रजनीकान्त की फिल्म ‘शिवाजी द बॉस’ में एक संवाद बहुत ही उचित था, ‘अच्छे काम में हाथ बँटाने कोई नहीं आएगा, पर टांग अड़ाने सब आ जाएंगे।’ कुछ यही हाल सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का भी है। भारत के संसद के नवीनीकरण की परियोजना से भी कुछ लोगों को जबरदस्त चिढ़ मची हुई है।
इसे रोकने के लिए तो राष्ट्रपति तक को अर्जी डाल दी गई है, जबकि सच्चाई यही है कि यह लोग अपने अंग्रेजीयत से बाहर निकलना ही नहीं चाहते और इस प्रोजेक्ट को उनकी गुलामी वाली मानसिकता के विध्वंस का प्रतीक मानते हैं।
इसी बीच कुछ नौकरशाहों ने सरकार को चिट्ठी लिखी कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया जाए। हालांकि इसके पीछे का जो तर्क उन्होंने दिया, वो इतना हास्यास्पद था कि स्वयं केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियों को इसकी धज्जियां उड़ाने के लिए सामने आना पड़ा।
आप विश्वास नहीं करेंगे, परंतु कुछ नौकरशाह इसलिए इस प्रोजेक्ट को रद्द करना चाहते थे, क्योंकि उन्हें लगा कि वर्तमान सरकार वर्तमान संसद को अशुभ मानती है और अपने पार्टी के लिए अनुकूल एक नया संसद बनाना चाहती है।
इसी हास्यास्पद तर्क पर हरदीप सिंह पुरी ने इन पूर्व नौकरशाहों की धज्जियां उड़ाते एक विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “एक बड़ी रोचक बात बताता हूँ। यह जो कुछ पढ़े लिखे मूर्ख हैं, इन्होंने एक पत्र लिखा है। मैं आपको इसे पढ़के बताता हूँ। इन साठ नौकरशाहों ने पत्र लिखा है, उसमें कहा है कि, यदि रिपोर्ट्स की माने तो, सर्वप्रथम तो जब आपके पास चालीस साल का तजुर्बा हो, तो आपके मुंह से ऐसी बातें शोभा नहीं देती। फिर कहते हैं कि यह रिपोर्ट कहती है कि वर्तमान संसदीय बिल्डिंग अशुभ है और यह प्रोजेक्ट [सेंट्रल विस्टा] एक विशेष पार्टी के नेताओं के अनुकूल बनाई जानी चाहिए।”
कुछ दिनों पहले हरदीप सिंह पुरी, आलोचनाओं से घिरे हुए थे। जब वामपंथी पत्रकार विनोद दुआ की बेटी मल्लिका दुआ ने अपने कोविड पीड़ित परिवार के लिए मदद मांगी थी, तो पुरी उत्सुक होकर स्वयं मदद के लिए आगे आ गए।
परंतु जिन लोगों की मदद वे कर रहे थे, उन्होंने उन्ही की सरकार के समर्थकों और अन्य हिंदुओं की मृत्यु के लिए वे दुआ मांग रहे थे। इसके पीछे हरदीप सिंह पुरी की जमकर ट्रोलिंग भी हुई थी। जिसके बाद अब उनके इस कदम को सराहा जा रहा है।
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हालांकि पूर्व नौकरशाहों की धुलाई पर हरदीप सिंह पुरी इतने पर नहीं रुके। उन्होंने आगे ये भी कहा, “अरे भाई, आप उस समय कैबिनेट सचिव थे [जब यह परियोजना 2012 में अप्रूव हुई], आपकी सरकार ने ही कहा कि नई संसद की आवश्यकता है। अब आप लोग कह रहे हैं कि यह बिल्डिंग इसलिए बनाई जा रही है क्योंकि कुछ नेताओं को अंधविश्वास है? यह पढ़े लिखे मूर्ख ही नहीं है, ये देश पर कलंक है।”
हाल ही में सेंट्रल विस्टा के विरोधियों को तब मुंह की खानी पड़ी, जब दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिकाकर्ता द्वारा इस प्रोजेक्ट पर रोक लगाने के प्रयास को ध्वस्त करते हुए उलटे उस याचिकाकर्ता पर कोर्ट का समय व्यर्थ करने के लिए 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था।
लेकिन लगता है कि केंद्र सरकार केवल इतने से संतुष्ट नहीं होने वाली। जब तक वह भारत के लिए हितकारी प्रोजेक्ट्स में टांग अड़ाने वाले वामपंथियों को उनकी औकात नहीं बता देती, तब तक केंद्र सरकार चैन से नहीं बैठने वाली।