कर्नाटक के राजनीतिक समीकरणों में जल्द बदलाव देखने को मिल सकता है। ऐसा हमारा मानना नहीं है, बल्कि स्वयं कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदयुरप्पा इसी ओर संकेत दे रहे हैं। उनका मानना है कि अगर हाईकमान की ओर से निर्देश आया, तो वे कुर्सी छोड़ने के लिए भी तैयार हैं।
येदयुरप्पा के अनुसार, “मेरे अलावा भी भाजपा में कई विकल्प हैं। यदि पार्टी हाईकमान कहता है कि मुझे अपने पद से त्यागपत्र देना चाहिए। यदि किसी को मुझसे आपत्ति है तो वह निस्संकोच इस बात को कह सकता है, मैं विरोध नहीं करूंगा।”
दरअसल जनवरी से ही बी एस येदयुरप्पा को अपने सरकार के कैबिनेट विस्तार के बाद से कई नेताओं के द्वारा विद्रोह का सामना करना पड़ा है। प्रारंभ में येदयुरप्पा इन लोगों की तरफ देखते भी नहीं थे। परंतु इस समय उनके सुर कुछ बदले-बदले से लगते हैं।
स्वयं येदयुरप्पा के अनुसार, “मैं इस समय कुछ भी ऐसा नहीं कहना चाहता जो मेरे पार्टी या मेरे राज्य के अहित में हो। जब तक दिल्ली में स्थित पार्टी हाईकमान को मेरे प्रतिबद्धता पर विश्वास है, तब तक मैं CM के पद पर हूँ। जिस दिन उन्हे संदेह होगा, उसी दिन मैं त्यागपत्र देकर राज्य के विकास में अन्य तरीकों से अपनी सेवाएँ प्रदान करूंगा।”
बता दें कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कर्नाटक में भाजपा को 108 सीट मिली थी। लेकिन चूंकि वे बहुमत के आँकड़े से 5 सीट दूर थे, इसलिए JDS और काँग्रेस ने मिलकर गठबंधन सरकार बनाई। हालांकि यह खिचड़ी सरकार 1 वर्ष से अधिक नहीं टिक पाई, और अगले ही वर्ष 2019 में 16 बागी विधायकों की सहायता से येदयुरप्पा पुनः सत्ता में आए।
लेकिन जब से उन्होंने कैबिनेट में विस्तार किया है, तभी से उन्हें विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है। कई लोगों को उनके नेतृत्व पर संदेह है।
उदाहरण के लिए शिवमोगा से कभी येदयुरप्पा के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक रहे भाजपा मंत्री के एस ईश्वरप्पा ने राज्यपाल वजूभाई वाला से शिकायत करते हुए CM पर उनकी कैबिनेट की कार्यशैली में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों के दबाव में CM ने उनके [ईश्वरप्पा] मंत्रालय – ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज की ओर से 774 करोड़ की निधि बिना उनके स्वीकृति के जारी की।
इसके अलावा दो विधायकों ने केंद्र सरकार से भी भाजपा CM येदयुरप्पा के कार्यशैली के बारे में भी शिकायत की है। ऐसे में यदि येदयुरप्पा पहले की भांति आक्रामक नहीं दिख रहे, तो स्थिति स्पष्ट है कि कर्नाटक में नेतृत्व में बदलाव कभी भी हो सकता है।