जम्मू-कश्मीर की 149 साल पुरानी ‘दरबार मूव’ की प्रथा को खत्म कर दिया गया है

हर साल 200 करोड़ रुपये खर्च होते थे!

दरबार मूव

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने प्रदेश की दो राजधानियों के बीच ‘दरबार मूव’ की परंपरा को रद्द कर दिया है। ‘दरबार मूव’ कही जाने वाली यह 149 साल पुरानी आधिकारिक प्रथा को  रद्द करते हुए संपदा विभाग के आयुक्त सचिव एम राजू की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि श्रीनगर और जम्मू में अधिकारियों और कर्मचारियों के आवासीय आवंटन को रद्द करने की मंजूरी दे दी गई है।

दरअसल, ‘दरबार मूव’ के तहत राजभवन, नागरिक सचिवालय और कई अधिकारी साल में दो बार जम्मू और श्रीनगर स्थानांतरित होते थे। गर्मियों में जम्मू से श्रीनगर और सर्दियों में इसके विपरीत होता है। ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि जम्मू और कश्मीर की दो राजधानियाँ हैं: गर्मियों के दौरान कश्मीर और सर्दियों के दौरान जम्मू। इस कारण से जम्मू के कर्मचारियों को श्रीनगर आवास आवंटित थे और श्रीनगर के कर्मचारियों को जम्मू में।

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 20 जून को कहा था कि चूंकि प्रशासन ने ई-ऑफिस का काम पूरा कर लिया है, इसलिए सरकारी कार्यालयों के इस ‘दरबार मूव’ की प्रथा को जारी रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। आदेश में कहा गया है कि अधिकारी और कर्मचारियों को 21 दिनों के भीतर दोनों राजधानी शहरों में सरकार द्वारा आवंटित अपने आवासों को खाली करना होगा।

जम्मू और श्रीनगर में मुख्यालय वाले सिविल सचिवालयों में काम करने वाले लगभग 8000-9000 कर्मचारी हर साल दो बार फाइलों के साथ आते-जाते थे। 2019 तक, प्रशासन कार्यालय के रिकॉर्ड और अधिकारियों को एक राजधानी शहर से दूसरे शहर ले जाने के लिए सैकड़ों ट्रकों और बसों को लगाना पड़ता था। सुरक्षित परिवहन के लिए, जम्मू-कश्मीर पुलिस और अर्धसैनिक बल पूरे जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर तैनात करना होता था। ट्रकों और बसों को किराए पर लेने के खर्च के अलावा, चलने वाले कर्मचारियों को उनके आवास की व्यवस्था के अलावा टीए और डीए का भुगतान भी किया जाता था।

द्विवार्षिक ‘दरबार मूव’ को समाप्त करने के निर्णय से राजकोष को हर साल 200 करोड़ रुपये की बचत होगी और इसका इस्तेमाल किसी अन्य विकास कार्य में किया जा सकेगा।

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माना जाता है कि डोगरा सम्राट महाराजा गुलाब सिंह ने 1872 में राजधानी को स्थानांतरित करने की परंपरा शुरू की थी। परंपरा को 1947 के बाद जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक वर्ग या यूँ कहे नौकरशाहों  द्वारा जारी रखा गया था।

पिछले साल, जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने भी यही observe किया था कि देखा कि ‘दरबार मूव’ परंपरा का कोई कानूनी औचित्य या संवैधानिक आधार नहीं है। साथ ही इस प्रथा के परिणामस्वरूप कई अक्षम और अनावश्यक गतिविधि पर भारी मात्रा में समय, प्रयास और ऊर्जा की बर्बादी होती थी। अब इस प्रथा के समाप्त होने से एक और bureaucratic mess से छुटकारा मिला है। बचत होने वाले धन से जम्मू कश्मीर के आम लोगों को ही फायदा होगा और यह संसाधन उनके विकास में उपयोग किये जायेंगे।

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