बकरीद सुपर स्प्रेडर और केरल बना कोरोना का सबसे बड़ा निर्यातक

केरल कोरोना

याद है कैसे जब सावन के महीने से पहले जब कांवड़ यात्रा की चर्चा मात्र हुई थी, तब वामपंथियों ने कितना हो हल्ला मचाया था? सुप्रीम कोर्ट तक को इन चीखते चिल्लाते एक्टिविस्टों के दबाव में केंद्र सरकार को समन करना पड़ा। इन्हीं वामपंथियों को तब सांप सूंघ गया जब बकरीद के अवसर पर केरल सरकार ने राज्य में बढ़ते वुहान वायरस के मामले के बावजूद कोरोना से संबंधित पाबंदियों पर ढील दी। अभी इसी लापरवाही के कारण केरल भारत के सक्रिय कोविड मामलों में पहले से अधिक योगदान दे रहा है, परंतु राष्ट्रीय मीडिया में घोर सन्नाटा पसरा हुआ है।

केरल के कम्युनिस्टों के अनुसार, कांवड़ यात्रा से कोरोना फैलता है, बकरीद से नहीं

दरअसल, केरल सरकार ने ईद उल अज़हा यानि बकरीद के लिए विशेष छूट दी थी। इसके अंतर्गत जो पाबंदियां केरल में लगी हुई थीं, उनमें विशेष छूट दी गई थी। जो वामपंथी कल तक काँवड़ यात्रा को लेकर हो हल्ला मचा रहे थे, उन्हें अचानक से सांप सूंघ गया। इसके साथ ही अब इस बात पर वे चुप्पी साधे हुए हैं कि किस प्रकार से बकरीद के त्योहार ने केरल में कोरोना की स्थिति बद से बदतर कर दी है।

इन दिनों भारत में प्रतिदिन औसतन 25,000 से 40,000 के बीच कोरोना मामले दर्ज होते रहे हैं। इनमें से कुछ नहीं तो लगभग 40 प्रतिशत सक्रिय कोरोना मामले केवल और केवल केरल की ही देन है। इसके पीछे दो प्रमुख कारण है – केरल की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था, और वैक्सीन के प्रति केरल की आनाकानी। महाराष्ट्र में भी स्थिति कोई बहुत बेहतर नहीं है, लेकिन अब वहाँ पर भी धीरे-धीरे मामले घटने लगे हैं।

वहीं, बकरीद के कारण अब केरल में स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। बकरीद से पहले, प्रतिदिन केरल में औसतन 16,000 से अधिक कोरोना के नए मामले दर्ज होने लगे परंतु, अब केरल में बकरीद के बाद से 20,000 से अधिक मामले प्रतिदिन दर्ज होने लगे। यानि भारत के कोरोना वायरस के कुल सक्रिय मामलों में अब 50 प्रतिशत से अधिक मामले केवल और केवल केरल से ही आ रहे हैं, जिसमें बकरीद का भी काफी योगदान रहा है।

अभी यहीं पर बकरीद के बजाए किसी सनातन धर्म के त्योहार के कारण यह स्थिति हुई होती, तो सनातन धर्म को अपमानित करने में वामपंथियों ने जमीन आसमान एक कर दिया होता। जब कोविड की दूसरी लहर आई थी, तब केरल, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की प्रशासनिक लापरवाही के कारण स्थिति बद से बदतर हो गई। रही सही कसर दिल्ली, राजस्थान, पंजाब और झारखंड के अकर्मण्य प्रशासन ने पूरी की, जिन्होंने जानबूझकर लोगों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा।

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लेकिन सारे किये कराए का ठीकरा किस पर फोड़ा गया? कुम्भ मेले पर। वामपंथियों से लेकर विपक्षी दलों ने पूरे कोरोना वायरस का ठीकरा कुम्भ मेले पर फोड़ने का प्रयास किया, जो दूसरी लहर के शुरू होने से पहले ही आधे से अधिक पूरा हो चुका था, और जहां नियमों का किसी भी प्रकार से कोई उल्लंघन भी नहीं हुआ; लेकिन सनातन धर्म को अपमानित करने का अवसर भला वामपंथी अपने हाथों से क्यों जाने देंगे?

शायद इसीलिए दक्षिण भारत में भाजपा प्रभारी सी टी रवि ने एक तंज भरे ट्वीट में लिखा,

केरल में इस समय न कोई काँवड़ यात्रा चल रही है, और न ही कोई कुम्भ मेला। फिर भी देश के 50 प्रतिशत से अधिक कोरोना के मामलों में केरल का ही योगदान है। अच्छा हुआ भारत ने ‘केरल के मॉडल’ का अनुसरण नहीं किया”।

यहाँ पर उनका इशारा उस ‘केरल मॉडल’ से है, जिसकी डींगें केरल सरकार तब हाँकती थी, जब प्रारंभ में कोरोना के मामले अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम थे। जो वामपंथी खुलेआम केरल मॉडेल का प्रचार प्रसार करते थे, आज इस ‘केरल मॉडल’ पर चुप्पी साधे बैठे हैं।

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