कोरोना महामारी की दूसरी लहर अभी जारी है। जब से वैक्सीन बनना शुरू हुईं हैं तब से ही विपक्ष द्वारा वैक्सीन के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है। पहले वैक्सीन की सक्षमता पर सवाल उठाये गए। अब वैक्सीन को लेकर यहां तक संदेह पैदा कर दिया गया कि इसे लेने वालों की मौत भी हो रही है। हालाँकि, अब सच्चाई सामने आ चुकी है और देश में कोरोना वैक्सीन से 31 लोगों की मौत होने के आरोपों की जांच कर रही समिति ने बताया कि अब तक कोरोना वैक्सीन से सिर्फ एक ही मौत हुई है। समिति के अध्यक्ष डॉ. एनके अरोड़ा ने बताया, यह कोरोना वैक्सीनेशन से जुड़ा एनाफिलेक्सिस से मृत्यु का पहला मामला है।
दरअसल, कोरोना वैक्सीन के दुष्प्रभावों को लेकर तरह-तरह के दावे किए जा रहे थे। इस बीच, कुछ लोगों ने 31 लोगों की मौत, कोरोना वैक्सीन से होने का दावा किया था। इसे देखते हुए सरकार ने कोरोना वैक्सीन के Serious Side Effects की समीक्षा के लिए एक समिति बनायी थी। वैक्सीन लगने के बाद कोई गंभीर बीमारी होने या मौत होने को वैज्ञानिक भाषा में Adverse Events Following Immunization यानी AEFI कहा जाता है।
इस National AEFI Committee ने वैक्सीन लगने के बाद हुई 31 मौतों की समीक्षा करने के बाद बताया कि एक बुजुर्ग जिसकी उम्र 68 साल थी, उसकी मौत वैक्सीन लगने के बाद एनाफिलैक्सीस से हुईं हैं।
5 फरवरी से 31 मार्च के बीच कोविड-19 महामारी से बचाव के लिए वैक्सीन लेने वाले लाखों लोगों में से सिर्फ 31 में Anaphylaxis दिखाई दिया और उनमें एक की मृत्यु हो गई। यानी, स्पष्ट है कि कोरोना वैक्सीन से मौतों की बात झूठी है।
हां, इस एक मौत को कोरोना वैक्सीन के साइड इफेक्ट से जरूर जोड़ा जा सकता है। ध्यान रहे कि 5 फरवरी से 31 मार्च के बीच भारत में 60 लाख लोगों को कोरोना की वैक्सीन लगाई गई थी। AEFI की निगरानी के लिए बनी राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष डॉ. एनके अरोड़ा ने कहा, “यह पहली डेथ है जिसमें वैक्सीन के कारण एनाफिलैक्सिस रिएक्शन होने की पुष्टि हुईं हैं। करोड़ों लोग वैक्सीन ले चुके हैं, लेकिन बहुत कम लोगों पर गंभीर दुष्प्रभाव हुए। सिर्फ 31 लोगों में ही एनाफिलैक्सिस केस का पता चला और सिर्फ एक मौत की पुष्टि हो पाई है। ज्यादातर एनाफिलैक्सिस रिएक्शन वाले मरीजों का इलाज हो गया।”
बुजुर्ग को 8 मार्च 2021 को वैक्सीन की पहली डोज लगी थी और कुछ दिन बाद ही उनकी मौत हो गई थी। इससे यह बात और स्पष्ट होती है कि टीका लगवाने के बाद टीकाकरण केंद्र पर 30 मिनट तक इंतजार करना जरूरी है।
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समिति ने पांच ऐसे मामलों का अध्ययन किया, जो पांच फरवरी को सामने आए थे, आठ मामले नौ मार्च को और 18 मामले 31 मार्च को सामने आए। रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल के पहले सप्ताह के आंकड़ों के अनुसार, टीके की प्रति 10 लाख डोज में मृत्यु के मामले 2.7 हैं। इतनी ही डोज में अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या 4.8 है।
समिति ने कहा कि केवल मृत्यु होना या रोगी का अस्पताल में भर्ती होना इस बात को साबित नहीं कर देता कि ये घटनाएं टीका लगवाने के कारण हुईं। समिति के अनुसार, मौत के कुल 31 मामलों में से 18 मामलों का टीकाकरण से कोई लेना-देना नहीं पाया गया। सात मामलों को अनिश्चित की श्रेणी में रखा गया। तीन मामले टीके के उत्पाद से संबंधित थे। 1 मामला nxiety-related reaction था और 2 अवर्गीकृत के रूप में।
इसलिए जनता को फैलाये जा रहे झूठ के झांसे में नहीं आना चाहिए। 26 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन की डोज लगायी जा चुकी हैं। इसमें कोई शक नहीं कि हमें टीका लगवाना चाहिए। थोड़ा जोखिम है, लेकिन वह नगण्य है। भारत सरकार लगातार इस जोखिम को कम करने के लिए ही प्रयासरत है।