“ना घर के ना घाट के” यह प्रसिद्ध कहावत चरितार्थ हो रही है टीएमसी के उन नेताओं के लिए जो चुनाव से पहले भाजपा से जुड़े थे और फिर चुनाव खत्म होने के बाद तृणमूल से जुड़ना चाहते है, क्योंकि तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि वे भाजपा में पलायन करने वालों नेता का वापस पार्टी में स्वागत नहीं किया जाएगा।
हाल ही में मुकुल रॉय और उनके बेटे की टीएमसी में वापसी के बाद, उनके करीबी सहयोगी और उत्तर 24 परगना जिला परिषद के सदस्य रतन घोष ने रविवार को भाजपा का साथ छोड़ दिया है और टीएमसी में वापस लेने की अपील की। तब से भाजपा के राज्य अनुसूचित जाति (एससी) मोर्चा के अध्यक्ष दुलाल बार, एक पूर्व टीएमसी विधायक और अन्य मुकुल सहयोगी ने भी भगवा खेमे से नाराजगी व्यक्त की है।
पूर्व मंत्री और भाजपा नेता राजीब बनर्जी की टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष के साथ बैठक के बाद से ही सत्ताधारी पार्टी टीएमसी में उनकी वापसी के बारे में अटकलें लगाईं जा रही हैं। भाजपा नेता सुनील सिंह, बिस्वजीत कुंडू, सोनाली गुहा, प्रबीर घोषाल, सब्यसाची दत्ता, और दीपेंदु विश्वास ने भी टीएमसी में फिर से शामिल होने की इच्छा व्यक्त की है।
हालांकि, टीएमसी नेताओं और कार्यकर्ताओं का एक वर्ग इन नेताओं को पार्टी में वापस नहीं देखना चाहता है। हावड़ा जिले में राज्य मंत्री अरूप राय के समर्थकों ने विभिन्न स्थानों पर पोस्टर लगाकर राजीब बनर्जी को शामिल किए जाने का विरोध किया है। यही नहीं हाल ही में भाजपा नेता के खिलाफ एक रैली भी की थी।
हुगली जिले में, टीएमसी कार्यकर्ता पूर्व विधायक प्रबीर घोषाल की तृणमूल में वापसी को रोकने के लिए प्रचार कर रहे हैं, जो भाजपा के टिकट पर चुनाव हार गए थे। हाल के दिनों में हुगली के कोननगर इलाके में घोषाल विरोधी कई पोस्टर सामने आए हैं। ऐसे ही उत्तर 24 परगना जिले के नोआपारा और बैरकपुर में बीजेपी सांसद अर्जुन सिंह के साले सुनील सिंह की वापसी के खिलाफ पोस्टर लगे है।
दल बदलुओं की बहाली के लिए व्यापक जमीनी प्रतिरोध को देखने के बाद, टीएमसी नेतृत्व दुविधा में है। ऐसे में कई नेताओं का मानना है कि इससे कई नेताओं की वापसी में देरी हो सकती है। पार्टी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही घोषणा कर चुकी हैं कि पूर्व नेताओं को वापस लेने का फैसला करने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा।
ऐसे में यह भाजपा के लिए भी बहुत बड़ी सीख है, कि उनको आगे से सचेत रहना होगा और सिर्फ ऐसे नेताओं को साथ लेकर आगे बढ़ने की ज़रूरत है, जो कि भाजपा के विकासशील विचारधारा के कारण जुड़ रहे हो, न कि मुकुल रॉय और उनके बेटे की तरह राजनितिक फायदों के लिए, जो कभी भी पीठ में छुरा घोंप दे।