वामपंथियों का हिन्दू त्योहारों के साथ बहुत गहरा नाता रहा है। देश में कुछ भी अनहोनी हो, हमारी संस्कृति और हमारे त्योहारों को उसके लिए जिम्मेदार ठहराने में ये एक क्षण भी नहीं गँवाते। सभी को ज्ञात है कि कैसे केरल, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के प्रशासन की लापरवाही के कारण वुहान वायरस की दूसरी लहर ने विकराल रूप धारण कर लिया। वामपंथियों ने कुम्भ मेले को इसके लिए दोषी ठहराया, परंतु आंकड़ों ने इनके मुंह पर ताला लगा दिया था। अब यही काम वामपंथी कांवड़ यात्रा के लिए भी करने जा रहे हैं। अभी से ही कांवड़ यात्रा को कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के लिए वामपंथी जिम्मेदार ठहराने में जुट गए हैं। विश्वास नहीं होता तो इन्हें ही देख लीजिए।
Kanwar yatra can be much riskier than Kumbh: Experts https://t.co/UE8cncnhS3
— TOI India (@TOIIndiaNews) July 10, 2021
इन एक्स्पर्ट्स का मानना है कि इस समय अगर कांवड़ यात्रा हुई, तो ये कुम्भ से भी अधिक खतरनाक हो सकता है। इनके पास कोई ठोस प्रमाण नहीं है और न ही कोई विश्लेषण, पर हिन्दू संस्कृति के प्रति अपनी घृणा दिखाना सर्वोपरि है। इकोनॉमिक टाइम्स की पत्रकार निधि शर्मा निधि शर्मा के ट्वीट के अनुसार, भारत ठीक उसी मुहाने पर खड़ा है, जहां पर वह था फरवरी में : दूसरी लहर के प्रारंभ से पहले, मेरा लेख पढ़िए कि हम क्यों कांवड़ यात्रा के नफा नुकसान पर बहस नहीं कर सकते जब तीसरी लहर हमारे सर पर हो।
जिस तरह से आर्टिकल की इमेज थी, और जिस तरह की भाषा था, उससे वह दिखाना चाह रही थी कि हर चीज के लिए हिंदू त्योहार और संस्कृति ही जिम्मेदार है
इकोनॉमिक टाइम्स की पत्रकार निधि शर्मा ने अपने ट्वीट में स्पष्ट तौर पर ये छुपाने का प्रयास किया है कि किस प्रकार से केरल में मामले दूसरी लहर के दौरान प्रशासनिक लापरवाही और टीकाकरण के प्रति विरोध के कारण कभी घटे ही नहीं। ऐेस लेख के जरिए वो हिन्दू संस्कृति को बदनाम करने पर तुली हैं।
India's Covid trajectory is exactly at the same place as it was 5 months back in Feb — beginning of 2nd wave. Maharashtra, Kerala showng a rise, similar CFR. Read my opinion piece on why India cant be debating on whether to hold kanwar yatra #COVID19Indiahttps://t.co/aGTlfUOhE7 pic.twitter.com/PES6sS3j6Y
— Nidhi (@nidhi_sharma) July 13, 2021
परंतु ये कांवड़ यात्रा है क्या? दरअसल, श्रावण मास के प्रारंभ से ही भगवान शिव के भक्त भारी संख्या में कांवड़ यानि अपने अपने पात्रों में गंगाजल लेकर अपने-अपने इष्ट धाम, नहीं तो बिहार के देवगढ़ में स्थित बाबा बैद्यनाथ के ज्योतिर्लिंग धाम में भगवान आशुतोष, यानि महादेव का गंगाजल से अभिषेक करने जाते हैं।
यूं तो हर वर्ष ये संख्या लाखों करोड़ों में होती है, परंतु वुहान वायरस के कारण स्वेच्छा से भक्त काफी कम संख्या में जा रहे हैं। आश्चर्य की बात है कि अभी न श्रावण का मास प्रारंभ हुआ है, न कांवड़ यात्रा का उद्घोष हुआ है, और वुहान वायरस की तीसरी लहर भी अभी देश में दस्तक नहीं दी है। तो फिर किस बात के लिए कांवड़ियों को निशाना बनाया जा रहा है?
दरअसल, सच्चाई कुछ और ही है। कांवड़िए तो बहाना है, असल में महाराष्ट्र और केरल के अकर्मण्य प्रशासन की नाकामियों को छुपाना है। पूरे देश में जहां वुहान वायरस के मामले अब घट रहे हैं, और टीकाकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है, तो वहीं केरल और महाराष्ट्र में अब भी स्थिति में कोई सुधार नहीं है। देश के कुल सक्रिय मामलों का करीब 40 प्रतिशत इन्हीं दोनों राज्यों की देन है, और यहीं पर टीकाकरण का स्तर सबसे कम है। अगर देश में तीसरी लहर आती है, तो इन दोनों राज्यों के कारण हो सकता है फिर पूरे देश को महामारी का सामना करना पड़े।
यही नहीं, उत्तर भारत में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे क्षेत्र में पर्यटकों की संख्या में जो जबरदस्त उछाल आया है, वो न सिर्फ चिंताजनक है, बल्कि इस पर वामपंथियों की चुप्पी भी कचोटती है। वहाँ कौन सी कांवड़ यात्रा हो रही है? क्या इस पर कोई जवाबदेही नहीं बनती है? ऐसे में जब वास्तविक मुद्दों को अनदेखा कर हिन्दू त्योहारों को निशाना बनाया जाने लगे, तो समझ जाइए कि अपने अकर्मण्य आकाओं को बचाने के लिए वामपंथियों के पास अब तर्कों की कमी हो रही है।