तो क्या संसदीय समिति ट्विटर को फटकारेगी? इस पैनल को लीड कर रहे शशि थरूर का मूड तो ट्विटर को बख्शने का नहीं लग रहा

देश की संसदीय समिति ने भी Twitter के अधिकारियों के पसीने छुड़ाकर रख दिये!

शशि थरूर ट्विटर

ट्विटर की नीली चिड़िया के पंख भारत में कुतरे जा रहे हैं। इस अमेरिकी कंपनी ने दुनिया की सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक शक्ति को लोकतन्त्र सिखाने का दुस्साहस किया था, और अब नतीजा यह है कि यह कंपनी देश में Intermediary का दर्जा खो चुकी है। इसी कड़ी में कल देश की संसदीय समिति ने भी ट्विटर के अधिकारियों के पसीने छुड़ाकर रख दिये! संसदीय समिति के सवालों के सामने ट्विटर के अधिकारी सपकपाते रह गए। वहीं, यहाँ हैरानी की बात यह थी कि इस समिति का नेतृत्व कांग्रेस नेता शशि थरूर कर रहे थे।

शशि थरूर ने ट्विटर के खिलाफ कड़े रुख से सेंसरशिप का शिकार होने वाले लाखों ट्विटर यूजर्स का दिल तो जीत लिया, लेकिन अब उन्हें डर है कि कहीं उनकी खुद की पार्टी उनसे रूठ ना जाये। ऐसा इसलिए क्योंकि संसद से बाहर उनकी खुद की पार्टी कांग्रेस पर ट्विटर के साथ मिलीभगत करने के आरोप लगाए जा रहे हैं। यानि एक तरफ जहां कांग्रेस पार्टी और ट्विटर मिलकर मोदी सरकार को घेरने का प्रयास कर रहे हैं तो वहीं संसदीय समिति का नेतृत्व कर रहे कांग्रेसी नेता शशि थरूर ही ट्विटर को आड़े हाथों भी ले रहे हैं। ऐसे में शशि थरूर ने आज ट्विटर पर अपना बयान जारी कर उन खबरों से अपने आप को दूर कर लिया, जिनमें ये दावा किया गया था कि संसदीय समिति ने ट्विटर के खिलाफ बेहद कडा रुख अपनाया था।

शशि थरूर के बयान के अनुसार “संसदीय समिति के क़ानूनों के हिसाब से संसदीय समिति के कार्यक्रम की बातों को प्रेस के साथ साझा नहीं किया जाता है। लेकिन फिर भी कुछ लोग ऐसा कर रहे हैं, और अपने मुताबिक बातों को सामने रख रहे हैं, ताकि उनके एजेंडे को बढ़ाया जा सके। मैं ऐसे राजनेताओं को अपनी राजनीति करने से तो नहीं रोक सकता लेकिन ऐसी खबरें पढ़ने वाले पाठकों को सतर्क करना चाहूँगा कि ये खबरें किसी एक व्यक्ति का बयान भर है ना कि पूर्ण सत्य”!

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उनके इन ट्वीट्स से यह स्पष्ट है कि वे नहीं चाहते थे यह खबर सार्वजनिक हो! बेशक उन्होंने देश के यूजर्स के हितों को पार्टी लाइन से अधिक महत्व दिया, जिसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए, लेकिन इस बात को स्वीकार करने से वे घबरा क्यों रहे हैं? शायद इसलिए क्योंकि शशि थरूर अपनी ही पार्टी को यह संदेश नहीं देना चाहते हैं कि ट्विटर के मामले पर कांग्रेस पार्टी का रुख यूजर्स के हितों से मेल नहीं खाता है। शशि थरूर अगर इस खबर को सत्यापित कर देते हैं तो इससे बैठे-बिठाये कांग्रेस पार्टी एक्स्पोज़ हो जाएगी।

टूलकिट कांड में जिस प्रकार कांग्रेस के बचाव में ट्विटर सामने आया, उसने यह दिखा दिया कि असल में ट्विटर और कांग्रेस एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। इतना ही नहीं, नवंबर 2018 में जब ट्विटर के CEO Jack Dorsey भारत की यात्रा पर आए थे, तो उन्होंने खासतौर पर राहुल गांधी से मुलाक़ात की थी।

यह इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि वर्ष 2019 में यानि अगले ही वर्ष देश में लोकसभा के चुनाव भी हुए थे। यह स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी और ट्विटर के बीच एक अघोषित गठबंधन मौजूद है, जिसके खिलाफ शशि थरूर अपनी आवाज़ उठाने से बच रहे हैं। ऐसे में उन्होंने संसदीय समिति के सदस्य के रूप में देश की आवाज़ को बुलंद तो किया, लेकिन इसके साथ ही वे यह नहीं चाहते कि उन्हें कांग्रेस पार्टी में एक बागी की नज़र से देखा जाये।

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