कुछ लोगों को देखकर एक ही कहावत सिद्ध होती है – नाम बड़े और दर्शन छोटे। कुछ ऐसा ही हाल हुआ है मनीष माहेश्वरी का। जब हाल ही में ट्विटर इंडिया के वर्तमान एमडी पर कार्रवाई हुई, तो उन्हें FIR के अंतर्गत जवाब देने को कहा गया। अब ये सामने आ रहा है कि ट्विटर इंडिया के एमडी का पद तो सिर्फ नाम का है, असल में ये जरूरत से ज्यादा कमाने वाले एक क्लर्क से अधिक कुछ नहीं है।
हम मज़ाक नहीं कर रहे हैं, आप खुद इन तथ्यों को जांच परख कर देख सकते हैं। हाल ही में टूलकिट वाले कांड को लेकर दिल्ली पुलिस ने ट्विटर इंडिया के एमडी, मनीष माहेश्वरी से पूछताछ की। बता दें कि ट्विटर ने भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ सम्बित पात्रा द्वारा भारत सरकार के कोविड रोधी अभियान को पटरी से उतारने के लिए कांग्रेस के टूलकिट अभियान की पोल खोलने वाले ट्वीट्स को ‘Manipulated Media’ की श्रेणी में डाला, यानि इसे भ्रामक मीडिया करार दिया गया।
इसी संबंध में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने हाल ही में ट्विटर इंडिया के एमडी से पूछताछ की। इससे न सिर्फ पूरे मामले की स्पष्ट कहानी सामने आ रही है, बल्कि ये भी सामने आ रहा है कि कैसे ट्विटर वैश्विक स्तर पर लोगों को उल्लू बना रहा है और असल में ‘मैनिपुलेशन’ तो ट्विटर से ही शुरू होता है।
केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ सूत्र से इंडिया टुडे की बातचीत के अनुसार, “नौटंकी तो ट्विटर के द्वार से ही शुरू होती है। उसे तो अपने कर्मचारियों का पहले फैक्ट चेक करना चाहिए। ट्विटर इंडिया के सबसे वरिष्ठ अधिकारी ने लोगों को उल्लू बनाते हुए कहा है कि मनीष माहेश्वरी ट्विटर इंडिया के एमडी हैं, जबकि वह खुद कहते हैं कि वे तो केवल सेल्स हेड हैं। या तो वे झूठ बोल रहे हैं या फिर ट्विटर का वरिष्ठ प्रशासन झूठ बोल रहा है”।
स्वयं मनीष माहेश्वरी के अनुसार उन्हें यही नहीं मालूम कि कंपनी के डायरेक्टर कौन है। यदि ये बात सच है तो ऐसा विचित्र डायरेक्टर विरले ही देखने को मिला होगा। कहने को मनीष माहेश्वरी ट्विटर इंडिया के एमडी हैं, लेकिन उनका कहना है कि उन्हें अपनी ही कंपनियों के डायरेक्टर के बारे में जानने के लिए भारत सरकार के कॉर्पोरेट मंत्रालय द्वारा मेन्टेन किये गए रिकॉर्ड से पता करना पड़ा। या तो मनीष बाबू ने भारतीय व्यवस्था को बेवकूफ समझा है या वे बेवकूफ बन रहे हैं।
हालांकि वे भूल रहे हैं कि जब टिक टॉक, अलीबाबा जैसी चीनी कंपनियों की दाल नहीं गली, तो भला ट्विटर जैसे कंपना की क्या बिसात? जिस प्रकार से कानूनी शब्दावली के खेल में महोदय भारतीय प्रशासन को उलझाना चाहते हैं, वे भूल रहे हैं कि ये बाद में उन्हें ही भारी पड़ सकता है।