया था। साथ ही यह भी सिद्ध हो गया कि अधिकतर पुरातात्विक शहर क्षेत्र सिंधु नदी के आस-पास नहीं अपितु लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी के किनारों पर बसा है।
अभी तक हड़प्पा सभ्यता को सिर्फ सिन्धु नदी की देन माना जाता था, लेकिन अब नये शोधों से सिद्ध हो गया है कि भारत की सभ्यता सिंधु सभ्यता नहीं सरस्वती सभ्यता है। इस प्रमाण के साथ मेजर जनरल जीडी बक्शी ने अपनी किताब ‘द सरस्वती सिविलाइजेशन’ में भी बताया है। इस किताब को गरुड़ प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
लेकिन यह सत्य स्वीकारने में अभी भी पाश्चात्य जगत और भारतीय वामपंथियों को परेशानी होती है। एक बार को पाश्चात्य संस्कृति इस बात पर शायद चर्चा कर भी ले, लेकिन भारतीय वामपंथी अपने घमंड में ऐसे चूर हैं कि वे किसी भी स्थिति में ये स्वीकार नहीं करेंगे कि सिंधु सरस्वती सभ्यता जैसा कुछ है भी। रामचन्द्र गुहा ने जो ट्वीट किया, वो इसी औपनिवेशिक मानसिकता का परिचायक है।