कश्मीर में एक और परिवर्तन: हम आपको बतातें हैं जम्मू कश्मीर क्या होने वाला है

PC: Hindustan Times

इन दिनों कश्मीर घाटी में फिर से गहमा गहमी देखने को मिल रही है। सेना के टुकड़ियों की अतिरिक्त तैनाती की गई है। गृह मंत्रालय की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से लेकर तीनों सेनाओं के  प्रमुख के साथ एक बार बैठक हो चुकी है। ऐसे में अब कई कयास लगाए जा रहे हैं कि कश्मीर में आने वाले समय में किस प्रकार के बदलाव हो सकते हैं। इसके साथ ही 24 जून तक प्रधानमंत्री द्वारा एक सर्वदलीय बैठक तय है।

जिस प्रकार से वर्तमान समीकरण बिठाए जा रहे हैं, उसको देखते हुए तीन प्रकार के बदलाव की संभावनायें हैं। इनमें से सभी बदलाव संभव हो, ये भी जरूरी नहीं। लेकिन सभी बदलाव निरर्थक हों, ये भी आवश्यक नहीं। ऐसे में जो तीन बदलाव संभव है, वो हैं – जम्मू कश्मीर का अलग किया जाना, जम्मू कश्मीर का नए सिरे से परिसीमन और कश्मीरी पंडितों की घर वापसी।

जम्मू कश्मीर का अलग किये जाने से क्या मतलब है? मतलब यह है कि जिस प्रकार से ‘कश्मीरी नागरिक’ रहना चाहते हैं, जैसे अधिकार उन्हें चाहिए, उन्हें वैसे अधिकार दे दिए जाए। ऐसी भूल भारत सरकार, विशेषकर नरेंद्र मोदी के शासन में शायद ही कोई करे। ऐसा इसलिए क्योंकि ये इस्लाम परस्त आतंकियों को मानो गिफ्ट में कश्मीर देने के समान होगा।

दूसरा मामला है कश्मीर प्रांत के परिसीमन का, जिसमें नए आधार पर लोकसभा, राज्यसभा एवं विधानसभा की सीटें तय होंगी। इसकी संभावना अधिक यथार्थवादी एवं प्रभावी लगती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि केंद्र सरकार ने जब अनुच्छेद 370 निरस्त किया था, तो उनका उद्देश्य स्पष्ट था – जम्मू कश्मीर के तत्कालीन परिसीमन प्रणाली में बदलाव लाना और जम्मू प्रभाव को वहां की राजनीति में बढ़ाना। इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमारे देश के रणनीतिकारों ने अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति के चक्कर में सदैव कश्मीरियों को प्राथमिकता दी है। इसी कारण जम्मू को चाहकर भी कोई महत्व नहीं मिला, और तो और लद्दाख तो अलग-थलग सा पड़ जाता था।

लेकिन अब स्थिति में बहुत बड़ा अंतर आ चुका है। अब लद्दाख एक अलग केंद्र शासित प्रदेश है। जम्मू और कश्मीर फिलहाल के लिए केंद्र शासित प्रदेश, लेकिन परिसीमन द्वारा पुनर्गठित होते ही राज्य में वापिस तब्दील हो जाएंगे। ऐसे में केंद्र सरकार यही चाहेगी कि जम्मू और कश्मीर के नागरिकों को समान दर्जा मिले, और कश्मीर का एकाधिकार खत्म हो।

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तीसरा विकल्प भी संभव है – कश्मीरी पंडितों की घर वापसी। हालांकि, ये ख्याल ही हास्यास्पद है। इसलिए नहीं क्योंकि सरकार को हिंदुओं से कोई बैर है, परंतु इसलिए क्योंकि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार पहले से ही कश्मीरी हिंदुओं को उनका खोया गौरव वापिस दिलाने में लगी हुई है। कश्मीर में कई ऐसे मंदिर हैं, जहां पहले आतंकियों के भय से कोई भी नहीं जाता था, लेकिन अब अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद से वहाँ सभी हिन्दू वापिस दर्शन के लिए आने लगे हैं। ऐसे में कश्मीरी हिंदुओं को अपने घर वापसी के प्रयासों को बल देने की आवश्यकता है। ये तो केवल संभावनायें हैं, वास्तव में आखिरी निर्णय तो केंद्र सरकार को ही लेना है जिसकी प्रतीक्षा पूरा भारत कर रहा है।

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