ट्विटर इन दिनों मिशन सुसाइड पर लगा हुआ है। ट्विटर पर आईटी नियमों के पालन को लेकर पहले ही कार्रवाई की तलवार लटक रही है। वहीं कल Twitter ने भारत में कुछ महत्वपूर्ण बड़ी शख्सियतों के वेरिफिकेशन बैज को हटा दिया है, जिसमें आरएसएस के कई बड़े नेता और भारत के उपराष्ट्रपति भी शामिल थे। ट्विटर का तर्क था कि इन लोगों ने कई दिनों से ट्वीट नहीं किया था इसलिए ऐसा करना पड़ा, लेकिन ये सरासर बकवास है। रवीश कुमार जैसे कई लोग हैं जिन्होंने लम्बे समय से ट्विटर का इस्तेमाल नहीं किया है किंतु उनका वेरिफिकेशन बैज नहीं हटाया गया। साफ है कि ट्विटर ने यह काम जानबूझकर किया था, संभवतः वह भारत सरकार को चुनौती देना चाहता था।
हालांकि, जैसे ही केंद्र ने ट्विटर के कान मोड़े, एक अच्छे बच्चे की तरह ट्विटर ने सभी लोगों के वेरिफिकेशन बैज वापस कर दिए। किन्तु इस प्रकरण के बाद यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि क्या वाकई ट्विटर भारत सरकार के साथ शक्ति प्रदर्शन का खेल खेलने की इच्छा रखता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले दिनों भी ट्विटर ने टूलकिट प्रकरण में जो रवैया अपनाया था वह केंद्र सरकार को बिल्कुल पसंद नहीं आया था।
ट्विटर ने किसी ऐसे साधारण फैक्ट चेकर की बात पर कार्रवाई की थी जिसकी कोई विश्वसनीयता नहीं थी। ऐसे किसी भी ऐरे गैरे फैक्ट चेकर की बात को आधार बनाकर ट्विटर ने भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा के ट्वीट को मैनिपुलेटेड ट्वीट की श्रेणी में डाल दिया। इतना ही नहीं ट्विटर ने उस टूलकिट को ट्वीट करने वाले हर व्यक्ति के ट्वीट को इसी प्रकार फ्लैग किया। इसमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल जैसे बड़े नाम शामिल थे। यह सीधे-सीधे दिखाता है कि ट्विटर कांग्रेस के वफादार की भूमिका में है। वह बार बार यह दिखाना चाह रहा है कि वह बहुत क्रांतिकारी प्लेटफार्म है और भारत में वामपंथी उदारवादी धड़े का मसीहा है।
किन्तु प्रश्न उठता है कि क्या अमेरिका के इस सोशल मीडिया प्लेटफार्म के मालिकों को ट्विटर इंडिया के वर्तमान रवैये की जानकारी है। सम्भवतः अमेरिका में बैठे ट्विटर के आका इस बात से पूरी तरह वाकिफ नहीं कि ट्विटर इंडिया का भारत सरकार के साथ कैसा विवाद चल रहा है। निश्चित रूप से नए IT नियम, दिल्ली पुलिस की रेड जैसी महत्वपूर्ण बातों की जानकारी अमेरिका स्थित मुख्य लोगों को होगी, किन्तु जमीनी स्तर पर किसका एकाउंट सस्पेंड हो रहा है, किसका ब्लू बैज हट रहा है इसकी जानकारी उन्हें नहीं होगी।
ट्विटर स्वभाव से ही वामपंथी झुकाव वाला सोशल मीडिया प्लेटफार्म है, किंतु उसका संचालक बोर्ड भारत जैसे बड़े मार्केट को खोने की बेवकूफी नहीं करेगा। इस समय ट्विटर इंडिया जिस प्रकार खुलेआम यह दिखा रहा है कि वह केंद्र के साथ टकराव सुलझाने के मूड में नहीं है, या कहें कि टकराव बढ़ाने के ही मूड में है, उसे देखकर यह लगता है कि अमेरिकी संचालक बोर्ड को तुरंत एक्टिव मोड में आना चाहिए।
भारत सरकार भी अपनी छवि की चिंता में तथा लोगों से चर्चा का एक प्लेटफार्म न छिन जाए, इस वजह से, ट्विटर पर कोई बड़ी कार्रवाई नहीं कर रही है। उसे उम्मीद है कि अमेरिकी संचालक बोर्ड होश में आएगा और इन छुटभैये क्रांतिकारियों को, जो ट्विटर इंडिया के ऑफिस में बैठे हैं, उनकी सीमा समझाएगा। अन्यथा एक ही परिणाम निकलेगा की मजबूरन सरकार को इस सोशल मीडिया प्लेटफार्म के विरुद्ध बड़ी कार्रवाई करनी पड़ेगी।