वैक्सीन, ऑक्सीजन और डंपिंग घोटाला: महामारी के बीच चार गैर-भाजपा शासित राज्य और तीन बड़े घोटाले

कोरोना महामारी में भी इन्हें बस जेब भरनी है!

वैक्सीन

विपत्ति हो या सामान्य दिन कुछ लोगों का स्वाभाव नहीं बदलता। इसी तरह भारत की विपक्षी पार्टियाँ भी है। कोरोना जैसी महाआपदा में भी इनका भ्रष्टाचारी स्वाभाव नहीं बदला। कभी वैक्सीन स्कैम तो कभी ऑक्सीजन स्कैम की खबरे सामने आई। खास बात यह है ये स्कैम उन्हीं राज्यों से हुए जहाँ कांग्रेस और AAP जैसी पार्टियां का शासन है। ये राज्य है राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र और दिल्ली। ऐसा लगता है ये घोटाले जानबूझ कर करवाए गए थे, जिससे केंद्र सरकार की बदनामी को। आखिर, वैक्सीन को कूड़े में फेकने का क्या तात्पर्य?

सबसे पहले बात करते हैं राजस्थान की।

राजस्थान में वैक्सीन को कूड़े में फेंकने की खबर सामने आई। यानी जानबूझकर वैक्सीन की बर्बादी की गयी। दैनिक भास्कर की खास रिपोर्ट से यह घोटाला एक्सपोज हुआ कि राजस्थान में वैक्सीन कूड़े में फेंक कर बर्बाद किया जा रहा है। राजस्थान के 8 जिलों में 2500 वैक्सीन डोज कूड़ेदान में बर्बाद मिली थी। दैनिक भास्कर ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि “राजस्थान में अब भी 80% तक भरी वैक्सीन कचरे के ढेर में पड़ी है। जमीन में गाड़ी भी जा रही है। बुधवार को भास्कर प्रदेश के 10 स्वास्थ्य केंद्रों से ये सच बीनकर लाया है।” दैनिक भास्कर ने आगे यह भी दावा किया है कि, ”अस्पताल परिसर में कचरे के ढेर में सैकड़ों वैक्सीन पड़ी है। भास्कर ने 12 फीट गहरे गड्‌ढे में उतरकर देखा तो बहुत सी वायल 80% तक भरी नजर आई। ऐसे ही कुछ दिनों पहले रिकॉर्ड बनाने के चक्कर में राजस्थान सरकार मुर्दों को भी टीका लगा रही थी। यानी एक तरफ राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत वैक्सीन की कमी के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं तो वहीँ दूसरी तरफ उनके राज्य में मेडिकल स्टाफ द्वारा वैक्सीन बर्बाद कर रहे हैं।

वहीँ पंजाब की बात की जाए तो यहाँ वैक्सीन को बेच फायदा कमाया जा रहा है। पंजाब सरकार सस्ते दामों में केंद्र सरकार से COVAXIN खरीदकर उसे निजी अस्पतालों में महंगे दामों में बेच रही है। रिपोर्ट के अनुसार, हाल ही में खरीदी गई एक लाख शीशियों में से राज्य सरकार ने राज्य भर के निजी अस्पतालों को कम से कम 20,000 शीशियों को 1,060 रुपये प्रति खुराक की दर से बेच दिया है। बता दें कि पंजाब सरकार ने यह वैक्सीन राज्य कोटे के माध्यम से केंद्र सरकार से 400 रुपये में खरीदी थी। यानी पंजाब सरकार को 660  रुपये प्रति डोज का फायदा हो रहा है। 1060 रुपये में खरीदने के बाद अब निजी अस्पताल लोगों से कम से कम ₹1,560 प्रति शॉट वसूल रहे हैं यानी उनका भी 500 प्रति डोज की कमाई हो रही है और 400 रुपये की वैक्सीन के लिए राज्य की जनता 1,560 रुपये का भुगतान कर रही है।

वहीँ महाराष्ट्र में वैक्सीन की बर्बादी हो रही है। महाराष्ट्र के मुलुंड के भाजपा विधायक ने किसी वैक्सीन घोटाले का शक जाहिर किया है और जांच की मांग की है। महाराष्ट्र के मुलुंड के भाजपा विधायक मिहिर कोटेचा ने एक सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा कि, “एक महिला ने मुझे अपनी पहली खुराक का प्रमाणपत्र दिखाया, जो वैक्सीन न लेने के बावजूद उसके घर पर पहुंचाया गया था। अब उसे डर है कि उसे पहली खुराक मिलेगी या नहीं। यहां एक बड़े वैक्सीन घोटाले की गंध आ रही है, इसकी पूरी जांच होनी चाहिए।” वहीँ अप्रैल में केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने आरोप लगाया था कि महाराष्ट्र सरकार योजना के अभाव के चलते कोरोना वैक्सीन की पांच लाख खुराकें बर्बाद हुई थी। यह मामूली संख्या नहीं है।

वहीँ दिल्ली में तो जिस तरह से केजरीवाल ने अराजकता फैलाई उससे न सिर्फ ऑक्सीजन की कमी हो गयी, बल्कि लोगों को इसकी कीमत अपनी जान से चुकानी पड़ी। जब हजारों टन ऑक्सीजन और ventilators केंद्र और अन्य राज्यों द्वारा आवंटित किये जाने के बाद भी दिल्ली में स्थिति जस की तस बनी रही और लोग ऑक्सीजन की कमी से मरते रहे थे। यह किसी को पता ही नहीं चला कि आखिर दिल्ली को मिलने वाला ऑक्सीजन गया कहा। हालाँकि, केजरीवाल और सिसोदिया हर दिन मीडिया के सामने ऑक्सीजन के लिए रोते रहे थे, परन्तु जैसे ही केंद्र सरकार ने ऑक्सीजन के ऑडिट का फैसला किया, केजरीवाल सरकार विरोध में उतर आई। आखिर क्यों यह भी सोचने वाली बात थी। उनका विरोध स्पष्ट घोटाले की और संकेत कर रहा था। खान मार्केट में नवनीत कालरा के तीन रेस्टोरेंट्स से 524 आक्सीजन कंसंट्रेटर्स बरामद किए गए थे। अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में 2020 में दिल्ली सरकार ने कालरा को 48 हस्तियों के साथ “दिल्ली के निर्माता” के रूप में सम्मानित किया था। बता दें कि 500 से अधिक ऑक्सीजन कंसंट्रेटर मिलने के मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा दस्तावेजों की प्रारंभिक जांच और विश्लेषण में यह बात सामने आई कि नवनीत कालरा द्वारा 15000 में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर ख़रीदा और 70000 हजार में बेचे जा रहे थे।

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यानी इन चारो राज्यों के उदहारण देखे तो यह स्पष्ट होता है कि कोरोना जैसी महामारी के बावजूद वैक्सीन घोटाला, ऑक्सीजन घोटाला और डंपिंग घोटाला अपने चरम पर है। महामारी के बीच चार गैर-भाजपा शासित राज्यों में अलग-अलग तरह के घोटाले उनकी वास्तविकता को ही दिखाते हैं कि ये पार्टियाँ देश और लोगों की भावनाओं और महामारी के प्रकोप की चिंता नहीं करती हैं। इन्हें तो बस अपनी जेब भरनी है और केंद्र को किसी भी तरह से बदनाम करना है

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