ओवैसी से गठबंधन करके अखिलेश, ‘यादव’ वोट से भी हाथ धो बैठेंगे

हमें नहीं भूलना चाहिए कि यादवों के लिए भी जाति बाद में धर्म पहले आता है।

यादव

राजा यदु से यादवों का प्रादुर्भाव हुआ। वैष्णव पद्धति का अनुपालन करने वाले और योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण को इष्ट मानने वाले यादव-गण अनुच्छिष्ट हिन्दू रहे हैं। वे वैदिक वर्ण व्यवस्था के अनुसार क्षत्रिय वर्ण से संबंधित हैं। यादव समुदाय आम तौर पर मवेशियों से संबंधित व्यवसायों से जुड़े होते हैं, लेकिन बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि यादवों ने भारत के एक बड़े हिस्से को नियंत्रित किया और मुस्लिम आतताइयों के आने से पहले सत्ता में बने रहे।

इतिहासकार जे.एन. सिंह अपनी पुस्तक “यादव्स थ्रू द एजेस” (yadavas through the ages) में यादवों और उनके वंश का एक विशद विवरण देते हैं, जहां वह दक्षिण भारत के राजवंश होयसल को यादव वंश से जोड़ते हैं। इतिहासकार एससी रायचौधरी का दावा है कि वोडेयार वंश के संस्थापक विजया भी यदुवंश से थे और इसी कारण उन्होनें यदु-राय नाम ग्रहण किया।

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डॉ. वी. मनिकम का कथन है कि रावल जैसल जिन्होंने 1156 ई. में जैसलमेर शहर की स्थापना की थी, वे यदुवंशी राजपूत समूह से थे। हरियाणा राज्य का नाम अभीर और अरण्य से आता है जिसका अर्थ है अभीरों (अहिरस या यादव) का अरण्य (निवास)।

यादव समुदाय उत्तर भारत में, विशेष रूप से यूपी और बिहार में एक बड़ी राजनीतिक ताकत हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में क्रमशः दो लोकलुभावन यादव नेताओं मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव के आगमन तक यादवों और मुसलमानों का ऐतिहासिक रूप से अच्छा तालमेल नहीं रहा। इन दोनों नेताओं ने मुस्लिम-यादव आधार सूत्र को मत-गत राजनीति में सिद्ध किया, जिसे एम-वाई (M-Y Formula) समीकरण भी कहा जाता है।

मुस्लिम-यादव समीकरण भले ही राजनीतिक रूप से सफल रहा हो, लेकिन मुस्लिम और यादवों के बीच तनाव को शांत करने में यह निष्फल ही रहा है। 2018 की कासगंज हिंसा हो या 1989 के भागलपुर दंगे, दोनों समुदायों की शत्रुता “मुक्तास्तिष्ठन्ति पङ्गुवत्” यानी की सामाजिक तौर पर जितनी दूरी थी उतनी बनी रही। वैसे तो कई कारण हैं जो उत्तर प्रदेश चुनाव को राजनीतिक विश्लेषकों के लिए रोमांचक बनाते हैं, यह शत्रुता भी एक ऐसा कारण है जिसके फलस्वरूप उत्तर प्रदेश चुनाव कई गुना अधिक रोमहर्षक हो जाता है।

मंडल युग के तदनंतर, यादव एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गए। वे उत्तर प्रदेश और बिहार में ओबीसी कोटे के प्रमुख लाभार्थियों में से एक थे। नौकरियों और शिक्षा में उनके कोटा के साथ-साथ राज्य सरकारों द्वारा ‘अनुकूल’ व्यवहार ने यादवों को सामाजिक गतिशीलता में सहायता की।

इस अवधि में ही समाजवादी पार्टी और यादव समुदाय ने एक दूसरे का आलिंगन किया। हालाँकि, उत्तर प्रदेश के यादवों और समाजवादी पार्टी के बीच संबंध काफी हद तक लेन-देन वाले रहे। यादवों ने जहां लगातार चुनावों में सपा के लिए सामूहिक मतदान किया, वहीं सपा ने अपनी ओर से समुदाय को अभूतपूर्व लाभ दिया।

