वर्ल्ड बैंक की साइट पर दहेज से संबंधित एक ब्लॉग छपा है। ब्लॉग को दिल्ली स्थित थिंक टैंक National Council of applied economic research के एक शोध को आधार बनाया गया है। शोध में 1960 से 2008 के बीच भारत के विभिन्न भागों और विभिन्न रिलीजन में हुई 40 हजार शादियों को सैम्पल बनाया गया था। इस आधार पर शोधकर्ताओं ने बताया कि, सिक्ख और ईसाई समुदाय दहेज लेने के मामले में सबसे तेजी से आगे आए हैं। इन समुदाय में दहेज का चलन तेजी से बढ़ा है।
सबसे ज्यादा दहेज हर रिलीजन में उच्च तबके द्वारा लिया और दिया जाता है। चाहे हिन्दू हो, ईसाई हो या मुस्लिम हो, सभी के उच्च वर्ग में यह प्रथा आम हो चुकी है। साथ ही रिसर्च बताती है कि वे राज्य जहाँ सबसे ज्यादा दहेज देना होता है, उनमें केरल प्रथम स्थान पर है।
इस शोध के लिए यह तरीका अपनाया गया कि लड़के के परिवार द्वारा लड़की को दिए गए गिफ्ट और अन्य सामानों के मूल्य की तुलना, लड़की के परिवार द्वारा लड़के और उसके परिवार को दिए गए सामान के मूल्य से की गई। शोध के अनुसार औसतन दोनों पक्षों द्वारा दिए गए सामान के मूल्य में 7 गुने का अंतर है।
अगर लड़के के परिवार की ओर से 5 हजार के मूल्य का सामान दिया गया है तो लड़की पक्ष 32000 के मूल्य का सामान देता है। दोनों के अंतर अर्थात 27000 को दहेज माना गया है।
यह सामाजिक अपराध है। दबाव बनाकर दहेज निकलवाना तो जुर्म है ही, लेकिन अपनी इज्जत और शान के नाम पर दहेज देना भी गलत है। अपनी शान के लिए दहेज देने और लेने वाले ये नहीं सोचते की लेन देन से वह कितना गलत उदाहरण दे रहे हैं। उच्च वर्ग के लोग एक गलत परंपरा को अपनी शान के नाम पर आगे बढ़ा रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि केरल जो सबसे शिक्षित राज्य होने का दम भरता है वहाँ यह कुप्रथा सबसे ज्यादा फैली है। समानता के नाम पर बनाया गया सिक्ख पंथ भी इस कुप्रथा का शिकार है।