भारत ने म्यांमार पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव पर वोटिंग से किया परहेज

कारण भी जान लीजिए!

म्यांमार

भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में म्यांमार सेना का पक्ष लिया। हाल में म्यांमार को हथियारों के निर्यात करने पर प्रतिबंध लगाने वाले एक प्रस्ताव पर वोटिंग के समय भारत के प्रतिनिधि अनुपस्थित रहे। इस प्रकार भारत ने हथियारों के निर्यात पर प्रतिबंध का समर्थन नहीं किया। भारत के अलावा चीन और रूस भी इस प्रस्ताव पर वोटिंग में शामिल नहीं हुए। किंतु भारत एकमात्र बड़ी लोकतांत्रिक शक्ति है, जिसने इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया।

भारत के प्रतिनिधियों का कहना था कि प्रस्ताव म्यांमार के प्रति भारत के नजरिए से मेल नहीं खाता है। हालांकि, इसका अर्थ यह नहीं कि भारत ने म्यांमार के सैन्य शासन का समर्थन किया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि टी एस त्रिमूर्ति ने कहा कि भारत, म्यांमार के लिए आसियान देशों की ओर से किए जा रहे प्रयासों के साथ है और इस समस्या के लिए प्रस्तावित पांच सूत्रीय कार्यक्रम का समर्थन करता है। आसियान का पांच सूत्रीय कार्यक्रम मांग करता है कि म्यांमार में सभी पक्ष तत्काल हिंसा पर रोक लगाएं, रचनात्मक बातचीत में शामिल हों और एक ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचे जो जनता के हित में हो। भारत ने लोकतंत्र का समर्थन किया है तथा कहा है कि भारत का मानना है कि इसका रास्ता बातचीत से और शांतिपूर्ण तरीके से ही निकले।

भारत द्वारा इस समस्या के प्रति एक नपातुला दृष्टिकोण अपनाया गया है। म्यांमार की राजनीति में वहाँ की सेना एक महत्वपूर्ण घटक है। सेना लम्बे समय तक सत्ता में रही है जबकि लोकतंत्र की बहाली हाल के दशकों में ही हुई है। ऐसे में सेना को पूरी तरह नजरअंदाज करना एक बड़ी भूल होगी। भारत और म्यांमार एक दूसरे के साथ सीमा साझा करते हैं। भारत के उत्तर पश्चिम भाग में लम्बे समय तक अलगाववादी आतंकियों का वर्चस्व रहा है। ये लोग भारत में हिंसा को अंजाम देकर म्यांमार में छुप जाते थे। हाल ही के वर्षों में भारतीय सेना को अलगाववादी ताकतों से निपटने में म्यांमार की सेना से बहुत मदद मिली है। ऐसे में भारत सरकार नहीं चाहेगी की उसके संबंध सेना से भी बिगड़ें।

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लेकिन सबसे बड़ी समस्या चीन की है, जो म्यांमार की सेना को समर्थन देकर म्यांमार में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। भारत कभी नहीं चाहेगा कि नेपाल और श्रीलंका के बाद म्यांमार में भी चीन का प्रभाव बढ़े। ऐसे में भारत की नीति है कि वह सेना को बिना नाराज किए, लोकतंत्र की बात करे। यही कारण था कि भारत ने लोकतंत्र की बहाली की अपील की थी, लेकिन इसके बाद भी म्यांमार की सेना द्वारा आयोजित परेड में हिस्सा लिया था। भारत एकमात्र लोकतांत्रिक देश था, जो इस परेड का हिस्सा बना था।

महत्वपूर्ण यह है कि म्यांमार की सेना भी नहीं चाहती कि भारत से उसके संबंध बिगड़ें। एक तो भारत क्षेत्र की महाशक्ति है, दूसरी ओर लोकतांत्रिक देशों या कहें पश्चिमी ताकतों और सेना के बीच की एकमात्र कड़ी है। भारत की उपस्थिति म्यांमार की सेना के लिए भी लाभदायक रहती, क्योंकि उन्हें भी इससे मौका मिलता है कि वह अपने लोगों से यह कह सकें कि लोकतांत्रिक देश भी उनके पक्ष में हैं।

इन सब के अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण कारण सैन्य निर्यात है। म्यांमार में चीनी सैन्य उत्पाद बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में भारत के लिए एक चुनैती भी है और अवसर भी। म्यांमार को रक्षा निर्यात करने के लिए भारत की उत्सुकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपने देश में पनडुब्बी की कमी के बाद भी भारत ने एक पनडुब्बी म्यांमार को उपहार में दी है, भारत को उम्मीद है कि म्यांमार भविष्य में भारतीय कंपनी को सबमरीन निर्माण का टेंडर दे सकता है। इसके अतिरिक्त तेजस विमान से लेकर, लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर, टॉरपीडो, पिनाका मिसाइल सिस्टम, ब्रह्मोस मिसाइल जैसे कई हथियार म्यांमार को बेचे जा सकते हैं।

यह किसी को अनैतिक लग सकता है कि भारत जैसा लोकतांत्रिक देश म्यांमार की सेना का समर्थन कर रहा हैं, लेकिन मूल बात यह है कि भूराजनीतिक समीकरण नैतिकता पर नहीं चलते। आदर्शवाद की बात करने वाले नेहरूवादी विदेश नीति का शिकार होते हैं, जिसमें केवल लच्छेदार बातें होती हैं, वास्तविक लाभ शून्य रह जाता है।

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