जिस प्रकार से पश्चिम बंगाल में राजनीतिक विरोधियों का दमन किया जा रहा है, उसके बारे में जितना बोला जाए, कम है, लेकिन हद तो तब हो गई जब ये सामने आया कि TMC से भाजपा में जो लोग गए थे, उनके वापिस TMC में आने पर उनका स्वागत मुंडन से किया जा रहा है।
जी हाँ, मुंडन से। बंगाल के बंगाल के हुगली जिले से खबर आई है कि TMC से जिन कार्यकर्ताओं ने पीएम मोदी के प्रभाव में आकर भाजपा ज्वाइन की, वे फिर मंगलवार को TMC में लौट गए। कुछ ने ‘‘पश्चाताप में’’ सिर मुंडवाया लिया। स्थानीय सांसद अपरूपा पोद्दार की मौजूदगी में खानकुल इलाके के बलपाई क्षेत्र में कुल 500 भाजपा कार्यकर्ता फिर से TMC में शामिल हो गए।
कार्यक्रम के बाद पोद्दार ने संवाददाताओं से कहा कि इन कार्यकर्ताओं ने बताया कि वे भगवा दल की सांप्रदायिक, नफरत की राजनीति से ऊब गए थे और टीएमसी में लौटना चाहते थे। इनमें से आठ कार्यकर्ताओं ने कार्यक्रम में अपने सिर मुंडवाए और दावा किया कि विधानसभा चुनाव में अपने ‘कृत्यों के पश्चाताप’ के कारण ऐसा कर रहे हैं।
लेकिन लौटने से पहले मुंडन क्यों? दरअसल, यहाँ TMC में संदेश स्पष्ट है – बंगाल में रहना है तो ममता का नाम जपना है। ममता का खौफ कुछ इस कदर है कि सुप्रीम कोर्ट में उसके पार्टी के विरुद्ध केस की जांच पड़ताल कर रहे बंगाली जज तक अपने आप को चुपचाप मामले से दूर करने में जुटे हुए हैं। इतना खौफ तो इससे पहले केवल कोलंबिया के माफिया पाबलो एसकोबार के बारे में ही सुनने को मिलता था। शायद जब मुकुल रॉय ने तृणमूल वापिस जॉइन करते हुए दावा किया था कि ये तो बस ‘शुरुआत है’, तो वे कहीं न कहीं इसी ओर इशारा कर रहे थे।
परंतु जिस प्रकार से हर चीज की अति हानिकारक होती है, उसी प्रकार से बंगाल में जिस प्रकार से भाजपा के कार्यकर्ताओं और गैर मुसलमानों के विरुद्ध बंगाल के वर्तमान प्रशासन की निरंकुशता दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है, वो भी अनियंत्रित नहीं रह सकती। कलकत्ता हाईकोर्ट ने पहले ही इसपर होने वाली जांच पर रोक लगाने से माना कर दिया है और आने वाले कुछ वर्षों में यदि ममता बनर्जी को न्यायपालिका की स्वीकृति से सत्ता से धक्के मारकर बाहर निकाला जाए, तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए।