UP चुनाव से पहले अखिलेश यादव, प्रियंका वाड्रा और संजय सिंह, रंग बदल फिर अपनाएंगे हिंदू धर्म

चुनावी मौसम के मौसमी हिंदू, बिल से निकलने को है तैयार

हिन्दू वोट बैंक

विपक्षी राजनीतिक दलों का आज के दौर में अलग ही फसाना है, 5 साल तक मुस्लिमों के तुष्टीकरण के लिए मौलानाओं जैसी बातें करना, और चुनावों की आहट पर मौसमी हिन्दू बन जाना। जी हां! जो राजनीतिक दल मुस्लिम तुष्टीकरण की पराकाष्ठा पार चुके हैं, वो जब हिन्दुओं को लुभाने के लिए मंदिर-मंदिर जाते हैं, तो हंसी भी आती है, और दया भी। 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर कुछ ऐसा ही हो रहा है। आप नेता संजय सिंह से लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव हों, चाहें कांग्रेस पार्टी की गुड़िया प्रियंका गांधी… सभी ने बाबा विश्वनाथ के दर्शनों की प्लानिंग कर ली है। इनका इतिहास मुस्लिम तुष्टिकरण से लबरेज है, लेकिन पूर्वांचल के हिन्दू वोट बैंक की लालसा इतनी है कि गिरगिट की तरह इन्होंने रंग बदल लिया है।

कांग्रेस समेत सपा और आप जैसे राजनीतिक दलों का मुख्य एजेंडा हमेशा ही मुस्लिम तुष्टीकरण रहा है, लेकिन अजीब तब लगता है जब हिन्दू वोट बैंक को साधने के लिए इन दलों के नेता अचानक हिन्दू बन जाते हैं। 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा को लेकर भी ऐसी ही रूप-रेखा तैयार होने लगी है और व्यंग्यकारों ने तो यहां तक कह दिया है कि नेताओं के हिन्दू बनने का मौसम आ गया है, जिसकी ख़बरें अब मिलने भी लगी हैं। बनारस में सपा नेता अखिलेश यादव से लेकर कांग्रेस महासिचव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा का दौरा होने वाला है। दोनों के भ्रमण का मुख्य फोकस काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजन ही होगा।

भास्कर की रिपोर्ट बताती है कि अखिलेश और प्रियंका दोनों के दौरों को लेकर अधिक जानकारी तो नहीं है, लेकिन ये जरूर है कि दोनों सावन के पवित्र महीने में ही हिन्दू बनते दिखेंगे। इतना ही नहीं, शून्य जनाधार होने के बावजूद उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपने लिए संभावनाएं तलाश रही आम आदमी पार्टी के यूपी प्रभारी संजय सिंह भी काशी विश्वनाथ जा सकते हैं। महत्वपूर्ण बात ये है कि इन सभी दौरों का कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बनारस दौरे के बाद सामने आया है, जो इस बात का संकेत है कि पीएम मोदी के कारण ही हिन्दू वोटों को साधने के लिए इन तीन दलों के नेताओं ने काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजन का प्रोग्राम रखा है।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल का वोट बैंक बेहद महत्वपूर्ण है और बीजेपी का गढ़ होने के चलते ही सपा, कांग्रेस और आप इसे हिन्दुओं को लुभाने के जरिए टारगेट कर रही हैं। इन विपक्षी नेताओं का काशी भ्रमण किसी नौटंकी का हिस्सा प्रतीत होता है, इनका राजनीतिक इतिहास इनके हिन्दू विरोधी होने की गवाही देता है। याद कीजिए राम मंदिर आंदोलन के दौरान कैसे हिन्दू कारसेवकों पर सपा सरकार ने गोलियां चलवाई गईं थीं, जिसके चलते सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को मौलाना मुलायम तक कहा गया था। यही कारण है कि सपा यादव और मुस्लिम वोट बैंक तक सिमट गई है।

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वहीं बात अगर कांग्रेस की करें, तो पार्टी का पूरा इतिहास ही मुस्लिम तुष्टिकरण नींव पर खड़ा है। 1986 में शाहबानो केस पर आए फैसले को संसद में पलटना, बाटला हाउस एनकाउंटर में मारे गए आतंकियों के लिए रोना, 2008 के मुंबई हमले को बीजेपी RSS की साज़िश बताकर भगवा आतंकवाद कहना या फिर लालकिले से पूर्व पीएम मनमोहन सिंह द्वारा देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों के होने की बात कहना हो, सभी कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति का पर्याय हैं। इसी तरह आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल दिल्ली के CAA विरोधी दंगों के खिलाफ केवल इसलिए नहीं बोले, क्योंकि उससे उनका मुस्लिम वोट छिटक सकता था।

सपा कांग्रेस और आप सभी ने अपने स्तर पर खूब मुस्लिम तुष्टीकरण किया, लेकिन अब सभी हिन्दुओं को साधने और पूर्वांचल के बीजेपी के गढ़ में सेंधमारी करने के उद्देश्य बाबा काशी विश्वनाथ के दर्शन को जाने वाले हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि ये दौरा धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक है। गौरतलब है कि, इससे पहले साल 2017 के दौरान अखिलेश बाबा विश्वनाथ के मंदिर में गए थे, जिसमें भी विवाद ही हुआ था। उस दौरान ये तक कहा गया कि अखिलेश मंदिर में नमाजी की तरह बैठे थे, जिन्हें पुजारी ने टोक कर सही से बैठने को कहा। अब पांच साल बाद चुनावों की आहट के साथ ही अखिलेश को पुनः बाबा विश्वनाथ की याद आई है।

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कुछ इसी तरह साल 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए थे। इतना ही नहीं दिसंबर 2020 में भी कोरोना की पहली लहर के खात्मे के बाद प्रियंका ने योगी सरकार के खिलाफ हमला बोलने की नीति के तहत बनारस का दौरा किया था और उस दौरान भी उन्होंने काशी विश्वनाथ के दर्शन किए थे। वहीं अरविंद केजरीवाल की बात करें तो साल 2014 में पीएम मोदी के खिलाफ उन्होंने जब काशी से ही लोकसभा का चुनाव लड़ा था, तब वो काशी विश्वनाथ के दर्शन करते दिखे थे, उसके बाद तो वो इफ्तार पार्टियों में टोपी पहने ही दिखे।

साल 2018 की शुरुआत में राहुल गांधी जो कर्नाटक विधानसभा चुनावों के दौरान मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर चल रहे थे, वो अचानक ही गुजरात विधानसभा चुनाव में जनेऊधारी हिन्दू बन गए थे, और मंदिर-मंदिर जाने लगे थे। भगवा आतंकवाद कहने वाले अपने ही दल के लोगों के खिलाफ चुप्पी साधने वाले राहुल मंदिर जाने वालों को लड़की छेड़ने वाला तक कह चुके हैं। इसके विपरीत जब कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियां बाहर आ गईं हैं, तो पार्टी के नेता अब हिन्दुओं को साधने के लिए गिरगिट बनकर मंदिर भ्रमण करने को तैयार हैं।

इन तीनों ही दलों के राजनीतिक पैटर्न में ये देखा जा सकता है कि मुस्लिम तुष्टीकरण केंद्रीय मुद्दा है और अब जब विधानसभा चुनाव के लिहाज से पूर्वांचल में हिन्दू वोट बैंक की आवश्यकता है, तो ये सभी चुनावी हिन्दू बनकर काशी विश्वनाथ मंदिर पूजन का ढोंग करने पहुंचने वाले हैं। हालांकि इससे हिन्दुओं पर लेश मात्र भी असर नहीं पड़ेगा।

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