हाल ही में गाजियाबाद के लोनी में मुस्लिम बुजुर्ग की पिटाई और दाढ़ी काटने का मामला सामने आया था। यह झड़गा मुस्लिम समुदाय के ही दो पक्षों में हुआ था लेकिन कुछ विशेष स्वार्थी तबकों द्वारा जानबूझकर मामले को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास हुआ। यह अफवाह उड़ाई गई कि, वृद्ध को पीटने वाले उससे ‛जय श्रीराम’ बुलवा रहे थे। अब उत्तर प्रदेश पुलिस ने इस मामले में सभी पहलुओं को खंगालना शुरू किया तो पता चला मुख्य साजिशकर्ता उम्मेद पहलवान इदरीसी ने जानबूझकर कर यह अफवाह फैलाई थी। उसका इरादा साम्प्रदायिक टकराव बढ़ाने का था जिसका लाभ चुनाव में मिल सके।
उम्मेद इदरीसी ने पुलिस को बताया कि, वह फेसबुक पर लाइव आकर मुस्लिम लोगों को हिंदुओं के विरुद्ध भड़काता था और स्वयं को कट्टर हिन्दू विरोधी नेता के रूप में स्थापित करना चाहता था। उम्मेद इदरीसी चाहता था कि उसकी छवि कट्टर मुस्लिम नेता की बने जिससे चुनाव में उसे लाभ हो।
उम्मेद इदरीसी ने बताया कि वह लम्बे समय से सपा में है लेकिन उसे टिकट नहीं मिल रहा, इसीलिए उसने अपनी छवि को कट्टर मुस्लिम की बनाने की कोशिश की। उसकी तैयारी चेयरमैन के पद पर चुनाव लड़ने की थी। उसे उम्मीद थी कि एक बार अगर वह अपनी कट्टर मुसलमान की छवि बना लेता है तो सपा भी उसे आसानी से टिकट दे देगी।
पुलिस ने उम्मेद इदरीसी पर और अधिक धाराएं लाद दी हैं, जिससे उसकी रिहाई नामुमकिन हो जाए। उसपर वीडियो में काट छाँट करने के लिए जालसाझी का मुकदमा दायर हुआ है। साथ ही पुलिस ने 13 अन्य लोगों की पहचान की है जिन्होंने उम्मेद इदरीसी को भागने में मदद की। इन लोगों पर भी मुकदमा दायर करके इनकी गिरफ्तारी होगी। मीडिया रिपोर्ट की माने तो इसमें कई नेताओं के भी नाम शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम सांप्रदायिकता किस हद तक मौजूद है यह बात लोनी प्रकरण और इदरीसी के बयान से एक बार पुनः सामने आ गई है। उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक दंगों का इतिहास रहा है। लेकिन उत्तर प्रदेश में पिछले 4 वर्षों में एक भी दंगा नहीं हुआ है, अन्यथा ये वही प्रदेश है जहाँ कहावतों के अनुसार पतंग कटने पर दंगा हो जाता था।
CAA विरोधी आंदोलन में हुई हिंसा को जिसप्रकार योगी सरकार ने कुचला था, उसकी टीस मुस्लिम समुदाय के बहुत से लोगों में मौजूद है। प्रदेश के विकास के लिए हिंदुओं द्वारा योगी को दिया जा रहा समर्थन मुस्लिम समाज में पहले से मौजूद हिन्दू विरोधी भावनाओं को और प्रबल कर रहा है। यही कारण है कि उम्मेद इदरीसी जैसे लोगों को यह लगता है कि अगर वह अधिक कट्टर दिखेंगे तो उन्हें अधिक समर्थन मिलेगा।
योगी आदित्यनाथ ने ऐसे लोगों और प्रवृत्तियों को शुरू से दबाकर रखा है, इसलिए ये लोग अगले चुनावों के पहले ध्रुवीकरण करके सरकार बदलना चाहते हैं, जिससे वे किसी अन्य सरकार के अधीन अपनी भावी योजनाओं को कार्यान्वित कर सकें।
मुस्लिम समुदाय के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि वह ऐसे तबकों को रोके अन्यथा मुस्लिम सांप्रदायिकता की उल्टी प्रतिक्रिया में यदि हिन्दू सांप्रदायिकता बढ़ेगी तो यह दुर्भाग्यपूर्ण बात होगी। किसी समाज में दो वर्गों में इस प्रकार की भावनाओं का बलवती होना अच्छी बात नहीं।
ऐतिहासिक रूप से भी मुस्लिम समाज ने कट्टरपंथ को उदारता के ऊपर तरजीह दी है। दाराशिकोह और औरंगजेब का युद्ध इसका उदाहरण है जहाँ मुस्लिम समाज के कई लोगों की भावनाएं बड़े पैमाने पर औरंगजेब के साथ थीं क्योंकि वह मंदिरों को ध्वस्त करता था।
आज भी मुस्लिम समाज के कट्टरपंथी जितने चाव से औरंगजेब का नाम लेते हैं, दारा का नहीं लेते। ऐसे में मुस्लिम समाज को अपने भीतर स्वाभाविक रूप से मौजूद, सांप्रदायिकता के बीज को खाद पानी देना बन्द करना चाहिए, क्योंकि मुसलमानों में साम्प्रदायिक उन्माद की भावना जितना बढ़ेगी, उसकी वैसी ही कड़ी प्रतिक्रिया हिंदुओं में होगी, और यह समाज के लिए अच्छा नहीं है।