सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने बंगाल की राजनीतिक हिंसा के मामले से खुद को अलग कर लिया है

जस्टिस इंदिरा बनर्जी बंगाल Case

PC: Punjab Kesari

कहते हैं कि सरकारें अपनी जिम्मेदारियों से भागती हैं तो अदालतें मोर्चा संभालती हैं, लेकिन दिक्कत तब होती है जब न्यायधीश ही महत्वपूर्ण मुद्दों से खुद को दूर कर ले… और पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजों के बाद हुई हिंसा के मामले में सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदिरा बनर्जी का रुख कुछ ऐसा ही है। उन्होंने बंगाल हिंसा से जुड़े केस से खुद को अलग कर लिया है। दूसरी ओर बंगाल सरकार को लताड़ लगाते हुए कोलकाता हाईकोर्ट ने हिंसा की जांच का सारा जिम्मा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को दे दिया है, जो दिखाता है कि कोलकाता में बैठकर हाईकोर्ट के न्यायधीश बंगाल सरकार को फटकार लगा रहे हैं, लेकिन शायद दिल्ली में बैठीं सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने किसी डर के कारण बंगाल की हिंसा से संबंधित संवेदनशील केस से अपना नाम पीछे ले लिया है।

दरअसल, पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के दिन 2 मई को बीजेपी के दो कार्यकर्ताओं की हत्या हुई थी, जिसको लेकर कार्यकर्ताओं के परिजनों और बीजेपी ने सीबीआई से जांच करने के लिए याचिका दायर की थी। इस मामले की सुनवाई जस्टिस इंदिरा बनर्जी की बेंच कर रही थी, लेकिन अब खबरें हैं कि इंदिरा बनर्जी ने इस केस से खुद को अलग कर लिया है। उन्होंने अपने पीछे हटने को लेकर कहा, “मुझे इस मामले की सुनवाई में कुछ कठिनाई हो रही है। इस मामले को दूसरी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।”

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वहीं, इस मामले में अचानक इंदिरा बनर्जी के पीछे हटने की घोषणा होने को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम आर शाह की अवकाशकालीन पीठ ने आदेश जारी करते हुए कहा, “मामले को अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करें जिसमें जस्टिस बनर्जी हिस्सा नहीं हैं।” ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई को याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई थी, साथ ही विश्वजीत सरकार और स्वर्णलता अधिकारी की याचिका पर पश्चिम बंगाल सरकार तथा केंद्र से जवाब मांगा था।

इसके विपरीत कोलकाता हाईकोर्ट ने ममता सरकार को बंगाल चुनाव में हिंसा के मुद्दे पर कोई कार्रवाई न करने पर लताड़ा है। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस न्यायाधीश राजेश बिंदल ने कहा, “चुनाव बाद देखा जा रहा है कि लोगों की भीड़ जुटाई जाती है। अब हम इसे ठीक करना चाहते हैं। मैंने ऐसा दृश्य कभी नहीं देखा। पुलिस वह नहीं कर रही है जो उसे कानून के अनुसार करना चाहिए।” ममता सरकार को लताड़ लगाते हुए उन्होंने कहा, “राज्य सरकार अपने खिलाफ आरोपों को स्वीकार नहीं कर रही थी, लेकिन हमारे सामने कई घटनाओं के सबूत हैं। यातना केवल शारीरिक नहीं है। लोगों को नौकरी के अवसरों से वंचित करना भी बुनियादी अधिकारों से वंचित करना है।”

इन परिस्थितियों के बीच कोलकाता हाईकोर्ट ने ममता सरकार के रवैए को अप्रत्याशित बताते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के प्रमुख को आदेश दिया है कि आयोग ही इस हिंसा और अराजकता के केस की जांच करे। इसके लिए NHRC को समिति बनाने का आदेश देने के साथ ही राज्य सरकार को इस मुद्दे पर सहयोग देने के लिए कहा गया है। राज्य सरकार की कार्रवाई के दावों को लेकर जस्टिस हरीश टंडन ने कहा, “आप (राज्य) कहते हैं कि कार्रवाई की गई है। परंतु,कार्रवाई किसके खिलाफ की गई यह स्पष्ट नहीं है।”

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वहीं विस्थापित हुए लोगों के संबंध में कोर्ट ने कहा, “NHRC की समिति के सामने ही  बेघर हुए 3243 लोगों को पुनः बसाने का काम किया जाए।” गौरतलब है कि इस मामले के लिए अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख 30 जून तय की है। साफ है कि कोलकाता हाईकोर्ट इस मुद्दे पर ममता सरकार को आड़े हाथों लेने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहा है। वहां के लगभग सभी न्यायाधीश ममता बनर्जी की अनैतिकता के खिलाफ हैं, जबकि वो बंगाल में ममता के गढ़ में बैठे हैं।

इसके विपरीत सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदिरा बनर्जी तो दिल्ली में बैठी हैं, ऐसे में उनका केस से अपने हाथ पीछे खींचना कहीं न कहीं ममता सरकार के प्रति उनका डर और बंगाल से संबंधित होना है। एक ऐसा मौका जब इंदिरा बनर्जी को ममता बनर्जी की नीतियों के खिलाफ सबूत होने पर सख्त निर्णय सुनाना चाहिए , तो उस वक्त इंदिरा बनर्जी खुद दिल्ली में बैठी होने के बावजूद बंगाल की ममता सरकार के खौफ में हैं जो दिखाता है कि कहीं ना कहीं उन्होंने इस डर के कारण ही बंगाल की हिंसा से जुड़े केस से खुद को अलग किया है।

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