सरकारी नौकरियों में और विशेष रूप से पुलिस विभाग में यादव समुदाय को जम कर नौकरियाँ मिली। हालाँकि, सपा और यादव समुदाय के बीच का यह लेन-देन संबंध 2014 से गिरावट पर है। भारतीय राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के अभूतपूर्व उदय ने भारतीय राजनीति के प्रचलित समीकरणों को बदल दिया। मोदी के आगमन के पश्चात, मुलायम की कट्टर विरोधी मायावती का दलित वोट बैंक सबसे पहले टूटा था, लेकिन यादव गण भी नरेंद्र मोदी के सम्मोहन से दूर नहीं रह सके। नरेंद्र मोदी, जो स्वयं एक ओबीसी हैं, उन्होंने एसपी से अन्य सभी ओबीसी गणों को सफलतापूर्वक छीन लिया।

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उत्तर प्रदेश में यादव आबादी के एक बड़े हिस्से ने 2014 के आम चुनाव में भाजपा को वोट दिया था। बीजेपी ने 71 सीटों पर विजय प्राप्त किया और सपा मात्र 5 सीटों के साथ बिलखता रह गया। यह प्रवृत्ति विधानसभा चुनाव 2017 और आम चुनाव 2019 में भी दोहराई गई। इस बीच सपा ने कांग्रेस और इसके बाद बसपा के साथ गठबंधन किया, लेकिन दोनों ही मौकों पर वह विफल रही। अब सपा एक नए गठबंधन सहयोगी के साथ आई है, असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम)।

AIMIM एक मुस्लिम पार्टी है जिसमें किसी अन्य समुदाय का लगभग कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। एआईएमआईएम का वंश हैदराबाद के नवाब उस्मान अली शाह के कुख्यात हिंदू विरोधी लड़ाके रजाकारों से आता है। असदुद्दीन ओवैसी के अपने भाई अकबरुद्दीन को भगवान श्री कृष्ण सहित अन्य हिंदू देवी-देवताओं को गालियां देने के लिए जेल में डाल दिया गया था। हालांकि यह मान लेना सही है कि एआईएमआईएम के कारण मुसलमान तो अवश्य प्रसन्न होंगे, लेकिन यह गठजोड़ समाजवादी पार्टी के एम-वाई समीकरण में भारी दरार पैदा करेगा, जिसके कारणवश अधिकतर यादव सपा छोड़ भाजपा के हिंदुत्व अभियान से जुड़ना चाहेंगे। एआईएमआईएम पहले से ही मुस्लिम डिप्टी सीएम की मांग कर रही है।

यादवों में अन्य हिंदुओं द्वारा बहिष्कार का भय भी है। वे इस तथ्य से अच्छी तरह परिचित हैं कि भाजपा लगभग अजेय है और समुदाय को सपा शासन के दौरान अन्य ओबीसी समुदायों से कहीं अधिक लाभ हुआ है। 2018 में योगी आदित्यनाथ की सरकार की एमबीएसजेसी समिति की रिपोर्ट की एक लीक कॉपी में ओबीसी को सबसे पिछड़े और अत्यंत पिछड़े वर्गों को समायोजित करने के लिए प्रदान किए गए 27 प्रतिशत कोटा के तीन-तरफा विभाजन का सुझाव दिया था। भविष्य में किसी भी बहिष्कार से बचने के लिए शेष ओबीसी समूह में सम्मिलित होना ही यादव समुदाय के सर्वोत्तम हित में है।

बहिष्करण का यह भय और मुसलमानों के प्रति यादव समुदाय की अंतर्निहित घृणा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में अपना रंग अवश्य दिखाएगी। जबकि कई यादव समाजवादी पार्टी के साथ जुड़े रहेंगे, अधिकांश यादव मतदाताओं के पक्ष बदलने की पूरी संभावना है।

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