United Nations में इजरायल-विरोधी प्रस्ताव पर हुई वोटिंग में अनुपस्थित रहने के लिए फिलिस्तीन के विदेश मंत्री ने भारत सरकार को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति जताई है। फिलिस्तीनी विदेश मंत्री Dr Riad Malki ने एक पत्र लिखकर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर को अपनी आपत्ति जताई, जिसके बाद भारत ने भी फिलिस्तीन को दो टूक शब्दों में साफ़ किया है कि इजरायल-फिलिस्तीन विवाद पर भारत ने यह रुख कोई पहली बार नहीं दिखाया है।
UK and Germany voted against the resolution.
France and Japan, among others, abstained. https://t.co/NEhYRhZJSj— Vikrant Singh (@VikrantThardak) May 27, 2021
दरअसल, पिछले हफ्ते UN में एक इजरायल-विरोधी प्रस्ताव के तहत इजरायल द्वारा कथित तौर पर किए जा रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए वोटिंग की गयी थी, जिसमें जापान और भारत जैसे देशों ने अनुपस्थित रहने का फैसला लिया था। फिलिस्तीन की उम्मीद थी कि भारत इजरायल-विरोधी प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं, जिसके बाद फिलिस्तीन के विदेश मंत्री ने भारत को पत्र लिखा।
पत्र के अनुसार “भारत के रुख के कारण फिलिस्तीनीयों की इजरायल के खिलाफ हक़ की लड़ाई को बड़ा नुकसान पहुंचा है। भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर इजरायल द्वारा किए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय नियमों के उल्लंघनों की निंदा करने का एक सुनहरा अवसर हाथ से जाने दिया।” फिलिस्तीन ने अपने पत्र में यह भी लिखा था कि औपनिवेशक मानसिकता वाली इज़रायली सरकार को दंडित करना किसी भी देश की प्राथमिकता होनी चाहिए।”
इसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने बड़े ही साफ शब्दों में इस पत्र का जवाब भी दिया। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक बयान जारी कर कहा “फिलिस्तीन के विदेश मंत्री ने सिर्फ भारत को ही नहीं, बल्कि अनुपस्थित रहने वाले सभी देशों को पत्र लिखा है। हमारी स्थिति कोई नई नहीं है बल्कि हम पहले भी कई मौकों पर अनुपस्थित रह चुके हैं।”
इससे पहले UN में एक बयान देकर भारत हमास के द्वारा इजरायल के नागरिकों को नुकसान पहुंचाने के लक्ष्य से “अंधाधुंध रॉकेट फायरिंग” का विरोध कर चुका है। इतना ही नहीं, 16 मई को जारी किए गए भारतीय बयान में हमास की कार्रवाई के लिए इजरायल द्वारा “जवाबी हमले” शब्द का इस्तेमाल किया गया था।
आपको बता दें कि इजराइल और भारत ने 29 जनवरी 1992 को पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित किए थे। उसके बाद से केंद्र में मुख्य तौर पर क़ाबिज़ रही कांग्रेस की सरकार इस रिश्ते को ज्यादा बल नहीं दे पाई। परंतु साल 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस प्रकार से भारत और इजरायल के रिश्तों को मजबूत किया है, वह आज साफ़ देखा जा सकता है। भारत के नए रुख से फिलिस्तीन को पीड़ा बेशक पहुँच सकती है लेकिन मोदी सरकार इजरायल को अपना समर्थन देने से पीछे नहीं हट सकती।